यूक्रेन में भारतीय मेडिकल स्टूडेंट्स के फंसने के कारणों की Inside Story
यूक्रेन में मुश्किलों का सामना कर रहे मेडिकल स्टूडेंट्स के फंसने का जिम्मेदार कौन?
रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े भीषण युद्ध के बीच खारकीव में कर्नाटक के छात्र की गोलीबारी में मौत के बाद वहां पर फंसे भारतीय छात्रों को लेकर परिजनों की चिंता बढ़ गई है। परिजन सरकार से अपने बच्चों की सुरक्षित वापसी की गुहार लगा रहे है। मध्यप्रदेश सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा के मुताबिक यूक्रेन में फंसे मध्यप्रदेश के 193 स्ट्डेंट्स अब तक सीएम हेल्पलाइन और अन्य माध्यमों से मदद मांगी है जिसमें से 60 बच्चों को अब तक सुरक्षित लाया जा चुका है।
राजधानी भोपाल की शिवानी सिंह और रायसेन जिले की सुचि वर्मा जो अब भी यूक्रेन में फंसी हुई, वहां से निकलने के लिए अपने बलबूते पूरी कोशिश कर रही है। शिवानी सिंह के परिजन कहते हैं कि शिवानी और उसकी दोस्त सुचि 30 स्टूडेंट्स के एक ग्रुप के साथ मंगलवार की दोपहर 2.30 बजे खारकीव से 1700 किलोमीटर दूर रोमाननिया बॉर्डर के लिए निकाली है और उनकी बॉर्डर तक पहुंचने की जद्दोजहद जारी है। शिवानी ने खारकीव से फोन पर अपने परिजनों को बताया था कि खारकीव के रेलवे स्टेशन पर बहुत बड़ी संख्या में लोग जमा है और वहां भगदड़ जैसे हालात है और उनको भी बमुश्किल ट्रेन में जगह मिल पाई है।
वहीं यूक्रेन से आज मध्यप्रदेश के कटनी शहर पहुंची सुनिधि सिंह हालात को बहुत भयावह बताते हुए कहती है कि युद्ध शुरू होते ही उन लोगों को जान बचाने के लिए बंकर में शरण लेनी पड़ी। वहां के हालात पूरी तरह बिगड़ चुके है और वहां पर फंसे स्टूडेंट्स के पास अब खाना का सामान भी नहीं बचा है। सुनिधि ईश्वर को धन्यवाद करते हुए कहती है कि वह किसी तरह भारत लौट आई।
वहीं पिछले दिनों यूक्रेन से सुरक्षित वापसी करने वाले भोपाल के हर्षित कहते हैं कि देखते ही देखते यूक्रेन में हालात बहुत बिगड़ गए है। युद्ध छिड़ने से ठीक पहले भोपाल आने वाले हर्षित कहते हैं कि युद्ध शुरु होने से पहले हवाई टिकट के दाम देखते ही देखते चार गुने तक बढ़ गए। सामान्य तौर पर जो हवाई टिकट 30 हजार में मिलती थी उसकी कीमत एक लाख तक पहुंच गई थी। हर्षित खुद 80 हजार का टिकट खरीद कर भारत पहुंचे थे।
यूक्रेन में स्टूडेंट्स के फंसने का कारण- यूक्रेन में भारत के राजदूत रहे वीबी सोनी वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं युद्ध छिड़ने से पहले छात्रों को यूक्रेन छोड़ने को लेकर सरकार की तरफ से एडवाइजरी जारी की गई थी लेकिन अब भी अगर छात्र वहां पर फंसे हुए है तो इसके एक नहीं कई कारण है।
वरिष्ठ राजनयिक वीबी सोनी कहते हैं कि इसको समझना होगा कि यूक्रेन में जो छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने जाते है वह किसी अमीर परिवार से नहीं, मध्यमवर्गीय परिवार से आते है और इनका पूरा भविष्य ही दांव पर लगा हुआ है। ऐसे में जब युद्ध छिड़ने से पहले एयरलाइंस की टिकट चार गुना महंगी मिल रही थी तब इन स्टूडेट्स अपने परिवार पर दबाव नहीं बढ़ाने के लिए सही समय पर एक्शन नहीं लिया और वहां से नहीं निकल पाए।
यूक्रेन में लंबे समय तक भारत के राजदूत रहे वीबी सोनी कहते हैं कि हालात इतनी जल्दी इतना बिगड़ जाएंगे इसका अनुमान किसी ने भी नहीं लगाया था। अब जब युद्ध छिड़ गया है और स्थितियां नॉर्मल नहीं है तब वहां पर फंसे स्टूडेंट्स को ग्रुप बनाकर स्थानीय लोगों की मदद से वापसी की कोशिश करनी चाहिए।
वीबी सोनी कहते हैं कि यूक्रेन में जो 18 हजार भारतीय स्टूडेंट्स रह रहे थे वह किसी एक जगह नहीं होकर 10 से 15 जगह फैले हुए थे। वहीं दूसरी कीव में भारतीय एबेंसी में इतना बड़ा स्टॉफ नहीं था कि वह एक साथ 18 हजार लोगों को हैंडल कर सके। युद्ध छिड़ने के बाद भारत सरकार अब बच्चों की वापसी की पूरी कोशिश कर रही है और सरकार ने अपने चार मंत्रियों को भी इस पूरे मिशन में लगाया है।