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Last Updated : मंगलवार, 8 दिसंबर 2020 (17:44 IST)

‘घर की छावनी’ की लेखिका डॉ. हेमलता दिखित का निधन

‘घर की छावनी’ की लेखिका डॉ. हेमलता दिखित का निधन - dr hemlata dikhit
मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति की प्रबंध कार्यकारिणी की सदस्य व हिन्दी परिवार की वरिष्ठ सदस्य डॉ हेमलता दिखित का 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थीं।

12 सितंबर को 1940 में इंदौर के एक फौजी परिवार में जन्मी डॉ दिखित बेहद अनुशासन वाली महिला थीं। उन्होंने होलकर कॉलेज से अंग्रेजी में अध्यापन शुरू किया। हिंदी व अंग्रेजी में समान रूप से अधिकारपूर्वक लिखने वाली डॉक्टर दिखित ने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें ‘घर की छावनी’ प्रमुख है। उन्‍होंने कई अनुवाद किए हैं। वे एक अच्‍छे अनुवादक के तौर भी जानी जाती थीं।

जहां वे लेखन और साहित्‍य की अलग-अलग विधाओं में सक्र‍िय थीं, पहीं उनका परिवार देशसेवा के समर्पित रहा। उनके परिवार में कई पीढ़ियों के सदस्‍यों ने सेना में अपनी सेवाएं दी हैं। बता दें कि उनके परिवार की 5 पीढ़ियां सेना में रही हैं।

धार कॉलेज में प्राचार्य के पद पर रहते हुए वे साल 2000 में सेवानिवृत हुईं, लेकिन उनकी सक्रियता बनी हुई थी। सभी साहित्यिक संस्थाओं के साथ ही कवि, लेखक और उनके पाठकों ने उन्हे अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। इंदौर की होने की वजह से उनके जाने पर इंदौर साहित्‍य जगत में भी एक खालीपन रह गया है।

क्‍या कहता है इंदौर का साहित्‍य जगत?
डॉ हेमलता दि‍खि‍त के निधन पर इंदौर समेत कई शहरों के लेखक और साहित्‍यकारों ने उन्‍हें अपने तरीके से याद किया। इंदौर की साहित्‍यकार ज्‍यौति जैन ने कहा कि दिखि‍त आन्‍टी बगैर वर्दी की सैनिक थीं, उनके परिवार के कई लोग देश की सेवा कर चुके हैं। अनुशासन, कर्मठता और ईमानदारी उनके गुण थे, इन्‍हीं के बल पर वे 80 साल की उम्र में भी सक्रि‍य रहीं और कार्य करती रहीं।

वे समय की पाबंदी को लेकर बेहद चिंतित रहती थीं, अपने आसपास के लोगों को भी अनुशासन का पाठ पढ़ाती थीं, समय के पाबंद रहने वालों को सराहती थीं। इसके अलावा उन्‍होंने बेहद जीवटता के साथ जीवन जिया, यहां तक कि कोरोना काल में भी वे बेहद जिंदादि‍ल रहीं। जितना भी ज्ञान उनके पास था वे हमेशा दूसरों से साझा करती थीं। चाहे वे उनके वि‍द्यार्थी हों, चाहे उनके साथी मित्र या उनके साथी रचनाकार और पाठक ही क्‍यों न हो। आज वे भले देह के रूप में हमारे साथ नहीं रहीं हों, लेकिन अपनी जीवटता और लेखन, अपनी पुस्‍तकें और दस्‍तावेज के रूप में हमेशा साथ रहेगीं।