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Last Modified: गुरुवार, 17 अगस्त 2017 (11:49 IST)

भारत-भूटान में ऐसा क्या है जो चीन को खटकता है?

भारत-भूटान में ऐसा क्या है जो चीन को खटकता है? - India Bhutan China border
- रजनीश कुमार
पिछले दो महीने से भूटान में डोकलाम सीमा पर भारत और चीन के बीच तनातनी जारी है। दोनों देशों की तरफ़ से कोई संकेत नहीं मिल रहा है कि यह तनाव कब ख़त्म होगा। इस पूरे परिदृश्य में चीन और भारत तो दिख रहे हैं लेकिन भूटान कहां है? क्या भूटान पूरे मामले पर खामोश है?
 
विदेशी मामलों के जानकार और बीजेपी नेता शेषाद्री चारी कहते हैं कि भूटान इसमें खामोश नहीं है। उन्होंने कहा कि भूटान ने चीन के सामने अपनी बातें रख दी हैं। उन्होंने कहा, "भूटान और भारत के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं। हम दोनों के बीच एक समझौता भी है जिसके तहत आर्थिक और सामरिक स्तर पर दोनों देश साथ हैं। डोकलाम सीमा पर सड़क निर्माण को लेकर भूटान ने अपनी आपत्ति जता दी है।"
 
नेपाल और भूटान में चीन के क़रीब कौन?
भूटान और नेपाल भारत के दो ख़ास पड़ोसी देश हैं। नेपाल से भारत के संबंधों में उतार-चढ़ाव कई बार देखने को मिले हैं। नेपाल और चीन के बीच संबंधों को लेकर भारतीय मीडिया में अक्सर ऐसी ख़बरें आती हैं कि वह भारत के मुक़ाबले चीन के ज़्यादा क़रीब जा रहा है। हाल ही में नेपाल चीन के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड में भी शामिल हुआ। दूसरी तरफ़ भारत ने इसका बहिष्कार किया था।
 
भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं। वहीं भारत और भूटान के बीच काफ़ी गहरे संबंध हैं। दोनों देशों के बीच 1949 में फ्रेंडशिप ट्रिटी हुई थी। इसके तहत भूटान को अपने विदेशी संबंधों के मामले में भारत को भी शामिल करना होता था। 2007 में इस समझौते में संशोधन हुआ था।
 
भारत-भूटान में फ्रेंडशिप संधि
चीनी मीडिया में अक्सर इस तरह की रिपोर्ट छपती है कि भारत भूटान और नेपाल जैसे देशों में मननानी कर रहा है। क्या भूटान और भारत की क़रीबी चीन को खटकता है?
 
इस पर शेषाद्री चारी कहते हैं, "चीन ने भूटान के साथ सीमा विवाद सुलझाने की कोशिश की। वह चाहता था कि इसमें भारत शामिल नहीं हो। हालांकि इस मामले में भूटान ने साफ़ कहा कि जो भी बात होगी वो भारत की मौजूदगी में होगी।"
 
इस सवाल पर जेएनयू में दक्षिण एशिया अध्ययन केंद्र की प्रोफ़ेसर सबिता पांडे कहती हैं, "1949 में भारत और चीन के बीच जो फ्रेंडशिप समझौता हुआ था उसमें 2007 में संशोधन किया गया था। संशोधन से पहले इस समझौते में था कि भूटान सभी तरह के विदेशी संबंधों के मामले में भारत को सूचित करेगा। संशोधन के बाद इसमें जोड़ा गया कि जिन विदेशी मामलों में भारत सीधे तौर पर जुड़ा होगा उन्हीं में उसे सूचित किया जाएगा।"
चीन को खटकती है यह संधि?
ऐसा कहा जाता है कि भूटान और भारत के बीच की दोस्ती को और क़रीब लाने में इस समझौते का बड़ा योगदान रहा है। सबिता पांडे कहती हैं कि विदेशी नीति में यह बहुत बड़ी बात होती है कि आप कुछ भी करने से पहले किसी दूसरे देश को सूचित करें।
 
उन्होंने कहा, "भारत और भूटान के बीच की यह संधि चीन को हमेशा खटकती रही है। भूटान और चीन के बीच जो वार्ता है उसमें भारत की कोई लीगल भूमिका नहीं है। हालांकि भारत का हित प्रभावित होगा को उसमें भूटान को सूचित करना होगा।" चीन और भूटान के बीच पश्चिम और उत्तर में करीब 470 किलोमीटर लंबी सीमा है। दूसरी तरफ़ भारत और भूटान की सीमा पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में 605 किलोमीटर है।
 
नेपाल और भूटान के संबंध अच्छे नहीं?
जब चीन ने 1959 में तिब्बत को अपना हिस्सा बना लिया तब सीमा को लेकर कोई कलह नहीं थी। हालांकि चीन का उसके कई पड़ोसियों से सीमा विवाद है।
 
1949 की फ्रेंडशिप ट्रिटी में 2007 में संशोधन क्या भारत के लिए झटका था? सबिता पांडे ऐसा नहीं मानती हैं। उन्होंने कहा, "अंतरराष्ट्रीय और द्विपक्षीय संबंधों में हालात बदलते हैं। जब हालात बदलते हैं तो संधि में भी बदलाव आते हैं। नेपाल के साथ भारत की 1950 की संधि है उसे भी तोड़ने की मांग उठती रही है।"
 
नेपाल और भूटान के बीच का संबंध भी भारत के लिए चिंता का विषय रहा है। दोनों देशों के बीच शरणार्थियों को लेकर कड़वाहट भरे संबंध रहे हैं। भूटान ने हज़ारों की संख्या में नेपाली शरणार्थियों को निकाला है जो कि अब भी शरणार्थी कैंप में रह रहे हैं। इस मामले में भारत की भूमिका तटस्थ रही है।
 
भारत की सुरक्षा
सबिता पांडे कहती हैं कि नेपाल नहीं चाहता है कि भारत और भूटान के संबध अच्छे हों। हालांकि शेषाद्री चारी सबिता पांडे की बातों से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि नेपाल और भूटान के संबंध कैसे हों, इस पर भारत का कोई विचार नहीं है। और शेषाद्री चारी को भी ऐसा नहीं लगता है कि भूटान और भारत के संबंधों को लेकर नेपाल को किसी तरह की चिंता है।
 
शेषाद्री चारी कहते हैं, "शरणार्थियों को लेकर नेपाल और भूटान के बीच विवाद ज़रूर है लेकिन इसके अलावा किसी तरह का संघर्ष नहीं है। इस मामले में भारत भी चाहता है कि शरणार्थियों के जो शिविर हैं उनका कोई दुरुपयोग नहीं करे। इन शरणार्थी शिविरों का दुरुपयोग उल्फा ने किया था जिसके कारण भूटान को कार्रवाई करनी पड़ी थी।"
 
चारी आगे कहते हैं, "हम चाहते हैं कि भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद ख़त्म हो जाए लेकिन इसमें भारत के साथ किसी भी तरह का कोई धोखा नहीं होना चाहिए जिससे आगे चलकर भारत की सुरक्षा के लिए समस्या बने।"
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