गीत संगीत हमारे जीवन का अहम हिस्सा है, अगर ये ना हो तो जीवन का हर महत्वपूर्ण अवसर हमें अधूरा-सा लगता है। भारतीय फिल्मों में लगभग हर अवसर के गीत फिल्माए जाते हैं और हर शब्द पर गीत लिखे जाते हैं। आज अवसर है मकर संक्रांति का और मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की विशेष परंपरा है। तो लीजिए पेश है पतंग पर बने कुछ गीत:
1999 में बनी सुपरहिट फिल्म 'हम दिल दे चूके सनम' के इस गाने में पतंग बाजी की मस्ती को हूबहू फिल्माया गया है। गाने को लिखा है महबूब ने और गाया है शंकर महादेवन, दमयंती बरदाई, ज्योत्सना हर्डीकर और साथी कलाकारों ने। संगीत है इस्माइल दरबार का।
ND
ND
ऐ हे...
आआ SSS SSS आआ हो हो SSS
काईपोछे
हो हो SSS हो हो SSS
ऐ ढील दे ढील दे दे रे भैया ऐ ढील दे ढील देदे रे भैया उस पतंग को ढील दे जैसे ही मस्ती में आए अरे जैसी ही मस्ती में आए उस पतंग को खींच दे डील दे डील दे दे रे भैया
तेज तेज तेज है मांजा अपना तेज है तेज तेज तेज है मांजा अपना तेज है उंगली कट सकती है बाबू तो पतंग क्या चीज है ऐ ढील दे ढील देदे रे भैया हे ढील दे ढील देदे रे भैया
उस पतंग को ढील दे जैसे ही मस्ती में आए अरे जैसी ही मस्ती में आए उस पतंग को खींच दे डील दे डील दे दे रे भैया
हे...SSSSS हे...SSSSS काईपोछे ऐ लपेट
तेरी पतंग तो गई काम से कैसी कटी उड़ी थी शान से चल सरक अब खिसक तेरी नहीं थी वो पतंग वो तो गई किसी के संग संग संग हो गम ना कर घुमा फिरकी तू फिर से गर्र गर्र आसमान है तेरा प्यार हौंसला बुलंद कर दम नहीं है आँखों में न मांजे की पकड़ है टन्नी कैसे बाँधते हैं इसको क्या खबर है लगाले पेंच फिर से तू होने दे जंग नजर सदा हो ऊँची सिखाती है पतंग सिखाती है पतंग
होSSSSSS होSSSSSS
ढील दे ढील दे दे रे भैया ढील दे ढील दे ढील दे दे रे भैया ढील दे ढील दे ढील दे दे रे भैया
उस पतंग को ढील दे जैसे ही मस्ती में आए अरे जैसी ही मस्ती में आए उस पतंग को खींच दे डील दे डील दे दे रे भैया
हे.. हे होSSSSSS काईपोछे
1954 में बनी 'नागिन' फिल्म के इस पतंग वाले बेहद रोमांटिक गाने को आवाजें दी है लता मंगेशकर और हेमंत कुमार ने और गीत लिखा राजेन्द्र कृष्ण। फिल्म में संगीत भी हेमंत कुमार ने ही दिया है और मुख्य भूमिकाएँ निभाई थीं प्रदीप कुमार और वैजयंती माला ने।
ND
ND
अरी छोड़ दे सजनिया छोड़ दे पतंग मेरी छोड़ दे ऐसे छोडू ना बलमवा नैनवा की डोर पहले जोड़ दे
आशाओं का मांजा लगा रंगी प्यार से डोरी तेरे मोहल्ले उड़ते उड़ते आई चोरी चोरी बैरी दुनिया कहीं ना तोड़ दे पतंग मेरी छोड़ दे, ऐसे छोडू ना बलमवा नैनवा की डोर पहले जोड़ दे
अरमानो की डोर टूटने खड़े हैं दुनिया वाले, बांके चरखी वाले उसे नील गगन में छोड़ दे पतंग मेरी छोड़ दे, ऐसे छोडू ना बलमवा नैनवा की डोर पहले जोड़ दे
दिल की चली संग हवा के बलखाती इठलाती, सैंया बलखाती इठलाती चीर के बैरी जग का सीना गीत प्यार के गाती, देखो गीत प्यार के गाती है किसमें इतना जोर जो काटे डोर सामने आए ना फिर मेरी अटरिया पे छोड़ दे पतंग सैयां छोड़ दे ऐसे छोडू ना सजनियाँ नैनवा की डोर पहले जोड़ दे सैयां छोड़ दे पतंग मेरी छोड़ दे गोरी नैनवा की डोर पहले जोड़ दे सैयां छोड़ दे पतंग मेरी छोड़ दे...
लता मंगेशकर और मो. रफी के गाए इस गीत के गीतकार भी राजेंद्र कृष्ण है और संगीत दिया है चित्रगुप्त ने। गीत है 1957 में बनी फिल्म 'भाभी' का है।
ND
ND
चली-चली रे पतंग मेरी चली रे -2 चली बादलों के पार हो के डोर पे सवार सारी दुनिया ये देख-देख जली रे चली चली रे पतंग मेरी चली रे
यूँ मस्त हवा में लहराए जैसे उड़न खटोला उड़ा जाए -2 ले के मन में लगन जैसे कोई दुल्हन चली जाए साँवरिया की गली रे चली-चली रे पतंग मेरी चली रे...
आSSSSSSSSSS
रंग मेरी पतंग का धानी है ये नील गगन की रानी है -2 बांकी-बांकी है उड़ान है उमर भी जवान लागे पतली कमर बड़ी भली रे चली-चली रे पतंग मेरी चली रे...
आSSSSSSSSSS
छूना मत देख अकेली है साथ में डोर सहेली है-2 है ये बिजली की धार, बड़ी तेज है कटार देगी काट के रख दिलजली रे चली-चली रे पतंग मेरी चली रे...
‘ये दुनिया पतंग’ ये गाना भी राजेन्द्र कृष्ण का ही लिखा है। फिल्म 'पतंग' के इस गाने में जीवन का दर्शन बताया गया है। इसे गाया है मो. रफी ने और संगीत दिया है चित्रगुप्त ने। राजेन्द्र कृष्ण के इन तीनों पतंग गीतों को अलग अंदाज और अलग अर्थों में लिखा है। यह कहने की जरूरत नहीं कि पुराने गीत अर्थपूर्ण हुआ करते थे। संयोग से इन चारों गीतों में से दो गीतों के संगीतकार चित्रगुप्त की आज पुण्यतिथि है। भारतीय सिनेमा को कालजयी संगीत देने वाले इस संगीतकार को हमारी श्रृद्धांजली।
ND
ND
ये दुनिया पतंग नित बदले रंग कोई जाने ना उड़ाने वाला कौन है
सब अपनी उड़ाए ये जान ना पाए कब किसकी चढ़े किसकी कट जाए ये है किसको पता रुख बदले हवा और डोर इधर से उधर हट जाए हो वो डोर या कमान या जमीं आसमान कोई जाने ना बनाने वाला कौन है
ये दुनिया पतंग नित बदले रंग कोई जाने ना उड़ाने वाला कौन है
उड़े अकड़ अकड़ धनवालों की पतंग सदा देखा है गरीब से ही पेंच लड़े है गुरूर का हुजूर सर नीचे सदा जो भी जितना उठाए उसे उतनी पड़े किसी की बात का गुमान भला करे इनसान जब जाने ना बनाने वाला कौन है
ये दुनिया पतंग नित बदले रंग कोई जाने ना उड़ाने वाला कौन है