गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. German submarines will be made in India
Written By Author राम यादव
Last Modified: शुक्रवार, 9 जून 2023 (10:29 IST)

भारत में बनेंगी जर्मन पनडुब्बियां

भारत में बनेंगी जर्मन पनडुब्बियां - German submarines will be made in India
किसी ने सोचा नहीं होगा कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से भारत का महत्व अकस्मात बढ़ जायेगा। वही पश्चिमी देश, जो भारत की निंदा-आलोचना करते नहीं थकते थे, भारत की मान-मनौव्वल करने में जुट जायेंगे। भारत का साथ-समर्थन पाने के लिए अपने कुछेक नियम-कानून तक बदलने लगेंगे। 
 
अमेरिका और फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों की तरह अब जर्मनी की भी समझ में आने लगा है कि भारत के निरंतर बढ़ते महत्व की अनदेखी नहीं की जा सकती। इसीलिए, दिसंबर 2022 में जर्मनी की विदेशमंत्री अनालेना बेअरबॉक भारत में थीं। इस वर्ष फ़रवरी में जर्मनी के चांसलर (प्रधानमंत्री) ओलाफ शोल्त्स ने भारत की यात्रा की और अब,  6 तथा 7 जून को, जर्मनी के रक्षामंत्री बोरिस पिस्टोरियुस भी भारत पहुंचे हुए थे। 
 
चांसलर शोल्त्स ने जर्मनी के उद्योग-धंधो में काम करने के लिए भारतीय कुशलकर्मियों को खुला निमंत्रण दिया। भारत की योगविद्या के कायल जर्मनी के रक्षामंत्री पिस्टोरियुस ने भारत के समक्ष प्रस्ताव रखा कि उनका देश रक्षा सामग्रियों के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग करना चाहता है। इसके एक ठोस उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि जर्मनी भारतीय नौसेना के लिए भारत में ही 6 पनडुब्बियों के निर्माण में सहयोग देने के लिए तत्पर है। उनकी उपस्थिति में ही 7 जून को मुंबई की 'मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स' कंपनी और जर्मनी की जहाज़ निर्माता कंपनी 'थ्यिसन-क्रुप मरीन सिस्टम्स' के बीच एक उद्देश्यपत्र पर हस्ताक्षर भी हुए।
 
5 अरब यूरो में 6 पनडुब्बियां : यदि सब-कुछ ठीक रहा, तो भारतीय नौसेना के लिए लगभग 5 अरब यूरोप की लागत से भारत में जर्मन पंडुब्बियों जैसे ही तकनीकी स्तर की 6 पनडुब्बियां बनेंगी। वे डीज़ल-इलेक्ट्रिक ईंजन वाली पनडुब्बियां होंगी। 5 विदेशी कंपनियां भारतीय नौसेना के लिए आवश्यक इन पनडुब्बियों को बनाने की दौड़ में थीं। उनके बीच से भारत सरकार ने अंत में दो कंपनियों का चयन कियाः एक थी, दक्षिण कोरिया की 'दैएवू शिपबिल्डिंग' और दूसरी थी जर्मनी के कील शहर की 'थ्यिसन-क्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS)।'
 
इन कंपनियों के साथ मिलकर काम करने के लिए भारत सरकार की पसंद की सूची में भी अंत में भारत की भी केवल दो ही कंपनियों के नाम रह गए थेः मुंबई की 'मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स' और 'L&T (लार्सन ऐन्ड टूब्रो) शिपबिल्डर्स।'
 
बोरिस पिस्टोरियुस अभी कुछ ही महीनों से जर्मनी के जर्मन रक्षामंत्री हैं। जर्मनी के सबसे बड़े सार्वजनिक रेडियो-टेलीविज़न नेटवर्क ARD के साथ एक इंटरव्यू में भारत को उन्होंने जर्मनी का ''सामरिक'' (स्ट्रैटेजिक) महत्व का एक पार्टनर बताते हुए कहा कि जर्मन उद्योग जगत के लिए यह एक बहुत बड़ा सौदा होगा।
 
अंतिम समझौता दोनों देशों की सरकारों के बीच नहीं, बल्कि दोनों देशों की कंपनियों के बीच होगा। दौड़ में तो स्पेन की 'नवान्तिया'  और फ्रांस की 'नेवल ग्रुप' नाम की कंपनी भी शामिल थी, पर भारतीय रक्षामंत्रालय उनके बताये तकनीकी पक्ष से संतुष्ट नहीं था।
 
भारत ''हिंदू राष्ट्रवादी'' भी, ''सामरिक'' पार्टनर भीः मज़े की बात तो यह है कि एक ओर तो पश्चिमी देश प्रधानमंत्री मोदी और उनकी भाजपा सरकार को ''हिंदू राष्ट्रवादी'' बताकर नाक-भौं सिकड़ते हैं, और दूसरी ओर भारत को अपना ''सामरिक'' पार्टनर घोषित करने की होड़ में भी लगे हुए हैं। जर्मन रक्षामंत्री के नयी दिल्ली पहुंचने के एक ही दिन पहले, 5 जून को अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन भी नयी दिल्ली में थे। 
 
अमेरिका तो पहले ही भारत को अपना सामरिक साथी घोषित कर चुका है। ब्रिटेन और फ्रांस भी यही कहते हैं। पर इन सब देशों के मीडिया इसे पचा नहीं पा रहा है। उनके लिए मोदी, उनकी पार्टी व सरकार केवल ''हिंदू राष्ट्रवादी'' ही नहीं, ''हिंदू फ़ासीवीदी'' (फ़ासिस्ट)  भी है। बल्कि, हिंदू धर्म ही अपने आप में हिटलर के नाज़ीवाद जैसी एक फ़ासिस्ट विचारधारा है, न कि कोई धर्म। भारत में इसीलिए दलितों और अल्पसंख्यक मुस्लिमों का बेशर्मी से दमन होता है। अपने मीडिया के इस बेसुरे राग के कारण पश्चिम की आम जनता समझ नहीं पा रही है कि उनकी सरकारें भारत का गुणगान क्यों करने लगी हैं।
 
भारत हथियारों का सबसे बड़ा आयातकः जर्मनी के रक्षामंत्री बोरिस पिस्टोरियुस ने संभवतः इसे ही लक्ष्य करते हुए जर्मन मीडिया के लोगों से कहा कि भारत के साथ रक्षा सहयोग को जर्मन सरकार एक ऐसे महत्वपूर्ण क़दम के रूप में देखती है, जो सैन्य सामग्रियों के लिए रूस पर निर्भरता से उसे मुक्ति दिला सकती है। उनका कहना था कि भारत रक्षा सामग्रियों का दुनिया का सबसे बड़ा आयातक है और रूस ही कई दशकों से उसके लिए इन सामग्रियों का सबसे बड़ा निर्यातक है। इसीलिए भारत ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की अभी तक निन्दा नहीं की है। 
 
जर्मनी के रक्षामंत्री ने भारत की सराहना करते हुए अपने देश के मीडिया पत्रकारों से कहा कि रूसी हथियारों पर अपनी निर्भरता को ''स्पष्ट तौर पर और तेज़ी से घटाने के लिए भारत सतत प्रयास कर रहा है...  यूरोप और जर्मनी का भारत एक महत्वपूर्ण ही नहीं, बल्कि सबसे महत्पूर्ण सामरिक साथी है।''  उन्होंने संकेत दिया कि भारत के लिए जर्मन हथियारों व अन्य सैन्य सामग्रियों की ख़रीद के नियमों को आसान बनाया जायेगा। 
 
भारत के लिए बनेंगे उदार नियमः पिस्टोरियुस का कहना था कि भविष्य में भारत के प्रति  कुछ उसी तरह के उदार व्यवहार का प्रयास किया जायेगा, जैसा इस समय जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ होता है। इन दोनों देशों को चीन के साथ तनाव के बावजूद जर्मन हथियार ख़रीदने के लिए यह सिद्ध नहीं करना पड़ता कि वे किसी देश के साथ युद्ध या भारी तनाव की स्थिति में नहीं हैं। जर्मनी का हथियार निर्यात क़ानून युद्ध या युद्ध की आशंका वाले देशों को हथियार बेचने की अनुमति नहीं देता। 
 
भारत के संदर्भ में कहा जा सकता है कि उसका चीन और पाकिस्तान के साथ झगड़ा है। दोनों के साथ लड़ाई भी हो चुकी है, इसलिए उसे जर्मन हथियार नहीं दिये जा सकते। जर्मन रक्षामंत्री इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि भारत को अब तक रूस की शरण में इसलिए भी जाना पड़ता था, क्योंकि पश्चिमी देश उसे हथियार बेचने से कतराते थे। भारत द्वारा 1998 में किये गए परमाणु परीक्षणों के बाद तो उसे उच्च कोटि की तकनीकी सामाग्रियां बेचने पर प्रतिबंध ही लगा दिया गया था। वर्षों तक चले इस प्रतिबंध के कारण भी भारत को रूस पर निर्भर होना पड़ा।
 
जर्मन रक्षामंत्री हैं योग के रसियाः मुंबई जाने से पहले जर्मन रक्षामंत्री नयी दिल्ली में थे। वहां सैनिक गारद की सलामी के साथ उनका औपचारिक स्वागत हुआ। वे भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से मिले। उनके साथ हुई बातचीत पर अपनी प्रसन्नता जताते हुए अपने एक ट्वीट में राजनाथ सिंह ने लिखा,  ''योग के प्रति उनकी लगन बहुत ही प्रशंसनीय है।'' 
 
बहुत संभव है कि जर्मन रक्षामंत्री की योगाभ्यास के प्रति लगन भारतीयों को मगन कर देने वाले उनके उदार दृष्टिकोण का भी एक बड़ा कारण हो। उन्होंने इस बात को भी छिपाने का प्रयास नहीं किया कि भारत की तरफ जर्मनी के झुकने से चीन और अधिक उखड़ने लगेगा। उनका मानना था कि समय आ गया है कि जर्मनी चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करे और भारत तथा इन्डोनेशिया जैसे देशों के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ बनाए। 
 
चीन के बदले भारत नया विकल्पः विश्व की पांचवीं आर्थिक शक्ति बन जाने  के बाद से लोकतांत्रिक भारत, अपनी सारी कमज़ोरियों के बावजूद, जर्मनी सहित सभी पश्चिमी देशों को चीन का एक नया विकल्प भी लगने लगा है। वे स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में स्थित अंतरराष्ट्रीय शांति संस्थान (SIPRI)  के इस आकलन की अनदेखी नहीं कर सकते कि अपनी रक्षा तैयारियों पर 2022 में 81.4 अरब डॉलर ख़र्च करने वाला भारत दुनिया का सबसे बड़ा अस्त्र-शस्त्र आयातक और चौथा सबसे बड़े रक्षा-बजट वाला देश बन गया है।
 
सिप्री का यह भी कहना है कि रूसी हथियारों के आयात पर भारत की निर्भरता घटते-घटते अब 45 प्रतिशत के बराबर ही रह गई है। यानी, अन्य देशों से आयात और भारत द्वारा स्वयं हथियारों का निर्माण भी तेज़ी से बढ़ा है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों को दिया जाता है। इसलिए भी पश्चिमी देशों के नेता, अपने मीडिया को दरकिनार कर, भारत और मोदी से हाथ मिलाने के लिए तत्पर नज़र आते हैं।  
ये भी पढ़ें
Sanjeev Jeeva Murder : क्या है शूटर विजय यादव का नेपाल कनेक्शन?