जानिए कैसे बनाएं रखें जीवन में प्रसन्नता...
संकल्पों पर निर्भर होती है प्रसन्नता
जीवन में मनोकामनाएं पूरी होने से प्रसन्नता होती है या प्रसन्न रहने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि वस्तुओं या साधनों की उपलब्धि पर मन की प्रसन्नता निर्भर नहीं है। बहुमूल्य वस्तुओं के विक्रेता या उत्पादक अपने गोदामों में कितना माल भरे रहते हैं, उन्हें हाथों से इधर-उधर उठाते-धरते हैं तो भी न संतोष होता है, न उपलब्धि। इसके विपरीत जनजातियों की महिलाएं कौड़ियों, सीपों, घुघरियों के जेवर बनाकर पहनतीं, प्रसन्न होतीं और अपने आपको सौभाग्यवान मानती हैं।
कोई ऊंचा पद पाने के लिए कब से, कितने प्रकार के प्रयत्न किए जा रहे थे। अब वह पद मिलते ही, उसके साथ जुड़ी हुई जिम्मेदारियां पूरी होते रहने की फिक्र दिन-रात बनी रहती है। ऐसा न हो कि उत्तरदायित्व ठीक तरह से न निभ पाने पर उपहास, प्रताड़ना मिले और अवनति का आदेश मिल जाए।
बैंक के खजांची के पास लाखों रुपयों के नोट होते हैं। जौहरी का नौकर जेवरों को झाड़-बुहारकर सुसज्जित रूप से देखता है तो भी उसके मन पर उस संपदा की छाप नहीं होती। इसके विपरीत छोटे बच्चे गुब्बारे, सीटी, झुनझुने जैसी कम मूल्य की वस्तुओं का उपहार पाकर प्रसन्नता से फूले नहीं समाते और जिस-तिस को अपनी प्रसन्नताभरा सामान दिखाते फिरते हैं।
स्थायी प्रसन्नता का एक ही मजबूत आधार है कि अपने गुण, कर्म, स्वभाव को उच्चस्तरीय बनाया जाए। व्यक्तित्व को उत्कृष्टता में बदल लिया जाए। क्रियाकलाप में आदर्शवादिता का समावेश रखा जाए आत्मगौरव को बढ़ाने वाली विधि-व्यवस्था को अपनाए रखा जाए। उस दिशा धारा को अपनाया जाए, जिसमें अंतरात्मा का संतोष बना रहे।
ऐसी दिशाधारा अपनाना पूर्णतया अपने हाथ की बात है। यह निजी चिंतन और चरित्र का प्रसंग है, जिसे कोई भी ऊंचा रख सकता है और ऐसी प्रसन्नता में डूबा रहने का अवसर हाथ रहता है, जो किसी के छिनने से न छिन सके।