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Written By वार्ता
Last Modified: नई दिल्ली , शनिवार, 4 दिसंबर 2010 (18:21 IST)

भारत की सात भाषाएँ लुप्त होने के कगार पर

भारत की सात भाषाएँ लुप्त होने के कगार पर -
दुनिया की कई भाषाओं के साथ अपने देश की भी सात भाषाएँ लुप्त हो रही हैं। अब तो इन्हें बोलने वालों की संख्या दस हजार से कम रह गई है।

मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री डी पुरंदेश्वरी के अनुसार 1991 और 2001 की जनगणना से पता चलता है कि सात भारतीय भाषाएँ लुप्त होने के कगार पर पहुँच गई है।

1991 की जनगणना के अनुसार इन्हें बोलने वालों की संख्या दस हजार से अधिक थी, पर 2001 की जनगणना के अनुसार इसकी संख्या दस हजार से कम हो गई है। इन भाषाओं में हिमाचल प्रदेश की भाटेआली भाषा भी शामिल है जो बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, मेघालय में बोली जाती हैं।

अन्य भाषाओं में गंडो, कुवी, कोर्वा, माओ, निशांग, सनोरी तथा गंडा आदि शामिल है।

श्रीमती पुरंदेश्वरी के अनुसार इन भाषाओं के संरक्षण तथा इनके लुप्त होने कारणों का अध्ययन करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है। (वार्ता)