शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. करवा चौथ
  4. Short story Katha of Karva Chauth Mata
Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 19 अक्टूबर 2024 (17:56 IST)

करवा चौथ माता की शॉर्ट कथा

करवा चौथ की पौराणिक कथा Mythological Story of Karwa Chauth

करवा चौथ माता की शॉर्ट कथा - Short story Katha of Karva Chauth Mata
Karwa chauth mata ki katha in hindi: उत्तर भारत में सुहागन महिलाएं अपने पति की सेहत और लंबी उम्र की कामना से करवा चौथ का निर्जला व्रत रखती हैं। रात में चांद निकलने के बाद व्रत खोलती हैं। व्रत की पूजा के दौरान महिलाएं करवा चौथ माता की पौराणिक कथा सुनती हैं। पौराणिक कथाओं में एक जोर जहां माता पार्वती अपने पति शिवजी को पाने के लिए तप और व्रत करती है और उसमें सफल हो जाती हैं तो दूसरी ओर सावित्री अपने मृत पति को अपने तप के बल पर यमराज से भी छुड़ाकर ले आती है। इसी तरह करवा नाम की एक शिव भक्त महिला से जुड़ी है करवा चौथ की कथा।ALSO READ: करवा चौथ 2024 : आपके शहर में कब निकलेगा चांद, जानिए सही टाइम
 
करवा चौथ की पौराणिक कथा Mythological Story of Karwa Chauth :-
कहते हैं कि करवा नाम की एक शिव और पार्वती भक्त पतिव्रता स्त्री थीं जिसके नाम पर ही करवा चौथ का व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा है। करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान कर रहा था तभी एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागती हुई आई और आकर उसने अपनी भक्ति के बल पर मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया। मगरमच्छ को बांधकर वह अपनी भक्ति के बल पर ही यमराज के यहां पहुंच गई और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगरमच्छ को पैर पकड़ने के अपराध में आप नरक में ले जाओ।ALSO READ: Karwa Chauth 2024: करवा चौथ पूजन का संपूर्ण पाना, क्लिक करें
 
यमराज बोले, 'लेकिन अभी मगरमच्छ की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, 'अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी।' यह सुनकर यमराज डर गए और उन्होंने मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु रहने का आशीर्वाद दे दिया। तभी से उस महिला को करवा माता कहने लगे और तभी से इस व्रत का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया।