होलाष्टक की कथा क्या कहती है?
holashtak ki pauranik katha in hindi होलिका दहन से पहले के 8 दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक पर्व माना जाता है। इस वर्ष 10 मार्च 2022 से होलाष्टक (Holashtak 2022) लग रहा है, जो कि होलिका दहन के साथ समाप्त हो जाएगा। यहां पढ़ें होलाष्टक की कथा (holashtak katha)-
होलाष्टक का संबंध इन 2 कथाओं से है। पहली कथा भक्त प्रहलाद और दूसरी कथा कामदेव से जुड़ी है। यह दोनों कथाएं प्रचलित है।
1. पहली कथा भक्त प्रहलाद की- इस कथा के अनुसार भक्त प्रहलाद को उसके पिता ने हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र की भक्ति को भंग करने और उसका ध्यान अपनी ओर करने के लिए लगातार 8 दिनों तक तमाम तरह की यातनाएं और कष्ट दिए थे। इसलिए कहा जाता है कि, होलाष्टक के इन 8 दिनों में किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यह 8 दिन वहीं होलाष्टक के दिन माने जाते है।
होलिका दहन के बाद ही जब प्रहलाद जीवित बच जाता है, तो उसकी जान बच जाने की खुशी में ही दूसरे दिन रंगों की होली या धुलेंड़ी मनाई जाती है।
2. दूसरी कथा कामदेव के भस्म होने की- इस कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान भोलेनाथ से हो जाए परंतु शिव जी अपनी तपस्या में लीन थे। तब कामदेव पार्वती की सहायता के लिए को आए। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई। शिव जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। कामदेव का शरीर उनके क्रोध की ज्वाला में भस्म हो गया। फिर शिव जी ने पार्वती को देखा।
पार्वती की आराधना सफल हुई और शिव जी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इसीलिए पुराने समय से होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर अपने सच्चे प्रेम का विजय उत्सव मनाया जाता है।
जिस दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था वह दिन फाल्गुन शुक्ल अष्टमी थी। तभी से होलाष्टक की प्रथा आरंभ हुई। जब कामदेव की पत्नी शिव जी से उन्हें पुनर्जीवित करने की प्रार्थना करती है। रति की भक्ति को देखकर शिव जी इस दिन कामदेव को दूसरा जन्म में उन्हें फिर से रति मिलन का वचन दे देते हैं। कामदेव बाद में श्री कृष्ण के यहां उनके पुत्र प्रद्युम्न रूप में जन्म लेते हैं।