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रंगपंचमी तक चला प्राकृतिक रंगों का उत्सव, जनक दीदी ने बनाए दुर्लभ रंग

रंगपंचमी तक चला प्राकृतिक रंगों का उत्सव, जनक दीदी ने बनाए दुर्लभ रंग - janak palta and Natural Colors
होली आने के एक सप्ताह पूर्व से ही पद्मश्री जनक पलटा मगिलिगन के जिम्मी मगिलिगन सेंटर फ़ॉर सस्टेनेबल डेवेलपमेंट, सनावदिया, इंदौर में विशेष चहल-पहल बढ़ जाती है। यह चहल-पहल सिर्फ दीदी से मिलने वालों की नहीं है क्योंकि वह तो साल भर जारी रहती है। इन दिनों उनके सेंटर की रौनक बढ़ती है उन पर्यावरण प्रेमियों से जो होली पर्व की पारंपरिकता तो बनाए रखना चाहते हैं लेकिन रासायनिक रंगों से स्वयं को और फिर अपने सुंदर परिवेश को बचाए रखना चाहते हैं। होली के एक सप्ताह पूर्व से पद्मश्री जनक पलटा मगिलिगन और उनके साथ जुड़े पर्यावरण प्रेमी साथी प्राकृतिक रंगों को घर में बनाने का प्रशिक्षण देते हैं। यह  प्रशिक्षण हर उम्र, हर वर्ग, हर क्षेत्र के लोग आपकर यहां लेते हैं और ना सिर्फ अपनी होली को सुरक्षित मनाते हैं बल्कि इन प्राकृतिक(ऑर्गेनिक) रंगों से लघु उद्योग भी आरंभ करते हैं। 

 
रीना रावत एक ऐसी ही आदिवासी क्षेत्र की उद्यमी हैं जिसने ना सिर्फ सोलर कुकर पर प्राकृतिक रंग बनाना सीखा बल्कि इंदौर स्थित जैविक सेतु( ऑर्गेनिक सामग्री का अनूठा बाजार) पर उन्हें बेचकर आमदनी का जरिया भी बनाया। रीना जैसे कई नाम है जो होली पर विशेष रूप से आयोजित वर्कशॉप के प्रतिभागी होते हैं और फिर अपने त्योहार को बिना किसी परेशानी के उल्लास से मनाते हैं। यहां आकर वर्कशॉप में प्रशिक्षण लेने वालों में स्कूल, कॉलेज,संस्थानों के विद्यार्थी भी होते हैं, श हर के विविध संगठनों के सदस्य भी होते हैं और अपने-अपने क्षेत्र के जाने-माने नाम भी होते हैं। यह सभी होली तक और फिर बाद में रंगपंचमी तक बड़ी संख्या में यहां भागीदार होते हैं, प्राकृतिक गीले व सूखे रंगों को सोलर ड्रायर पर बनाना सीखते हैं और तत्पश्चात उनका प्रयोग पर्व मनाने में करते हैं। इनमें से अधिसंख्य इसे अपने रोजगार के रूप में भी अपनाते हैं और पर्वों पर इन्हें बनाकर आजीविका कमाते हैं।   
 
कैसे बनते हैं प्राकृतिक रंग 
 
डॉ. जनक पलटा मगिलिगन व उनकी टीम इस एक हफ्ते में यह बताती है कि कैसे टेसू, गुलाब की पांखुरियां, कीनू-संतरा के छिलके, पोई, पारिजात, अंबाड़ी, पलाश आदि को सोलर ड्रायर व सोलर कुकर पर सूखाकर गीले व सूखे रंग बनाए जाते हैं। इनसे मुख्य रूप से उन्नाबी, गुलाबी, पीले, केशरिया रंग बनते हैं। 
 
जिम्मी सेंटर पर चलने वाले इस कार्यक्रम के प्रमुख प्रतिभागियों में गरिमा मिश्रा, समीर शर्मा, निकी सुरेका, कर्नल अनुराग शुक्ला, देवल वर्मा, वरूण रहेजा, सुनील चौहान, नंदा चौहान, रवीना चौहान, राजेन्द्र चौहान के अलावा शहर के सभी बड़े स्कूल व कॉलेज के विद्यार्थी शामिल हुए।  
 
डॉ. जनक पलटा मगिलिगन पिछले 6 सालों से लोगों को सप्ताह भर होली के लिए प्राकृतिक रंगों का निशुल्क प्रशिक्षण दे रही हैं। स्वच्छ, स्वस्थ व सुंदर होली खेलने के लिए अपने आसपास की जनता को सशक्त कर रही हैं। उनके अनुसार होली शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से सजीला रंगोत्सव है। यह प्यार का मधुर संदेश देने वाला रंगों का एक त्योहार है। 
 
वे कहती हैं कि सस्टेनेबल गोल्स में से एक गोल 'जिम्मेदार निर्माता और उपभोक्ताओं को बनाना है' ताकि पर्यावरण और लोगों को प्रदूषण व रासायनिक दुष्प्रभावों से बचाया जा सके।  मैं मानती हूं कि प्राणियों में सदभावना बढ़ानी है तो हमें प्रकृति से उतना ही गहरा तादात्म्य स्थापित करना होगा। 
 
होली के अवसर पर 6 वर्षों से वह प्राकृतिक उत्पादों द्वारा गीले व सूखे लगाने वाले रंग बनाना सिखाती है। इन रंगों के निर्माण की लागत कुछ भी नहीं है और सबसे महत्वपूर्ण इन्हें आसानी से उतारा जाता है और यह त्वचा, आंख, बाल, कान, मुंह, नाक व श्वसन तंत्र के लिए बिल्कुल सुरक्षित हैं। 
 
इस वर्ष इंदौर दूरदर्शन के प्रोग्राम प्रमुख श्री जयंत श्रीवास्तव ने 23 फरवरी 2018 को सुबह 10 बजे गांव सनावादिया में इस अनूठी प्रशिक्षण कार्यशाला का उद्घाटन किया। उसके बाद होली और रंगपंचमी तक जिम्मी सेंटर पर यह रंगीली रौनक बरकरार रही। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के अनुरूप सुरक्षित और स्वस्थ होली खेलना सिखाना है।