मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा!
आज ठीक 5 साल पहले महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में यह शेर कहा था। तारीख थी 1 दिसंबर 2019 और ठीक पांच साल बाद फडणवीस ने वो कर दिखाया जिसके संकेत उन्होंने दिया था। बता दें कि गृहमंत्री अमित शाह ने आज शनिवार को फडणवीस को फोन कर प्रचंड जीत की बधाई दी है।
इस बीच महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे का बयान सामने आया है कि ज्यादा सीटें मिलने का मतलब यह नहीं है कि सीएम भी उसी दल का होगा। उन्होंने कहा कि तीनों दल यानी भाजपा, शिवसेना और एनसीपी मिलकर सीएम तय करेंगे। हालांकि यह बयान उन्होंने एक मीडियाकर्मी के सवाल पर जवाब के तौर पर दिया है। उनसे पूछा गया था कि क्या यह पहले से तय हुआ था कि जिसकी सीटें ज्यादा आएंगी सीएम उसी दल का बनेगा। इसके जवाब में शिंदे ने जवाब दिया कि ज्यादा सीटें मिलने का अर्थ सीएम नहीं है। सभी मिलकर तय करेंगे सीएम।
क्या है महाराष्ट्र में महायुति की जीत का पूरा फैक्टर : ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महाराष्ट्र में सीएम पद के लिए पैंच फंस सकता है। दूसरा सवाल यह है कि आखिर क्यों शरद पवार का कद महाराष्ट्र की राजनीति में घट गया और उन्हें इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा। दूसरी तरफ क्यों महाराष्ट्र की जनता ने एकनाथ शिंदे को जिताकर एक तरह से असली शिवसेना का वारिस घोषित कर दिया। क्या है महाराष्ट्र में महायुति की जीत का पूरा फैक्टर।
बता दें कि महाराष्ट्र की राजनीति में नितीन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस बड़े चेहरे हैं। हालांकि गडकरी सीएम की रेस में नहीं माने जाते हैं। वेबदुनिया ने महाराष्ट्र में महायुति की इस जीत के मायने समझने के लिए महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक जानकारों से चर्चा की। लोकमत के संपादक विकास मिश्र ने कहा- मैं शुरू से कहता था कि यह परिणाम तय है। लेकिन इस प्रचंडता से यह जीत सामने आएगी इसका अंदाजा नहीं था। जहां तक एक्जिट पोल की बात है तो उस पर इतना यकीन ठीक नहीं है।
विकास मिश्र ने बताया कि इस बार महाराष्ट्र में तकरीबन पांच प्रतिशत वोटिंग ज्यादा हुई है। इसके साथ ही महिलाओं ने ज्यादा वोटिंग की है। इसके पीछे की वजह है लाडकी बहीण योजना ने काम दिखाया। वे बताते हैं कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के पास तो कोई नेता है नहीं, जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। लेकिन जिस तरह से शरद पवार और उद्धव ठाकरे का कद घटा है उससे कहा जा सकता है कि यहां की राजनीति में कुछ तो बदल रहा है। इसका मतलब यह माना जाना चाहिए कि महाराष्ट्र की जनता की नजर में एकनाथ शिंदे शिवसेना के असली वारिस हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि जहां तक महाराष्ट्र में सीएम की दावेदारी को लेकर सवाल है तो देवेंद्र फडणवीस प्रमुख दावेदार हैं। इस बात में ज्यादा संशय नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि जब देवेंद्र फडणवीस एकनाथ शिंदे की सरकार में डिप्टी बन सकते हैं तो फिर शिंदे भी फडणवीस के साथ काम कर सकते हैं। वे फडणवीस सरकार में डिप्टी सीएम बन सकते हैं।
नागपुर में लोकमत के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक जानकार फहीम खान ने बताया कि महाविकास अघाडी ने नहीं सोचा था कि ऐसे हारेंगे। भाजपा ने जिस तरह से सीटें जीती है बहिण योजना का फायदा मिला। पार्टियों के पारंपरिक चिन्हों को लेकर भी लोगों को कन्फ्यूजन हुआ है। पिछले ढाई साल में महायुति ने जमकर ब्रांडिंग की। सीएम के लिए कोई पैंच नहीं फंसेगा, देवेंद्र फडणवीस तय नाम है सीएम पद के लिए। अगर सीएम देवेंद्र फडणवीस बनते हैं तो गृहमंत्रालय भी अपने पास रखेंगे क्योंकि इस पद पर रहते हुए उन्होंने बहुत काम किया और पार्टी के लिए।
आरएसएस की सक्रियता : नागपुर संघ हेडक्वार्टर से जुडे एक संघ पदाधिकारी ने बताया कि महाराष्ट्र चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस की सक्रियता बीजेपी के लिए जमकर फायदेमंद साबित हुई। उन्होंने बताया कि दरअसल संघ काफी पहले से सक्रिय हो गया था। इसके लिए संघ ने अपने करीब 40 अलग अलग सहयोगी संगठनों को जमीन पर उतारा। घर घर संपर्क किया। संघ ने संगठनों के साथ मिलकर मैदान में अपनी छोटी-छोटी टोलियां बनाकर हर गांव और शहर तक अपनी पैठ बनाई और मतदाताओं को अपने पक्ष में किया। संघ से जुड़े संगठन जैसे कि विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, मजदूर संघ, किसान संघ, राष्ट्र सेविका समिति, दुर्गा शक्ति जैसे संगठनों के कार्यकर्ता जागरण मंच के बैनर के तहत घर-घर पहुंचे। इन संगठनों भूमि जिहाद, लव जिहाद, धर्मांतरण, पथराव, दंगा, भ्रष्टाचार, महिला उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर लोगों को जागरूक किया। इसके साथ ही संघ और उसके सहयोगी संगठन ने मतदाताओं को बूथ केंद्र तक ले जाने का दांव बीजेपी के लिए अहम फैक्टर साबित हुआ।
विदर्भ के लिए शाह का मैनेजमेंट : महाराष्ट्र के जानकारों का मानना है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र के चुनाव मैनेजमेंट की कमान संभालने के बाद ग्राउंड स्तर पर बहुत बदलाव हुआ। वहीं पीएम मोदी ने अपनी जनसभाओं के जरिए सियासी माहौल को बदला। बीजेपी ने इस बार विदर्भ पर भी खास ध्यान दिया। विदर्भ में महायुति ने अपनी स्थिति को काफी सुधारा है। इसके अलावा मराठवाड़ा और वेस्ट महाराष्ट्र में बीजेपी ने मराठा आरक्षण आंदोलन के असर को बेअसर करने के लिए हिंदुत्व का आक्रामक दांव खेला।
ऐसे बदला महाराष्ट्र का गेम : वरिष्ठ पत्रकार कमल शर्मा ने बताया कि लाडकी बहीण योजना और महिला वोटर्स गेमचेंजर-महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन की जीत का बड़ा कारण लाडकी बहना योजना है। लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार ने राज्य की महिला वोटरों को साधने के लिए लाड़की बहना योजना का एलान कर दिया है और चुनाव से पहले महिलाओं के खाते में दिसंबर तक पैसा भेजकर ऐसा कार्ड चला जो चुनाव में उसके लिए ट्रंप कार्ड साबित हुआ। वहीं चुनाव के दौरान महायुति ने सत्ता में वापसी पर लाडकी बहीण योजना की राशि बढ़ाने का एलान कर महिला वोटरों को अपने साथ जोड़ लिया।
टूट का फायदा : एक तरफ शरद पवार और अजित पवार के बीच टूट के बाद जहां शरद पवार का पावर कम हुआ, वहीं महाविकास अघाड़ी में फूट का फायदा-महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इस बार दो गठबंधन महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच सीधा मुकाबला था और चुनाव के दौरान जिस तरह से महाविकास अघाड़ी में सीटों के बंटवारे से लेकर सीएम चेहरे को लेकर तकरार दिखाई दी उसका सीधा फायदा महायुति गठबंधन को मिला।
शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने पीछे रखा : वोटिंग से ठीक पहले जहां महायुति गठबंधन के दो बड़े नेता एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने अपना नाम मुख्यमंत्री चेहरे से पीछे रखा वहीं दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी में शामिल उद्धव ठाकरे का यह बयान कि महाविकास अघाड़ी को अपना सीएम चेहरा घोषित करना चाहिए, उनकी आपसी खींचतान को बताती है। इसका असर यह हुआ है कि चुनाव के दौरान महाविकास अघाड़ी में शामिल तीनों दल के कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर एक नहीं हो पाए।
कुल मिलाकर आरएसएस की सक्रियता से लेकर लाडकी बहीण योजना, वोट प्रतिशत में इजाफा और महिलाओं का वोट देने के लिए बडी तादात में आगे आना बीजेपी और सहयोगी दलों के लिए बेहद फायदेमंद रहा।