मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. फिल्म समीक्षा
  4. Cuttputlli Review satrring Akshay Kumar

Cuttputlli Review कठपुतली फिल्म समीक्षा: अक्षय कुमार की फिल्म बिना थ्रिल की थ्रिलर

Cuttputlli Review कठपुतली फिल्म समीक्षा: अक्षय कुमार की फिल्म बिना थ्रिल की थ्रिलर - Cuttputlli Review satrring Akshay Kumar
रीमेक के दौर में तमिल फिल्म 'रत्सासन' का हिंदी रीमेक 'कठपुतली' के नाम से रिलीज हुआ है। अक्षय कुमार जैसे बड़े स्टार के फिल्म में होने के बावजूद इसे सीधे ओटीटी पर रिलीज किया गया है। इस बात का यह मतलब भी निकाला जा सकता है कि प्रोड्यूसर को भी अपने प्रोडक्ट पर भरोसा नहीं था क्योंकि थिएटर में यह फिल्म रिलीज होती तो निश्चित रूप से बॉक्स ऑफिस पर असफल होती। 
 
कहानी अर्जन सेठी (अक्षय कुमार) की है जिसने सीरियल किलर पर एक कहानी लिखी है, लेकिन कोई भी प्रोड्यूसर उस पर फिल्म बनाने को तैयार नहीं है। आखिरकार वह 36 साल की उम्र में पुलिस ऑफिसर बनता है और कसौली में उसकी पोस्टिंग होती है। 
 
कसौली में एक के बाद एक टीनएज लड़कियों की हत्या की जा रही है। सभी हत्याओं का एक सा पैटर्न है और यह काम सीरियल किलर का लग रहा है। अर्जन द्वारा फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने में की गई मेहनत के इस जटिल केस को सुलझाने में काम आती है। 
 
कठपुतली एक थ्रिलर के रूप में डिजाइन की गई है, लेकिन कहानी और स्क्रीनप्ले में इतने झोल है कि आप समझ जाते हैं कि क्यों ओटीटी पर इसको सीधे रिलीज किया गया है। 
 
तुषार त्रिवेदी और असीम अरोरा ने अपनी सहूलियत के हिसाब से इस मूवी को लिखा है और यह बात भूल गए कि दर्शक भी सोचने-समझने की शक्ति रखते हैं। 
 
फिल्म की शुरुआत में दिखाया गया है कि इन हत्याओं का केस गुड़िया परमार (सरगुन मेहता) सुलझा रही है और अर्जन के इनपुट्स नहीं लेना चाहती। अर्जन को बुद्धिमान दिखाने के लिए जिस तरह दृश्यों की जमावट की गई है वो बेदम है। 
 
स्कूल में गणित पढ़ाने वाले टीचर पर जब जरूरत से ज्यादा फोकस किया जाता है तो दर्शक फौरन समझ जाते हैं कि वो सीरियल किलर नहीं है। 
 
यह टीचर नौवीं कक्षाओं की लड़कियों को जिस तरह से शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है वो बात हैरान करती है क्योंकि यह स्कूल बड़ा और नामी है न कि ग्रामीण इलाके का कोई स्कूल। क्यों कोई लड़की कभी इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाती? क्यों किसी से शिकायत नहीं करतीं?   
 
पुलिस महकमे में अर्जन ही होशियार लगता है और दूसरे पुलिस वाले बुद्धू नजर आते हैं। अर्जन भी कड़ियों को इतना धीमा जोड़ता है कि दर्शक उससे दो चाल आगे रहते हैं और जान जाते हैं कि अब क्या होने वाला है। 
 
किलर को ढूंढने का जो ट्रैक है उसमें न तनाव है और न ही थ्रिल। किलर ऐसा क्यों कर रहा है, इस राज से परदा उठाया जाता है तो कोई रोमांच पैदा नहीं होता। किलर को जितना होशियार फिल्म में बार-बार संवादों के जरिये बताया गया है उतना होशियार वो दिखाई नहीं देता, कई गलतियां वो करता है।
 
ऊपर से फिल्म में रोमांस, गाना और फैमिली ड्रामा वाले दृश्य भी डाल दिए गए हैं जो बिलकुल फिट नहीं लगते। यदि ओटीटी के लिए फिल्म बना रहे हैं तो इस तरह के कमर्शियल फिल्मों के फॉर्मूलों से परहेज ही करना चाहिए।  
 
 
निर्देशक रंजीत एम. तिवारी का निर्देशन औसत दर्जे का है। ड्रामे को वे मनोरंजक नहीं बना पाए। फिल्म का पहला घंटा बेहद सुस्त है और कहानी आगे ही नहीं बढ़ती। बिना मतलब की बातों को खींचा गया है।  
 
अक्षय कुमार का काम औसत रहा। रकुल प्रीत सिंह को जो भी दृश्य मिले वो कहानी को आगे नहीं ले जाते। रकुल और अक्षय की उम्र का फर्क साफ नजर आता है। सरगुन मेहता और चंद्रचूड़ सिंह अपने किरदारों में मिसफिट नजर आए।
 
कुल मिलाकर कठपुतली बिना थ्रिल की थ्रिलर है।  
 
  • बैनर : पूजा एंटरटेनमेंट
  • निर्देशक : रंजीत एम. तिवारी 
  • कलाकार : अक्षय कुमार, रकुल प्रीत सिंह, सरगुन मेहता, हृषिता भट्ट, चंद्रचूड़ सिंह 
  • ओटीटी : डिज्नी प्लस हॉटस्टार 
  • यूए * 2 घंटे 14 मिनट 
  • रेटिंग : 1.5/5