नंदा देवी, धीरे-धीरे जा और जल्दी-जल्दी लौटना...
ललित भट्ट देहरादून से
सातवें पड़ाव में आज नंदा देवी राजजात कुलसारी पहुंचने पर उनका ग्रामीण स्वागत करेंगे। आज दिन तक जहां नंदा के मायका पक्ष के गांव बेटी का गांव आने पर उससे लाड़ करते थे और गांव से विदा होकर फिर वहीं रोना लिखना होता था तो दिन के बाद नंदा राजजात शिव के क्षेत्र यानी नंदा के ससुराल पक्ष के गांवों में पहुंचने पर नंदा के स्वागत को आतुर लोग रोना धोना नहीं करते। वे शिव की अर्धागिंनी नंदा का स्वागत करते हैं। उन्हें अपनी दशा को लेकर उलाहना देते हैं। उससे कृपा रूपी आशीर्वाद की कामना करते हैं। ग्रामीण नंदा को पूजते हैं। उनसे मन्नत मांगते हैं अपने मनोरथ पूरा करने के लिए उसका आशीर्वाद मांगते हैं। समुद्र तल से 1050 मीटर की ऊंचाई पर कुलसारी गांव ससुराल क्षेत्र का पहला गांव है, जहां नंदा राजजात पड़ाव यानी रात्रि विश्राम करेगी। यहां देवी के काली स्वरूप को पूजा जाता है इसी कारण इस गांव का नाम कुलसारी पड़ा माना जाता है। यह गांव कुलसारा ब्राम्हणों का है। यहां राजजात अमावस्या के दिन पहुंचने का रीवाज है। अमावस्या के दिन नंदा देवी राजजात पहुंचने पर यहां स्थित भूमिगत कालीयंत्र को पूजने की परम्परा है। पूजा अर्चना के बाद पुनः अगली राजजात तक के लिए इस काली यंत्र को पुनः राजजात यात्रा तक के लिए भूमिगत कर दिया जाता है। प्राचीन समय में इस कालीयंत्र की पूजा के लिए बकरे की बलि देने की प्रथा थी। लेकिन सन् 2000 की राजजात में बकरे की बलि का विरोध हुआ और गुड व घी में पकाई गई रोड से कालीयंत्र की पूजा की गई। वर्ष1968 में भी बलि नहीं दी गई थी। नारियल आदि की बलि दी गई। इस बार भी बलि बकरे की न होकर रोट एवं नारियल की ही होगी। पिंडर नदी के बाएं तट पर बसा यह कुलसारी गांव जहां आज भगवती नंदा पड़ाव करेंगी के अंदर दक्षिण काली, त्रिमुखी च्चिव, लक्ष्मी नारायण, हनुमान, सूर्य भगवान के मंदिर हैं। बाहर के क्षेत्र में लक्ष्मी चरण पादुका भी स्थापित है।