पशुओं का दुश्मन बना इंटरनेट!
मोबाइल फोन, लैपटॉप, ब्रांडेड कपड़े, गहने से लेकर फूल, केक जैसी मामूली चीजें भी आजकल लोग बाजार से खरीदने की अपेक्षा घर बैठकर ही इंटरनेट पर ऑर्डर देकर मँगाना पसंद करते हैं। उन्हें यह लगता है कि जितना समय बाजार जाकर समान खरीदने में लगता है, उससे आसान इंटरनेट पर ऑर्डर देकर मंगाना है। मगर इस आरामदायक तकनीक का नुकसान भी बहुत है। इंटरनेट के माध्यम से कई गोरखधंधा करना आसान हो गया है। इंटरनेट के इस गोरखधंधे ने पशु को भी नहीं छोड़ा है। कतर की राजधानी दोहा में दुर्लभ प्रजातियों की खरीद-फरोख्त पर सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें यह बात उजागर हुई कि दुर्लभ प्रजातियों के लिए इंटरनेट सबसे बड़ा खतरा बनकर आया है। इस सम्मेलन में 175 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस बात से मिलेनियम सिटी के रोजवुड सोसाइटी में रह रहे पशु प्रेमी बॉब और जीन हैरिसन काफी चिंतित हैं। उनका कहना है कि इस सम्मेलन में दिए गए आँकड़े से मनुष्य की स्वार्थ का पता चलता है। मनुष्य अपने स्वार्थ में इस कदर अंधा हो गया है कि उसे जानवरों की फ्रिक ही नहीं रही। इसी का फायदा उठाकर वे आजकल इंटरनेट के माध्यम से जानवरों के खाल से लेकर उनके बच्चे तक की सप्लाई कर रहे हैं। जीन ने बताया कि इंटरनेट से कोई भी चीज खरीदना और बेचना आसान है। इस खरीद-फरोख्त के माडर्न स्टाइल में शेर का बच्चा से लेकर धुवीय भालू की खाल भी शामिल है। अपने शौक के कारण लोग दुर्लभ प्रजातियों के महत्व को नहीं समझ पा रहे हैं। जीन के मुताबिक गैरकानूनी व्यापार पर नजर रखने वाली एजेंसियाँ भी इस व्यापार से होने वाले फायदे का हिसाब-किताब नहीं रख पा रही है। सम्मेलन में यह बताया गया है कि फिलहाल इस व्यापार का सबसे बड़ा बाजार अमेरिका है। चीन, यूरोप, रूस व ऑस्ट्रेलिया में भी यह व्यापार तेजी से पैर पसार रहा है। इंटरनेशनल फंड फोर एनिमल वेलफेयर के पॉल टॉड का कहना है कि संरक्षित प्रजातियों के वैश्विक व्यापार में इंटरनेट की सबसे बड़ी भूमिका है। इसके द्वारा हजारों लुप्तप्राय प्रजातियों का लगातार व्यापार हो रहा है। इंटरनेट का बाजार इतना बड़ा है कि इसके खरीददार और बेचने वाले दोनों ही आसानी से अपना नाम छिपा लेते हैं।