उज्जैन में इस समय चारों तरफ धर्म और आस्था के परचम लहरा रहे हैं। हर कोना सजा-धजा है, हर आंगन चमका-दमका सा है। हर चौराहे पर आकर्षक साजसज्जा है। यहीं पर कुछ विशेष प्रतिमाएं भी चर्चा का विषय है। आइए जानते हैं उनके बारे में....
कर्मयोगी श्रीकृष्ण योगी मुद्रा में प्रतिमा
भूखी माता मंदिर के समीप योग गुरु पं. राधेश्याम मिश्रा के कैंप में ध्यान अवस्था में बैठे भगवान कृष्ण की प्रतिमा लोगों के आकर्षण का केंद्र है। दावा है कि यह दुनिया की एकमात्र प्रतिमा है जिसमें भगवान कृष्ण को ध्यान मुद्रा में दिखाया गया है।
लगभग 7 फीट ऊंची इस प्रतिमा को बनाया है उज्जैन के कलाकार शकील खान ने। उन्होंने बताया कि गूगल पर योगी कृष्ण सर्च करने पर एक ही फोटो मिलती है, जिसमें भगवान कृष्ण ध्यान अवस्था में हैं। लेकिन, उस तस्वीर में भी भगवान को बहुत से गहनों और भारी मुकुट से लदा दिखाया गया है। इसके विपरीत उन्होंने इस प्रतिमा को ना तो बहुत सारी ज्वेलरी से लादा है और ना ही सिर पर कोई भारी-भरकम सा मुकुट। इस प्रतिमा को वैसे ही तैयार किया गया है जैसे कोई आम योगी ध्यान करता है।
ध्यानस्थ भगवान शिव की प्रतिमा
पं. राधेश्याम मिश्रा के ही कैंप में एक और मूर्ति है ध्यानस्थ भगवान शिव की। इसे भी शकील खान ने ही बनाया है। इस मूर्ति की एक और खासियत ये है कि ये 300 साल तक खराब नहीं होगी। इसे पॉली राइजिंग केमिकल से तैयार किया गया है। मार्बल के चूरे को प्रोसेस करके पत्थर के साथ इसे इस्तेमाल किया है। जिससे इस मूर्ति की चमक और मजबूती 300 साल तक कायम रहेगी।
वे बताते हैं कि भगवान शिव के नाग देवता भी सौम्य मुद्रा में है क्योंकि जब ध्यान लगाया जाता है तो आसपास कुछ भी सक्रिय नहीं रहना चाहिए। नाग देवता अगर चैतन्य होंगे तो शिव जी की ध्यान मुद्रा नहीं कही जाएगी अत: इस बात का भी ध्यान रखा गया है।
दहाड़ते हुए नही यह है शांत शेर की प्रतिमा
मध्य प्रदेश शासन ने हरसिद्धि मंदिर चौराहे पर शेर की प्रतिमा स्थापित करवाई है। इसका निर्माण शकील खान ने किया है। इसकी विशेषता है कि इस मूर्ति में शेर शांत स्वरूप में है। देश में और कहीं शांत स्वरूप में शेर की प्रतिमा नहीं है।
इस प्रतिमा को बनाने से पहले शकील खान ने गूगल पर देश में विभिन्न स्थानों पर लगी शेर की प्रतिमाओं को देखा व उनसे थोड़े अलग स्वरूप में इस प्रतिमा को बनाया। इस मूर्ति का निर्माण मात्र 10 दिनों में किया गया है, यह भी इसकी खासियत है।
रूद्र सागर में विराजमान राजा विक्रमादित्य
रामायण, महाभारत पुराण आदि में वर्णित राजा तथा इतिहास प्रसिद्ध प्रद्योत, नंद, चंद्रगुप्त, समुद्रगुप्त आदि अनेक राजा हैं, परंतु जो दिगन्तव्यापिनी कीर्ति और यश विक्रमादित्य को प्राप्त हुआ, वह यश अन्य किसी राजा को प्राप्त नहीं हुआ। प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुसार विक्रमादित्य ऐतिहासिक व्यक्ति हैं। उनकी कथाएं, उनका सिंहासन, उनके विक्रम बेताल किस्से बरसों से प्रचलित हैं।
कहा जाता है रूद्र सागर में ही वह टीला था जिस पर बैठकर विक्रमादित्य बचपन में अपने नन्हे दोस्तों के झगड़ों पर न्याय किया करते थे। जब टीला खोदा गया तो चमत्कारी सिंहासन प्राप्त हुआ जिसकी दिव्य सिद्धि से वे न्याय कर पाते थे।
किंवदंती यह भी है कि विक्रमादित्य के पराक्रम, शौर्य, कलामर्मज्ञता तथा दानशीलता से प्रसन्न होकर इंद्र ने यह रत्नजडित स्वर्णिम दिव्य सिंहासन विक्रमादित्य को उपहार में दिया। इसमें 32 पुत्तलिकाएं यानी पुतलियां लगी थीं। यह सिंहासन 32 हाथ लंबा तथा 8 हाथ ऊंचा था। यह सिंहासन राजा भोज को उज्जयिनी में एक टीले के उत्खनन में प्राप्त हुआ था। उसी कल्पना को मूर्त रूप प्रदान कर रूद्र सागर में राजा विक्रमादित्य की प्रतिमा स्थापित की गई है।
ध्यान मुद्रा में हनुमानजी की प्रतिमा
हनुमानजी की यह प्रतिमा भूखी माता मंदिर के सामने लगे जीवन प्रबंधन गुरु पं. विजयशंकर मेहता के कैंप में स्थापित की गई है। यह प्रतिमा लगभग 8 फीट ऊंची है और इसे उज्जैन के शिल्प कलाकारों ने बनाया है।
इस प्रतिमा की विशेषता है कि इसमें भगवान हनुमान को ध्यान की मुद्रा में दिखाया गया है। मनुष्य के शरीर में स्थित 7 चक्रों में ऊर्जा कैसे नीचे से ऊपर उठती है, यह इस प्रतिमा के माध्यम से समझा जा सकता है।
पर्वत पर बैठे हनुमानजी की प्रतिमा
महाकाल मंदिर के पीछे स्थित रुद्र सागर में विश्व हिंदू परिषद का कैंप लगा है। इस कैंप में पर्वत पर बैठे हनुमान की प्रतिमा स्थापित की गई है।
इसकी ऊंचाई लगभग 31 फीट है। इसका निर्माण बुरहानपुर के कलाकारों ने 15 दिन में किया है। इस प्रतिमा में हनुमानजी आशीर्वाद देने की मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं।