शुक्रवार, 1 नवंबर 2024
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शनिवार को ऐसे करें सूर्यपुत्र शनिदेव की आराधना, दूर होगी हर समस्या

शनिवार को ऐसे करें सूर्यपुत्र शनिदेव की आराधना, दूर होगी हर समस्या - Lord Shani Dev
Shani Dev Remedies
 
अक्सर देखा गया है कि आम जनता शनि भगवान से बहुत भयभीत रहती है। शनि की वक्र दृष्टि से अच्छे भले मनुष्य का नाश हो जाता है लेकिन यदि शनि प्रसन्न हों तो जातक के वारे-न्यारे हो जाते हैं। 
 
आइए जानते हैं शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय और प्रमुख मंत्र...
 
शनि देव का ज्योतिष में विशेष स्थान है। शनि ग्रह संबंधी चिंताओं का निवारण करने के लिए शनि मंत्र, शनि स्तोत्र विशेष रूप से शुभ रहते हैं। शनि मंत्र शनि पीड़ा परिहार का कार्य करता है। शनिदेव सूर्यपुत्र माने जाते हैं और आम मान्यता है कि शनि ग्रहों में नीच स्थान पर हैं। परंतु शिव भक्ति से शनिदेव ने नवग्रहों में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त किया है। 
 
कैसे करें श्री शनिदेव का ध्यान व आवाहन- 
 
शनिवार को सुबह स्नान आदि कर सच्चे और पवित्र मन से ईश्वर की आराधना करें और इस मंत्र का आवाहन करें - 
 
नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान्‌। चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी।। 
 
अर्थात्- नीलमणि के समान जिनके शरीर की कांति है, माथे पर रत्नों का मुकुट शोभायमान है। जो अपने चारों हाथों में धनुष-बाण, त्रिशूल, गदा और अभय मुद्रा को धारण किए हुए हैं, जो गिद्ध पर स्थित होकर अपने शत्रुओं को भयभीत करने वाले हैं, जो शांत होकर भक्तों का सदा कल्याण करते हैं। ऐसे सूर्यपुत्र शनिदेव की मैं वंदना करता हूं, ध्यानपूर्वक प्रणाम करता हूं। 
 
शनि नमस्कार मंत्र : ॐ नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌॥
 
पूजन के समय अथवा कभी भी शनिदेव को इस मंत्र से यदि नमस्कार किया जाए तो शनिदेव प्रसन्न होकर पीड़ा हर लेते हैं।
 
शनि आवाहन मंत्र- 'नीलद्युति शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशातं वन्दे सदाऽभीष्टकरं वरेण्यम्।।'
 
उपाय : जब शनि की अशुभ महादशा या अंतर्दशा चल रही हो अथवा गोचरीय शनि जन्म, लग्न या राशि से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम, द्वादश स्थानों में भ्रमण कर रहा हो तब शनि अनिष्टप्रद व पीड़ादायक होता है। 
 
शनि पीड़ा की शांति व परिहार के लिए श्रद्धापूर्वक शनिदेव की पूजा-आराधना मंत्र व स्तोत्र का जप और शनिप्रिय वस्तुओं का दान करना चाहिए।