मीडियाकर्मियों पर यूं अंगुलियां तो उठती हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से ज्यादा चर्चा नहीं होती, लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया पर पत्रकारों की चिट्ठियां कुछ ज्यादा ही सुर्खियों में हैं। वे एक-दूसरे की जमकर आलोचनाएं भी कर रहे हैं। हालांकि यह तो वक्त ही बताएगा कि पत्रकारों के इस चिट्ठी युद्ध का पत्रकारिता को फायदा होगा या फिर नुकसान...
पत्रकारों के बीच का चिट्ठी युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है। पहले रवीश कुमार ने पत्रकार और केन्द्रीय मंत्री एमजे अकबर को खुला खत लिखा, मगर उसका जवाब दिया एक अन्य पत्रकार रोहित सरदाना ने। रोहित ने अपने पत्र में बरखा दत्त से लेकर प्रणय राय तक पर कटाक्ष किया था।
इस बीच, रवीश का जवाब तो नहीं आया, लेकिन एक अनाम खुला जरूर रोहित के नाम आ गया था। जिसमें जीटीवी के मालिक सुभाष चंद्रा के राज्यसभा जाने से लेकर वर्तमान सरकार के प्रति उनकी निष्ठा को लेकर सवाल उठाए हैं।
पत्रकार (अब केन्द्र में मंत्री) एमजे अकबर को हाल ही में टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने एक खुला खत लिखा था, जिसमें उन्होंने अपनी पीड़ा बयान करते हुए कई तीखे सवाल भी पूछे थे। हालांकि अकबर की तरफ से तो रवीश को कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन एक अन्य टीवी पत्रकार रोहित सरदाना ने उन्हें फेसबुक पर तीखा जवाब दिया है।
रवीश ने एमजे अकबर से पूछा था कि नेता बनकर पत्रकारिता के बारे में क्या सोचते थे और पत्रकार बनकर पेशेगत नैतिकता के बारे में क्या सोचते थे? क्या आप कभी इस तरह के नैतिक संकट से गुजरे हैं? कांग्रेस से पत्रकारिता में आए तो क्या लोग या खासकर विरोधी दल, जिसमें इन दिनों आप हैं, आपके हर लेखन को दस जनपथ या किसी दल की दलाली से जोड़कर देखते थे? तब आप खुद को किन तर्कों से सहारा मिलता था? साथ ही रवीश ने सोशल मीडिया पर मिलने वाली टिप्पणियों के लिए भी पत्र में अपनी पीड़ा व्यक्त की थी।
रवीश को एमजे अकबर की तरफ से तो पत्र का कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन एक अन्य पत्रकार रोहित सरदाना ने रवीश को तीखा जवाब दिया, जिसमें उन्होंने कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने रवीश की अन्य चिट्ठियों का भी जिक्र किया है। रोहित ने बरखा दत्त को लेकर भी सवाल पूछा, जिसमें उन्होंने लिखा- 'मैं आपकी वरिष्ठ और बेहद पुरानी सहयोगी बरखा दत्त के नाम की खुली चिट्ठी नहीं ढूंढ पाया, जिसमें आपने पूछा होता कि नीरा राडिया के टेप्स में मंत्रियों से काम करा देने की गारंटी लेना अगर दलाली है – तो क्या आपको दलाल कहे जाने के लिए वो ज़िम्मेदारी लेंगी?
प्रणय राय को लेकर पूछे गए सवाल में रोहित ने लिखा है- आतंकियों की पैरवी करने की वजह से, देश के टुकड़े करने के नारे लगाने वालों की वकालत करने की वजह से, लगभग हर उस चीज़ की पैरवी करने की वजह से जो देश के बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को आहत करती हो – अगर लोग आपको दलाल कहने लगे हैं तो क्या वो इसकी ज़िम्मेदारी लेंगे?
रोहित ने इसी तरह और भी कई सवाल उठाए हैं, जिसमें उन्होंने आशीष खेतान, पुण्यप्रसून बाजपेयी एवं अन्य पत्रकारों को लेकर भी सवाल उठाए हैं। रोहित ने अपने पत्र के अंत में कहा है- 'वैसे भी आपकी चिट्ठी की तरह सारे सोशल मीडिया ब्लॉग्स और अखबार मेरे लिखे को हाथोंहाथ नहीं लेंगे। लेकिन, आपकी राजनीतिक-गैर राजनीतिक सेनाएं इस चिट्ठी के बाद मेरा जीना हराम कर देंगी, ये मैं जानता हूं। जिन लोगों का जिक्र मेरी चिट्ठी में आया है, वो शायद कभी किसी संस्थान में मुझे दोबारा नौकरी भी न पाने दें।
जैसी कि उम्मीद थी कि यह पत्र युद्ध लंबा चलने वाला है, हुआ भी यही। अब रवीश की ओर से भले ही रोहित को जवाब नहीं मिला हो, लेकिन अनाम खुले पत्र के माध्यम से रोहित को जवाब दिया गया है।
इस पत्र में रोहित से पूछा गया है- आपके जी ग्रुप के मालिक सुभाष चंद्रा जी हरियाणा से राज्यसभा के लिए चुने गए। एक संस्था के लिए काफी गर्व की बात रही होगी कि उसका मालिक भारतीय संसद में बैठने के लिए चुना जाए।
पर जब कैराना में आप उस पार्टी की लाइन पकड़ लेते हैं जिसने आपके मालिक को राज्यसभा जीतने में अभूतपूर्व मदद की हो, तो क्या आपके अन्दर का पत्रकार (मीडियाकर्मी) आपसे पूछता है कि यह लाइन पकड़ने के पीछे की वजह कहीं भाजपा से मालिक की साठगांठ तो नहीं? क्या कभी आपके भगवान ने आवाज़ लगाकर आपको जगाया कि दैनिक तौर पर सरकार की पैरवी करते-करते जी न्यूज़ दूरदर्शन तो नहीं हो गया? पत्र में उस स्टिंग का जिक्र किया गया जिसमें जी के पत्रकारों को 100 करोड़ मांगते हुए पकड़ा गया था।