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Written By WD

84 महादेव : श्री हनुमंत्केश्वर महादेव(79)

84 महादेव : श्री हनुमंत्केश्वर महादेव(79) - Hanumantkeshwar Mahadev
भगवान राम ने धरती से रावण व अन्य राक्षसों का वध कर दिया और वे अयोध्या में राज्य करने लगे। तब कुछ ऋषि-मुनि उनके दर्शन के लिए उनके राज्य में उपस्थित हुए। मुनियों ने भगवान राम के सामने प्रस्तुत होकर उनकी आराधना की। उनका गुणगान किया। मुनियों ने कहा कि आपने रावण के कुल का नाश किया, इसमें आपका हुनमान ने सहयोग किया। वानरों ने उस युद्ध को साक्षात देखा। तब भगवान राम ने कहा कि मुनियों आपने हनुमान के पराक्रम का वर्णन किया परंतु लक्ष्मण ने भी युद्ध किया तथा मेघनाथ का वध किया। इस पर मुनियों ने कहा कि हनुमान का पराक्रम सभी के पराक्रम से विशाल है।

राम ने कारण पूछा तो मुनियों ने कहा कि हनुमान जब बाल रूप में थे तब एक बार में सूर्य को फल समझकर खाने के लिए निकल गए थे। इंद्र ने अपने वज्र से उन पर प्रहार किया, जिससे उनके होंठ पर चोट आई और वे एक पर्वत पर गिर पड़े। वायु देव उन्हें लेकर महाकाल वन आए और यहां शिवलिंग के सामने भगवान शंकर की आराधना करने लगे। शिवलिंग के स्पर्श करने से हनुमान जीवित हो उठे। इस दौरान यहां सभी देवता आए और हनुमान को वरदान दिया। ऋषियों के श्राप के कारण हनुमान अपना बल भूल गए थे। समुद्र लांघने के समय जामवंत ने हनुमान को उनका बल याद दिलाया था। हनुमान के शिवलिंग के स्पर्श व रावण वध के बाद पूजन के कारण शिवलिंग हनुमंत्केश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए।

मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस शिवलिंग का पूजन करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इन का मंदिर ओखलेश्वर जाने वाले मार्ग पर स्थित है।