गुरुवार, 21 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. दीपावली
  4. skanda sashti vrat
Written By अनिरुद्ध जोशी

स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व

स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व | skanda sashti vrat
शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को स्कंद कहा गया है। कुछ लोग आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी मानते हैं और 'तिथितत्त्व' में चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को 'स्कंद षष्ठी' कहा है, लेकिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की षष्ठी को भी 'स्कंद षष्ठी व्रत' के नाम से जाना जाता है।
 
 
यह व्रत 'संतान षष्ठी' नाम से भी जाना जाता है। स्कंदपुराण के नारद-नारायण संवाद में इस व्रत की महिमा का वर्णन मिलता है। इस व्रत को रखने से संतान की सभी तरह की पीड़ा का शमन हो जाता है। एक दिन पूर्व व्रत रख कर षष्ठी को कार्तिकेय की पूजा की जाती है। 
 
दक्षिण भारत में इस व्रत का ज्यादा प्रचलन है। खासकर तमिलनाडु में यह व्रत प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। वर्ष के किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह व्रत आरंभ किया जा सकता है। खासकर चैत्र, आश्विन और कार्तिक मास की षष्ठी को इस व्रत को आरंभ करने का प्रचलन अधिक है।
 
स्कंद षष्ठी के अवसर पर शिव-पार्वती की पूजा के साथ ही स्कंद की पूजा की जाती है। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। दक्षिण भारत में कार्तिकेय को कुमार, स्कंद और मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है।
 
स्कंद षष्ठी की कथा के अनुसार स्कंद षष्ठी के व्रत से च्यवन ऋषि को आंखों की ज्योति प्राप्त हुई थी। स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो गया था। इस तरह इसके व्रत के महत्व के कई उदाहरण पुराणों में मिलते हैं।
ये भी पढ़ें
October 2019 Festivals List : कई बड़े त्योहार आएंगे अक्टूबर 2019 में, जानिए तीज-त्योहार