Fight on 10 Lok Sabha seats in Gujarat: पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में गुजरात की सभी 26 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए इस बार भी कोई बड़ी बाधा तो नजर नहीं आ रही है, लेकिन राज्य की कम से कम 10 सीटों पर टक्कर देखने को मिल सकती है। यहां भाजपा के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह गुजरात से ही आते हैं, ऐसे में यहां दूसरे सभी मुद्दे गौण हो जाते हैं। लेकिन, क्षत्रिय (राजपूत) समाज की नाराजगी भाजपा को बड़ी जीत के टारगेट से दूर रख सकती है। एक-दो सीट पर परिणाम बदल भी जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
10 सीटों पर फाइट : गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार देवेन्द्र तारकस कहते हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं कि इस बार भी भाजपा सभी 25 सीटें जीत सकती है, लेकिन कम से कम 10 सीटों पर फाइट देखने को मिल रही है। ऐसे में कह सकते हैं कि इन सीटों पर मुकाबला एकतरफा नहीं होगा। भाजपा को हर सीट पर 5 लाख से ज्यादा वोटों की जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा। जामनगर, राजकोट, जूनागढ़, अमरेली, बनासकांठा, साबरकांठा, आणंद समेत करीब 10 सीटों पर टक्कर दिखाई दे रही है।
तारकस कहते हैं कि साबरकांठा सीट पर भाजपा ने वर्तमान सांसद दीप सिंह शंकर सिंह राठौड़ का टिकट काटकर भीखाजी ठाकोर को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन कुछ समय बाद इस सीट पर उम्मीदवार बदल दिया गया। अब यहां कांग्रेस से भाजपा में आए महेन्द्र सिंह बरैया की शिक्षिका पत्नी शोभनाबेन बरैया को उम्मीदवार बनाया है, जिनका राजनीतिक अनुभव भी नहीं है। इससे भी भाजपा कार्यकर्ताओं में नाराजगी है, जिसका असर भाजपा के वोटों पर पड़ सकता है।
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साबरकांठा में कड़ी टक्कर : साबरकांठा सीट पर क्षत्रिय-ठाकोर समुदाय के मतदाताओं की संख्या 6.5 लाख के आसपास है, जबकि आदिवासी वोटरों की संख्या 3 के करीब है। आदिवासी वोटर कांग्रेस का कोर वोटर माना जाता है, जबकि क्षत्रिय समुदाय का विरोध भाजपा को खुले तौर पर झेलना पड़ रहा है। ऐसे में इस सीट पर हार-जीत का अंतर काफी कम होगा। हालांकि भाजपा नेता प्रदीप वाघेला क्षत्रिय समाज से अपील कर चुके हैं। इसका थोड़ा फायदा मिल सकता है। नवसारी सीट जहां से सीआर पाटिल उम्मीदवार हैं, वहां भाजपा बड़ी जीत दर्ज कर सकती है।
दरअसल, क्षत्रिय समाज के विरोध के बावजूद पुरुषोत्तम रूपाला राजकोट से उम्मीदवार बने हुए हैं। भाजपा ने वर्तमान सांसद मोहन कुंदरिया का टिकट काटकर रूपाला को उम्मीदवार बनाया है। कुंदरिया पिछला चुनाव 3 लाख 68 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे। उन्हें कुंदरिया समर्थकों से भी भीतरघात का खतरा हो सकता है। हालांकि रूपाला की टिप्पणी का असर न सिर्फ गुजरात बल्कि राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिला है। आने वाले चरणों में भी इसका असर देखने को मिल सकता है। हालांकि राहुल गांधी राजा-महाराजाओं द्वारा जमीन छीनने संबंधी बयान से भी क्षत्रिय समाज आहत है। अत: समाज के वोट बंट भी सकते हैं।
ग्रामीण इलाकों में गुस्सा ज्यादा : गुजरात के ही वरिष्ठ पत्रकार जनक सिंह झाला कहते हैं कि राजपूत समाज का विरोध शहरों में कम है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में लोगों में गुस्सा ज्यादा है। क्षत्रिय समाज ने 7 स्थानों से धर्मरथ की शुरुआत भी की है। इन रथों के माध्यम से राजकोट, सुरेन्द्रनगर और कच्छ के ग्रामीण इलाकों में क्षत्रिय समाज के लोगों से भाजपा को वोट नहीं देने की अपील की जा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि आप चाहें तो किसी और पार्टी या उम्मीदवार को वोट दें, लेकिन भाजपा को नहीं।
महिलाएं भी रूपाला के खिलाफ प्रतीकात्मक उपवास कर रही हैं। जनक कहते हैं कि राहुल के राजा-महाराज संबंधी बयान का कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। राहुल के बयान के बाद क्षत्रिय समाज असमंजस में हैं। नरेन्द्र मोदी भी कई सभाओं में राहुल के इस बयान का उल्लेख कर चुके हैं।