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Last Updated : मंगलवार, 27 जून 2023 (10:53 IST)

कब है देवशयनी एकादशी 2023, जानिए मुहूर्त, महत्व, उपाय, मंत्र, कथा, पूजा विधि

कब है देवशयनी एकादशी 2023, जानिए मुहूर्त, महत्व, उपाय, मंत्र, कथा, पूजा विधि - Devshayani Ekadashi 2023 Date, Muhurat n Katha
devshayani ekadashi 2023 
 
इस वर्ष 29 जून 2023, गुरुवार को देवशयनी या हरिशयनी एकादशी मनाई जा रही है। इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन देवशयनी एकादशी मनाई जाती है, जो कि कार्तिक शुक्ल एकादशी तक यानी यह 4 माह श्री विष्णु जी का शयनकाल माना जाता है। आइए यहां जानते हैं इस एकादशी के बारे में संपूर्ण जानकारी एक स्थान पर...
 
मुहूर्त देवशयनी एकादशी 2023 : Devshayani Ekadashi Muhurat 2023 
जून 29, 2023, गुरुवार को देवशयनी एकादशी
आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी का प्रारंभ 29 जून, गुरुवार को 03.18 ए एम से होकर 30 जून को, शुक्रवार को 02.42 ए एम पर समापन होगा। 
 
दिन का चौघड़िया : 
शुभ- 05.26 ए एम से 07.11 ए एम
चर- 10.40 ए एम से 12.25 पी एम
लाभ- 12.25 पी एम से 02.09 पी एम
अमृत- 02.09 पी एम से 03.54 पी एम
शुभ- 05.38 पी एम से 07.23 पी एम
 
रात्रि का चौघड़िया :
अमृत- 07.23 पी एम से 08.38 पी एम
चर- 08.38 पी एम से 09.54 पी एम
लाभ- 12.25 ए एम से 30 जून 01.40 ए एम 
शुभ- 02.55 ए एम से 30 जून 04.11 ए एम
अमृत- 04.11 ए एम से 30 जून 05.26 ए एम। 
 
पारण समय : Devshayani Ekadashi Paran Time
पारण/व्रत तोड़ने का समय- 30 जून 2023, शुक्रवार, को 01.48 पी एम से 04.36 पी एम तक।
हरि वासर समाप्त होने का समय- 08:20 ए एम।
 
महत्व: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी/ हरिशयनी एकादशी कहते हैं। इस दिन से संसार के पालनहार श्रीहरि भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होते हैं, क्योंकि यह समय चातुर्मास का होता है। इस दौरान साधु-संत एक ही स्थान पर निवास करके प्रभु की साधना करते हैं, उनका भ्रमण बंद हो जाता है। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि की विधिवत पूजन से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। मन शुद्ध, निर्मल होता है तथा विकार दूर हो जाते हैं। इस व्रत से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा मृत्यु पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।


 
उपाय : devshayani ekadashi upay 
 
1. एकादशी के दिन पीपल में श्रीविष्णु का वास होता है इसलिए पीपल में जल अर्पित करें।
2. भगवान विष्णु को शयन कराने के पूर्व खीर, पीले फल और पीले रंगी मिठाई का भोग लगाएं।
3. यदि धनलाभ की इच्छा है तो श्रीहरि विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा करें।
4. इस दिन शाम को तुलसी माता के सामने गाय के घी का दीपक जलाएं और उन्हें प्रणाम करें। ध्यान रखें कि माता तुलसी को जल अर्पित नहीं करना है।
5. दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु का अभिषेक करें।
 
एकादशी मंत्र : devshayani ekadashi mantra 
 
1. हरिशयन मंत्र :  सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।
 
2. देवशयनी एकादशी संकल्प मंत्र :
सत्यस्थ: सत्यसंकल्प: सत्यवित् सत्यदस्तथा।
धर्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जित:।।
कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जित:।।
 
3. देवशयनी एकादशी विष्णु क्षमा मंत्र :
भक्तस्तुतो भक्तपर: कीर्तिद: कीर्तिवर्धन:।
कीर्तिर्दीप्ति: क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।।
 
देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा : devshayani ekadashi story
 
इस एकादशी की पौराणिक कथा के अनुसार सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी सारी प्रजा धन-धान्य से भरपूर और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था।
 
एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुखी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञादि भी बंद हो गए। एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजा! सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है, क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है। वर्षा के अभाव से अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है। इसलिए हे राजन! कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो। 
 
राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दुखी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दुखों को समझता हूं। ऐसा कहकर राजा कुछ सेना साथ लेकर वन की तरफ चल दिया। वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वहां राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया। 
 
मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशलक्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवन! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है। इससे प्रजा अत्यंत दुखी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा है। जब मैं धर्मानुसार राज्य करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका। अब मैं आपके पास इसी संदेह को निवृत्त कराने के लिए आया हूं। कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए। 
 
इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इसमें धर्म को चारों चरण सम्मिलित हैं अर्थात इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है। ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं, परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है।
 
इसलिए यदि आप प्रजा का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो। इस पर राजा कहने लगा कि महाराज मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा या हरिशयनी नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। 
 
व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो। मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा। अत: इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला तथा समस्त पापों का नाश करने वाला हैं।
 
पूजा विधि : devshayani ekadashi puja vidhi 
 
- देवशयनी एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले जागकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। 
- एक चौकी पर नया कपड़ा बिछाकर भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
- इस दिन श्री विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उनका पंचोपचार या षोडषोपचार विधिवत पूजन करें। 
- भगवान विष्णु को पीला रंग अधिक प्रिय है, अत: पूजन के समय उन्हें पीले रंग के पुष्प चढ़ाएं। 
- विष्णु जी की पूजा करते समय धूप-दीप जलाएं। 
- श्री विष्‍णु की कथा का वाचन करें। 
- पूजन के बाद विष्णु जी और लक्ष्मी जी की आरती करें। 
- पूजन के उपरांत पीले रंग की मिठाई अथवा पीले फलों का भोग लगाएं।
- श्री विष्णु का निवास पीपल और केले के वृक्ष में भी माना गया है अत: इन पेड़ों की पूजा अवश्‍य करें और जल भी चढ़ाएं। 
- श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। 
- भगवान् श्रीहरि विष्णु के नामों का अधिक से अधिक जाप करें। 
 
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