क्रिकेट पहले 'पैशन' था और अब करियर है : आर्यमान बिड़ला
- सीमान्त सुवीर
आर्यमान बिड़ला का ताल्लुक उस 'बिड़ला घराने' से हैं, जिसने देश के औद्योगिक विकास में महती भूमिका अदा की है। आइडिया सेल्युलर के चेयरमैन कुमार मंगलम् बिड़ला के इकलौते बेटे आर्यमान ने इस क्रिकेट सीजन में अंडर 23 सीके नायडू ट्रॉफी में लगातार तीन शतक जमाकर उतनी सुर्खियां नहीं बटोरी, जितनी कि इंदौर में मध्यप्रदेश रणजी ट्रॉफी के पदार्पण मैच खेलकर बटोरी है।
पदार्पण मैच में भले ही उन्हें बड़ा स्कोर नहीं करने का मलाल हो, लेकिन उन्होंने इस मलाल को दिल पर नहीं लिया बल्कि ग्रुप 'सी' के अंतिम लीग मैच में मध्यप्रदेश की टीम जीत के साथ रणजी के नॉकआउट में पहुंचने का भरपूर जश्न भी बखूब मनाया।
इंदौर का यही वही होलकर स्टेडियम था, जहां 2006 से लेकर अब तक खेले पांच एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में टीम इंडिया जीत का सेहरा बांधने में सफल रही है और इसी विकेट पर चार दिवसीय मध्यप्रदेश और उड़ीसा के बीच रणजी मुकाबला भी खेला गया। पूरे मैच में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र आर्यमान बिड़ला ही रहे।
मैच के बाद वे ठीक उसी तरह सेलीब्रिटी बने हुए थे, मानो विजयी टीम के कप्तान हो...जबकि असलियत तो यह थी कि 20 साल का नौजवान क्रिकेट बेहद सौम्य और सहज बना रहा। वह टीम के साथ ही होटल में ठहरा और छोटी सी 'ट्रेवलर्स' के साथ ही सफर भी किया, जबकि तीमारदारी में कई कारें लगी हुई थी।
टीम के मैनेजर और फील्डिंग कोच अब्बास अली के आदेश पर उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के 'वेबदुनिया' से विशेष बातचीत की और कहीं से भी यह नहीं लगा कि यह उन उद्योगपति का बेटा है, जिन्हें दुनिया कुमार मंगलम् बिड़ला के नाम से जानती है और जो 5 लाख करोड़ के मालिक हैं।
8 बरस की उम्र से ही आर्यमान को क्रिकेट का जुनून सवार था। पिछले चार साल से वे रीवा संभाग की तरफ से खेल रहे हैं और इस सीजन में उन्होंने अपनी काबिलियत के बूते पर ही मध्यप्रदेश रणजी टीम की 'कैप' पहनी। आर्यमान के हुनर की पहचान यहीं से मिलती है कि उन्होंने कर्नल सीके नायडू ट्रॉफी अंडर-23 टूर्नामेंट के सेमीफाइनल तक 602 रन बनाए थे, जिनमें तीन शतक भी शामिल थे।
पदार्पण रणजी मैच में आर्यमान उड़ीसा के खिलाफ पहली पारी में सिर्फ 19 रन बना सके थे जबकि दूसरी पारी में देवेन्द्र बुंदेला के कॉल पर दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से रन आउट हो गए, जबकि वहां पर रन बिलकुल नहीं था। यह बात खुद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पूर्व सचिव और एमपीसीए के डायरेक्टर ऑफ क्रिकेट संजय जगदाले ने भी स्वीकार की जो इस मैच को तल्लीनता से देख रहे थे।
होलकर के मैदान पर आर्यमान को बड़ी पारी न खेल पाने का मलाल नहीं है। उन्होंने कहा कि क्रिकेट पहले मेरे लिए 'पैशन' था लेकिन अब करियर बन गया है। यह तो शुरुआत है और मैं जमकर मेहनत करूंगा और अपनी पहचान खुद स्थापित करूंगा। मेरे माता-पिता को पहले क्रिकेट का कोई शौक नहीं था लेकिन जब से मैंने खेलना शुरु किया है, वे भी इसमें रुचि लेने लगे हैं। मेरी मां मुझे बहुत ज्यादा प्रोत्साहित करती है।
आर्यमान की मां श्रीमती नीरजा इंदौर की ही हैं और यही कारण है कि उन्हें इस शहर और प्रदेश से विशेष लगाव है। वे चाहती तो अपने बेटे को उस मुंबई में भी प्रतिस्पर्धात्मक क्रिकेट खेलने कहती, जहां से कई धुरंधर क्रिकेटर निकले हैं। उनका क्रिकेट प्रेम यहीं से झलकता है कि इतने व्यस्त कार्यक्रम के बीच भी वे अपने पति यानी कुमार मंगलम बिड़ला को 25 नवम्बर के दिन होलकर स्टेडियम ले आईं, जहां पर उनका लाड़ला रणजी ट्रॉफी का पदार्पण मैच खेल रहा था और मैच का पहला दिन था।
शनिवार के दिन होलकर स्टेडियम में कुमार मंगलम बिड़ला की सादगी भी उस वक्त देखने को मिली, जब उन्हें एमपीसीए के अधिकारियों ने 'विशेष बॉक्स' में आने का न्योता दिया लेकिन बिड़ला दम्पति उस दर्शकदीर्घा से मैच देखते रहे, जिस गैलरी से आम दर्शक वन-डे इंटरनेशनल मैच देखा करते हैं। उन्होंने कोई 'वीआईपी कल्चर' नहीं दिखाया, बल्कि कुमार तो यह पूछते रहे कि उनका बेटा किस पोजीशन पर क्षेत्ररक्षण कर रहा है जबकि श्रीमती नीरजा मोबाइल से बेटे के मैच की वीडियो उतार रही थीं।
सनद रहे कि श्रीमती नीरजा इंदौर की कासलीवाल परिवार से है, जिनका कभी 'एस कुमार' ब्रांड काफी मशहूर हुआ करता था। एलआईजी के आगे जो एबी रोड पर 'नीरजा विला है', यह उन्हीं के नाम पर है। आर्यमान की मां पिछले सप्ताह भी निजी विमान से इंदौर आई थीं और एक घंटे तक वे मध्यप्रदेश और तमिलनाडु के मैच को देखकर रवाना हो गई थी। तब आर्यमान मध्यप्रदेश टीम के 12वें खिलाड़ी थे चूंकि इस बार उनका बेटा प्लेइंग इलेवन में था लिहाजा, उसकी हौसला अफजाई में उन्होंने कोई कमी नहीं रखी।
बहरहाल, बीकॉम कर रहे आर्यमान की ये शुरुआत है, उन्हें अभी बहुत आगे जाना है और क्रिकेट में नए मुकाम हासिल करने हैं। जिस प्रकार का उनमें क्रिकेट जुनून है, वह यहीं से झलकता है कि साढ़े आठ बजे सोने के लिए बिस्तर पर जाने से पहले भी वे क्रिकेट के शॉट्स की ही प्रैक्टिस किया करते हैं...यही कारण है क्रिकेट जगत में उनका कोई 'आदर्श' नहीं है बल्कि वे खुद की अपनी अलग पहचान बनाना चाहते है।