बांछड़ा समुदाय के डेरों में अब आदिवासी इलाकों की गरीब लड़कियां भी तस्करी के माध्यम से लाई जा रही हैं। इन लड़कियों में बहुत ही छोटी उम्र में खरीद लिया जाता है तथा किशोरावस्था की देहलीज पर पहुंचते ही इन्हें जिस्म के खरीदारों के सामने डाल दिया जाता है।
मानव तस्करी के जरिए लाई गईं इन लड़कियों के साथ बांछड़ा समुदाय के लोगों का चूंकि कोई भावनात्मक रिश्ता भी नहीं होता, इसलिए इनके साथ जुल्म की कभी खत्म नहीं होने वाली कहानी शुरू हो जाती है। ऐसे में वे जिंदा रहकर भी मौत से बदतर जिंदगी जीने को मजबूर होती हैं।
हवस की मंडी का खौफनाक सच...
इस मामले में एंटी ड्रग मूवमेंट के संयोजक और पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष सुरेन्द्र सेठी कहते हैं कि वेश्यावृत्ति के साथ मानव तस्करी का जुड़ना एक खौफनाक बात है क्योंकि खरीदी गई लड़कियों के साथ बांछड़ों का कोई कोई भावनात्मक रिश्ता नहीं होता और ये इन मासूमों के साथ बड़ी बेरहमी से पेश आते हैं। 10 से 12 वर्ष की उम्र होते-होते तो इन्हें देहव्यापार के धंधे में उतार दिया जाता है।
वे कहते हैं झाबुआ के आदिवासी अंचल और खरगोन इलाके से स्टाम्प पर लिखा-पढ़ी कर लड़कियां लाई जाती हैं। मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति परिषद के प्रदेष महामंत्री प्रभुलालचंदेल का कहना है कि राज्य की भाजपा सरकार बेटी बचाओ अभियान का लाख ढिंढोरा पीटे, लेकिन जमीनी सच्चाई रोंगटे खड़े कर देने वाली है। बांछड़ों की इस खरीद-फरोख्त का सबसे ज्यादा शिकार दलित समाज हो रहा है क्योंकि दलित वर्ग गरीब है। ऐसे में ये उन्हें आसानी से अपने जाल में फंसा लेते हैं।
इस मामले मे सामाजिक कार्यकर्ता और रेडक्रास नीमच के पूर्व चैयरमेन रवीन्द्र मेहता कहते हैं कि बांछड़ा डेरों से मानव तस्करी कर लाई गई लड़कियों से बर्बरतापूर्वक जिस्मफरोशी करवाई जाती है। इनका नियमित मेडिकल चेकअप वगैरह भी नहीं होता। ये पूरी तरह असुरक्षित यौन संबंध बनाती हैं, जिससे इनमें एड्स जैसी जानलेवा बीमारियां फैलने का अंदेशा बना रहता है। चूंकि ये खरीदकर कर लाई जाती हैं इसलिए इनकी ज्यादा परवाह नहीं की जाती।
जागरूकता अभियान की जरूरत : एसपी टीके विधार्थी ने खास बातचीत में मानव तस्करी और बांछड़ा समुदाय की सामाजिक बुराई पर बोलते हुए कहा कि इस दिशा में पुलिस के जितने भी प्रयास होंगे, वो नाकाफी हैं। पुलिस आखिर कितने मुकदमे कायम करेगी। पुलिस की कार्रवाई उतनी असरकारी भी नहीं है। इसके लिए सोशल अवेयरनेस की जरूरत है। यह एक सामूहिक बुराई है। अभी हाल ही में हमने इस दिशा में प्रयास शुरू भी किए हैं।
हम बांछड़ा समुदाय के डेरों में सर्वे करवाकर यह प्रयास कर रहे हैं कि ये लोग शत प्रतिशत स्कूल जाएं वहीं जो पढ़-लिख चुके हैं उन्हें रोजगार मिले। हमारे अधिकारी ऐसे बांछड़ा युवक युवतियों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करवा रहे हैं। यदि ऐसा हो जाता है तो इसके परिणाम काफी सुखद होंगे। हमारा मानना है कि समाज की मुख्य धारा से जुड़कर ही इस समस्या का प्रभावी हल निकल सकता है।