मुंबई हमले को एक महीना हो चुका है और पाकिस्तान द्वारा अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े तेवर अपनाकर पाकिस्तान को खरी-खोटी सुनाते हुए कहा है कि अपने देश से संचालित हो रहे आतंकवाद को खत्म करने के असली मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए वह 'युद्ध का उन्माद' फैलाने की कोशिश कर रहा है।
अमेरिका एक तरफ तो आतंकी तत्वों पर लगाम के लिए पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है, वहीं कहीं न कहीं वह इस मामले में अपने हित देखकर उसके मुताबिक आगे बढ़ रहा है, लिहाजा भारत ने अब खुद पर भरोसा करने की ठान ली है।
दरअसल बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दवाब तथा देश में गहरी जड़ें जमा चुके आतंकवादी और कट्टरपंथी संगठनों के विरोध के बीच पाकिस्तान मुंबई हमलों की साजिश रचने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के असली मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए भड़काने वाले बयान देने की रणनीति का इस्तेमाल कर रहा है।
वादे पर अमल नहीं : इसके पहले भी दो पाकिस्तानी राष्ट्रपतियों ने जनवरी 2004 में परवेज मुशर्रफ और सितंबर 2008 में आसिफ अली
आर्थिक मंदी से घबराए अमेरिका को भी इस लड़ाई से कई फायदे हो सकते हैं, जैसे उसके डूबते हथियार उद्योग को भारत-पाक युद्ध से संजीवनी मिल सकती है
जरदारी ने वादा किया था कि वे अपने नियंत्रण वाले इलाकों का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होने देंगे, परन्तु जिस देश की बागडोर सेना और आईएसआई के हाथ हो, वह सत्ता अपने हाथ रखने के लिए कुछ भी कर गुजरने से नहीं चूकेगा और इस युद्ध से एक बार फिर पाकिस्तान पर सेना का वर्चस्व स्थापित हो जाएगा।
सरकार पर दबाव : गौरतलब है कि 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले के कारण दोनों देश पहले ही युद्ध के करीब पहुँच चुके थे, अमेरिका के दबाव में सेना तैनात कर भी इस मामले पर कोई ठोस कार्रवाई न कर पाने पर एनडीए की सरकार के जनाधार को बड़ा झटका लगा था, अब जबकि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, यूपीए सरकार भी इससे सबक लेते हुए पूरी सतर्कता से कोई भी कदम उठाएगी।
युद्ध से किसको फायदा : आर्थिक मंदी से घबराए अमेरिका को भी इस लड़ाई से कई फायदे हो सकते हैं, जैसे उसके डूबते हथियार उद्योग को भारत-पाक युद्ध से संजीवनी मिल सकती है। रूस, ब्राजील, चीन, फ्रांस और इसराइल भी हथियारों के बाजार में बड़े खिलाड़ी हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में एक बार युद्ध शुरू हुआ तो हथियारों की होड़ मच जाएगी।
इतिहास बताता है कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद आई 1930 की मंदी में भी यही हुआ था और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उत्पादन बढ़ने से कई उद्योगों को नई जान मिली थी तथा कई नए उद्योग जैसे कि कम्प्यूटर, प्लास्टिक का जन्म हुआ था। उत्पादन के चलते करोड़ों लोगों को रोजगार भी मिला, जिससे लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और क्रयशक्ति बढ़ने से मंदी बाजार को राहत मिली थी।
परमाणु संकट : परमाणु संपन्न देशों के बीच युद्ध दुनिया के लिए बड़ा खतरा है। इस बात की भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि पाकिस्तान के हारने की या सेना द्वारा बगावत की स्थिति में कट्टरपंथियों द्वारा परमाणु हथियारों पर कब्जा करके भारत और अफगानिस्तान मे अमेरिकी, नॉटो सैन्य ठिकानों पर इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
सीमित कार्रवाई : इस बीच कई रक्षा विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि अमेरिकी दबाव के चलते पाकिस्तान भारत को मुंडारिक तथा पाक के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित आतंकी शिविरों पर सीमित कार्रवाई की इजाजत दे सकता है। साथ ही अफगानिस्तान में तालिबान के विरुद्ध चल रही कार्रवाई में तैनात अमेरिकी सेना के विशेष बल भी इस बहाने पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में हमले कर सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय समर्थन : रूस भारत के साथ बढ़ती अमेरिकी नजदीकी के चलते पहले ही कह चुका है कि भारत को उसके अधिकारों की रक्षा के लिए कोई भी कार्रवाई का हक है और बह इस मामले में पूरे तौर पर भारत के साथ है।
मुंबई हमलों में अपने नागरिकों के मारे जाने से कुपित इसराइल भी खुले तौर पर ऐसी किसी भी कार्रवाई के पक्ष में है और इस मामले पर भारत का समर्थन कर अपने पक्ष में एक मजबूत साथी कर पाने का मौका देख रहा है। वर्तमान में चीन भी आतंकी गतिविधियों से तंग है और दबे शब्दों में ऐसी किसी कार्रवाई को तर्कसम्मत ठहरा चुका है।
सेना तैयार : अमेरिकी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट मानें तो पिछले एक महीने में भारत ने इस युद्ध के लिए सेना के तीनों अंगों को तैयार कर लिया है और सैन्य कमांडर आदेश मिलते ही सैनिक कार्रवाई शुरू कर देंगे।
सैन्य कार्रवाई : नियंत्रित कमांडो कार्रवाई के पहले भारतीय सेना को पाकिस्तान की अग्रिम सुरक्षा पंक्ति को तोड़ने के लिए तोपखाने, मिसाइल तथा हवाई हमले का इस्तेमाल करना होगा। उसके बाद ही भारतीय कमांडो पाक अधिकृत क्षेत्र में कार्रवाई कर आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर सकेंगे।
हालाँकि पाकिस्तान के काफी अंदर स्थित आतंकी शिविरों जैसे पेशावर, कराची के आसपास सिर्फ हवाई या मिसाइल हमले का ही विकल्प बचता है। भारत को कोई भी हमला करने करने से पहले एक जबरदस्त रणनीति बनानी होगी, जिसमें वायु, थल और जल सेना को मिलकर काम करना होगा।