पहले हार्वे ने ह्यूस्टन को पानी से भरा, अब इरमा कैरेबियाई इलाके में हलचल मचाये है। इसी बीच जोस नाम की आंधी मेक्सिको की खाड़ी से उठने के लिए हवाएं बटोर रही है जबकि अटलांटिक में काटिया से तूफानी तबाही का अंदेशा है।
अगर आप थोड़ा सा ध्यान दें तो देख सकते हैं कि तूफान के इन नामों के अक्षर एक के बाद एक क्रम में हैं। एच, आई, जे और फिर के... वास्तव में उष्णकटिबंधीय तूफानों के लिए आम बोलचाल के नाम अल्फाबेट के आधार पर निकाले जाते हैं। अमेरिका का नेशनल हरिकेन सेंटर हर साल के लिए 21 नाम निकालता है। हर साल के लिए नामों का चयन सात साल पहले कर लिया जाता है।
साल 2022 के लिए जून से नवंबर में आने वाले बड़े तूफानों में पहला तूफान होगा एलेक्स और इक्कीसवां होगा वाल्टर। अगर मौसम खत्म होने से पहले ही शब्द खत्म हो जायें, जैसी कि इस साल आशंका है तो फिर ग्रीक अक्षरों का इस्तेमाल किया जाता है। उनकी शुरुआत "अल्फा" से होती है।
वे आंधियां जो बड़े तूफानों में तब्दील हो जाती हैं, उनके नाम रखना एक गंभीर काम है। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड मेटेयोरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन के पास इसमें वीटो अधिकार है। बहुत कम ही इसके इस्तेमाल की जरूरत पड़ती है लेकिन अप्रैल 2015 में डब्ल्यूएमओ के एक एक्सपर्ट पैनल ने पूर्वोतर पैसिफिक की सूची से "आईसिस" नाम को हटा दिया था। यह नाम तो मिस्र के एक देवता का है, लेकिन इस्लामिक स्टेट के नाम से मेल खा रहा था जो आतंकवादी गतिविधियों का श्रेय लेने के लिए इसका इस्तेमाल करता है।
अटलांटिक बेसिन में तूफानों के नाम रखने के सिलसिला की नींव 1950 के दशक की शुरुआत में पड़ी। इसका मकसद चेतावनी के संदेश को आसान बनाना था। इन नामों को याद रखना नंबर और तकनीकी शब्दों की तुलना में ज्यादा आसान था। इसके अलावा जो पुराने तरीके थे जिनमें लंबाई चौड़ाई का ध्यान रखा जाता था वे ज्यादा मुश्किल थे और उनमें गलतियों की गुंजाइश रहती थी। अब तूफान कोई पेड़ तो है नहीं कि खड़ा रहेगा।
पश्चिमोत्तर प्रशांत के इलाके में उष्णकटिबंधीय तूफानों को टाइफून कहते हैं। वहां भी 14 देशों से मिली जानकारी के आधार पर कुछ साल पहले इनका नाम रखने की शुरुआत की गयी है। सभी देश हर साल 10 नाम सुझाते हैं। इनमें जानवर, पेड़ पौधे, खगोलीय चिन्ह, पौराणिक किरदारों या फिर कोई और चीज। फिर टोक्यो में मौजूद डब्ल्यूएमओ की टाइफून कमेटी इसकी समीक्षा करती है। एक बार स्वीकार कर लने के बाद भी देश चाहें तो नेशनल वेदर की रिपोर्टिंग से बाहर निकल सकते हैं। कोई गलतफहमी ना हो इसलिए तूफानों के नंबर भी डाले जाते हैं।
इसी तरह से हिंद महासागर में नाम रखने की प्रक्रिया में बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हैं। डब्ल्यूएमओ इस प्रक्रिया पर भी नजर रखता है जो 2000 में शुरू हुई थी।
अटलांटिक में तूफान के नामों में अंग्रेजी, स्पेनी और फ्रेंच नाम हैं। इसके अलावा एक पुरुष नाम के बाद एक स्त्री नाम रखा जाता है। नामों के और भी कई कारक हैं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी नाविकों ने अपनी बीवियों और प्रेमिकाओं के नाम पर तूफान का नाम रखने की मांग की। जंग के बाद कई दशकों तक अमेरिकी सरकार के मौसम विशेषज्ञ तूफानों के नाम महिलाओँ के नामों पर ही रखे। 1970 के दशक में इसे लिंगभेदी कह कर आलोचना की गयी और तब 1979 में बदल दिया गया।
एनआर/एके (एएफपी)