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Last Updated : शुक्रवार, 20 सितम्बर 2019 (18:59 IST)

पल पल दिल के पास : फिल्म समी‍क्षा

पल पल दिल के पास : फिल्म समी‍क्षा - Pal Pal Dil Ke Pass, Movie Review in Hindi, Sunny Deol, Karan Deol, Samay Tamrakar, Sehhar Bambba, Bollywood
धर्मेन्द्र ने 1960 से फिल्मों में कदम रखा था और पिछले 59 साल से देओल परिवार का कोई न कोई सदस्य दर्शकों का मनोरंजन करते आया है। इस खानदान की तीसरी पीढ़ी के सदस्य करण देओल की फिल्मों में लांचिंग के लिए 'पल पल दिल के पास' बनाई गई है और इसका नाम धर्मेन्द्र पर फिल्माए गए एक मधुर गीत का मुखड़ा है। 
 
धर्मेन्द्र ने सनी देओल को लांच किया था और सनी ने अपने बेटे करण के लिए फिल्म बनाई है। सनी के लिए 'बेताब' (1983) बनाते समय धर्मेन्द्र ने सूझबूझ का परिचय दिया। उन्होंने स्टार राइटर जावेद अख्तर से कहानी लिखवाई। महान संगीतकार आरडी बर्मन से संगीत लिया। निर्देशन का जिम्मा राहुल रवैल को सौंपा। एक अच्छी कहानी चुनी जिसने सनी को सीधे स्टार बना दिया। माहौल ऐसा बनाया कि धरम के पुत्तर को देखने के लिए दर्शकों की सिनेमाघर में भीड़ मच गई। 
 
धर्मेन्द्र जैसी सूझबूझ सनी नहीं दिखा पाए। सनी ने करण के लिए बहुत ही कमजोर और आउटडेटेट कहानी चुनी। खुद बहुत काबिल निर्देशक नहीं है, लेकिन खुद ने ही डायरेक्टर बन बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले ली। नतीजे में 'पल पल दिल के पास' जैसी फिल्म सामने आती है जो बहुत ही लचर है। 
 
बेताब में सनी का जो किरदार था उसकी छाप करण के किरदार में भी नजर आती है। हिमाचल की वादियों में करण रहता है और ब्लॉग की दुनिया की स्टार सहर एक ट्रिप पर आती है, जो करण को पहले तो नापसंद करती है, लेकिन धीरे-धीरे नापसंद, पसंद में बदलने लगती है। 
 
फिल्म के पहले हाफ में पहाड़, झरने, जंगल, तारों से भरा आसमान, ट्रैकिंग, नदी दिखाई गई है। हीरो-हीरोइन की नोकझोक है, एडवेंचर है, लेकिन ये सब कमजोर कहानी और स्क्रीनप्ले के कारण बिलकुल भी प्रभावित नहीं कर पाता। करण और सहर का रोमांस दर्शकों के दिल को छू नहीं पाता। 
 
शुरुआती आधा घंटा तो बहुत बोर है। जब हीरो-हीरोइन के रोमांस में थोड़ी दिलचस्पी जागती है तो इंटरवल हो जाता है। इसके बाद कहानी को हिमाचल की वादियों से हटा कर दिल्ली ले जाया गया और फिल्म पूरी तरह बिखर जाती है। 
 
प्रेम कहानी में बाधाएं दिखाने के लिए सहर का एक्स बॉयफ्रेंड, उसकी मां पॉवरफुल नेता, ब्रेकअप, सोशल मीडिया पर फोटो वायरल करने की धमकी जैसे बरसों पुराने स्पीड ब्रेकर दिखाए गए हैं। 
 
ये थकी-थकाई बातें सेकंड हाफ में इतनी खींची गई है कि महसूस होने लगता है कि अब फिल्म खत्म होनी चाहिए। निर्देशक सनी देओल भी थक गए तो उन्होंने अचानक उन्होंने 'द एंड' दिखा कर दर्शकों को घर जाने की इजाजत दे दी। कहने का मतलब ये कि फिल्म में बिलकुल भी मनोरंजन नहीं है। 
 
निर्देशक के रूप में सनी देओल ने खराब स्क्रिप्ट चुन कर मामला ही बिगाड़ लिया। फिर उसे चंद मधुर गाने और खूबसूरत लोकेशन्स भी कैसे बचा सकते थे।
 
करण के लिए यह फिल्म बनाई गई है। करण के चेहरे पर मोटापा नजर आता है। फिल्म में एक संवाद भी है कि तू ऐसा 'गब्बू' ही अच्‍छा लगता है, लेकिन दर्शकों को यह शायद ही पसंद आए। करण को अपने लुक के लिए कुछ करना चाहिए यदि वे 'स्टार' बनना चाहते हों तो। 
 
जहां तक अभिनय का सवाल है तो करण में आत्मविश्वास तो है, लेकिन एक्टिंग की बारीकियां अभी उन्हें सीखना पड़ेगी। डायलॉग डिलेवरी पर भी उन्हें खासी मेहनत करना होगी। अभी शब्दों को वे चबा कर बोलते हैं। 
 
करण के मुकाबले सहर बाम्बा कैमरे के सामने ज्यादा सहज नजर आईं। उन्होंने खुल कर अभिनय किया है और फर्स्ट हाफ में उन्हें मौका भी अच्छा मिला है। 
 
कुल मिलाकर पल पल दिल के पास में पल-पल गुजारना आसान नहीं है। 
 
निर्माता : ज़ी स्टूडियोज़, सनी साउंड प्रा.लि.
निर्देशक : सनी देओल
संगीत : संचेत-परम्परा, तनिष्क बागची
कलाकार : करण देओल, सहर बाम्बा
रेटिंग : 1/5