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  4. BJP could not win even a single seat in Khargone district in 2018
Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला

खरगोन जिले में 2018 में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी भाजपा

खरगोन जिले में 2018 में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी भाजपा - BJP could not win even a single seat in Khargone district in 2018
Khargone district Assembly Election History: खरगोन जिले में 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 6 में से एक भी विधानसभा सीट नहीं पाई थी। 6 में 5 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, जबकि भगवानपुरा सीट पर कांग्रेस के बागी केदार डावर विजयी रहे थे। भाजपा ने इस बार कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल भी दिए हैं। हालां‍‍कि खरगोन संसदीय सीट की बात करें तो फिलहाल इस पर भाजपा का ही कब्जा है। आइए जानते हैं पश्चिम निमाड़ खरगोन की 6 सीटों का हाल... 
 
भीकनगांव : कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी दो बार की विधायक झूमा सोलंकी पर ही भरोसा जताया है। झूमा ने पिछला चुनाव भाजपा के धूल सिंह डावर को 27 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। भाजपा ने इस बार नंदा ब्राह्मणे को उम्मीदवार बनाया है। नंदा 2013 में झूमा सोलंकी से 2000 से भी कम वोटों से हारी थीं। झूमा सोलंकी को इस बार भी मजबूत उम्मीदवार बताया जा रहा है। 
 
बड़वाह : बड़वाह सीट पर कांग्रेस ने एक बार फिर सचिन बिड़ला को उम्मीदवार बताया है। भाजपा ने नरेन्द्र पटेल को प्रत्याशी बनाया है। पिछली बार सचिन ने भाजपा के हितेन्द्र‍ सिंह सोलंकी को 30 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था।

2013 में हितेन्द्र सिंह ने सचिन बिड़ला को 5000 से ज्यादा वोटों से हराया था। तब बिड़ला निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार राजेन्द्र सिंह सोलंकी तीसरे स्थान पर रहे थे। इस बार सचिन और नरेन्द्र दोनों ही गुर्जर समाज से हैं। दोनों के बीच टक्कर कड़ी मानी जा रही है।
 
महेश्वर : महेश्वर सीट पर वर्तमान कांग्रेस की डॉ. विजय लक्ष्मी साधौ एक बार फिर मैदान में हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में डॉ. साधौ ने निर्दलीय प्रत्याशी राजकुमार मेव को 35 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया था। भाजपा के भूपेन्द्र आर्य तीसरे स्थान पर रहे थे। हालांकि 2013 में मेव भाजपा के टिकट पर करीब 5000 वोटों से जीते थे।

इस बार राजकुमार मेव भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में है। माना जा रहा है इस चुनाव में दोनों के बीच अच्छी टक्कर देखने को मिल सकती है। हालांकि अनुभव की बात करें तो निश्चित ही साधौ का पलड़ा भारी है। वे कमलनाथ सरकार में मंत्री रहने के साथ ही राज्यसभा सांसद भी रह चुकी हैं। 
 
कसरावद : कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे मध्य प्रदेश के पूर्व डिप्टी सीएम स्व. सुभाष यादव की यह परंपरागत सीट है। उन्होंने 1993, 1998 और 2003 में इस सीट पर जीत हासिल की। वर्तमान विधायक सचिन यादव उनके ही बेटे हैं। सचिन ने 2018 के चुनाव में भाजपा के आत्माराम पटेल को 5 हजार 539 मतों से हराया था। 2013 में भी सचिन ही विजयी रहे थे।

भाजपा इस सीट पर आखिरी बार 1990 में चुनाव जीती थी, तब भाजपा प्रत्याशी गजानंद चुनाव जीते थे। सचिन के लिए कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ उनके बड़े भाई अरुण यादव भी लगे हुए हैं। हालांकि इस बार सचिन की राह आसान नजर नहीं आ रही है। 
 
खरगोन : कांग्रेस के रवि जोशी खरगोन सीट से वर्तमान विधायक हैं। पिछले चुनाव में जोशी ने भाजपा के बालकृष्ण पाटीदार को 9 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। खरगोन दंगों के कारण भाजपा को इस बार ध्रुवीकरण का फायदा मिल सकता है। साथ ही पाटीदार वोटर भी हार-जीत में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

हालांकि 2013 और 2008 में बालकृष्ण पाटीदार इस सीट पर विधायक रह चुके हैं। एक बार फिर भाजपा ने उन पर भरोसा जताया है। इसके साथ ही खरगोन विधानसभा सीट काफी लकी मानी जाती है। साल 1972 के बाद से इस सीट पर जिस भी पार्टी का उम्मीदवार जीता, सरकार उसी की ही बनी। 
 
भगवानपुरा : खरगोन जिले की भगवानपुरा सीट पर कांग्रेस ने पिछली बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते केदार डावर को उम्मीदवार  बनाया है। केदार ने पिछले यानी 2018 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार जामना सिंह सोलंकी को 9700 से ज्यादा वोटों से हराया था। कांग्रेस के विजय सिंह सोलंकी तीसरे स्थान पर रहे थे। हालांकि 2013 में विजय सोलंकी ने भाजपा उम्मीदवार को हराया था। भाजपा ने इस सीट पर चंद्रसिंह वास्कले को उम्मीदवा बनाया है। माना जा रहा है कि दोनों के बीच कड़ी टक्कर है। परिणाम कुछ भी हो सकता है। 
 
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