• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. पौराणिक कथाएं
  4. paap kahan jata hai
Written By

पौराणिक कथा : पाप कहां-कहां तक जाता है?

पौराणिक कथा : पाप कहां-कहां तक जाता है? - paap kahan jata hai
एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते हैं, तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गई। और फिर उन्होंने अब यह जानने के लिए तपस्या की कि पाप कहां जाता है?
 
तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए। ऋषि ने पूछा कि भगवन्, जो पाप गंगा में धोया जाता है, वह पाप कहां जाता है?
 
भगवन् ने कहा कि चलो गंगाजी से ही पूछते हैं।
 
दोनों लोग गंगा के पास गए और कहा कि हे गंगे! सब लोग तुम्हारे यहां पाप धोते हैं तो इसका मतलब आप भी पापी हुईं?
 
गंगा ने कहा, मैं क्यों पापी हुई, मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूं।
 
अब वे लोग समुद्र के पास गए और कहा, हे सागर! गंगा जो पाप आपको अर्पित कर देती है तो इसका मतलब आप भी पापी हुए?
 
समुद्र ने कहा, मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बनाकर बादल बना देता हूं।
 
अब वे लोग बादल के पास गए और कहा कि हे बादल! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते हैं, तो इसका मतलब आप पापी हुए?
 
बादलों ने कहा, मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसाकर धरती पर भेज देता हूं जिससे अन्न उपजता है और जिसको मानव खाता है। उस अन्न में जो अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है, जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है, उसी अनुसार मानव की मानसिकता बनती है।

इसीलिए कहते हैं- 'जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन।' अन्न को जिस वृत्ति (कमाई) से प्राप्त किया जाता है और जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है, वैसे ही विचार मानव के बन जाते हैं। इसीलिए सदैव भोजन शांत अवस्था में पूर्ण रुचि के साथ करना चाहिए और कम से कम अन्न जिस धन से खरीदा जाए, वह धन भी श्रम का होना चाहिए।