कविता : उमड़-घुमड़कर बरसे बादल
लावण्या शाह | बुधवार,सितम्बर 7,2022
फैला बादल दल, गगन पर मस्ताना, सूखी धरती भीगकर मुस्काई।
मटमैले पैरों से हल जोत रहा, कृषक थका गाता पर उमंग भरा।
'मेघा ...
भारत देश पर कविता : गुदड़ी का लाल
लावण्या शाह | रविवार,अगस्त 14,2022
क्या भारत मेरा देश नहीं है? क्या मैं भारत का लाल नहीं हूं? क्यों तन पर चिथड़े हैं मेरे? क्यों मन मेरा रीता उदास है? ...
लता जी की यादों में खोई गीतकार पं. नरेंद्र शर्मा की बेटी लावण्या शाह
लावण्या शाह | सोमवार,फ़रवरी 7,2022
दीदी (लता मंगेशकर) ने अपनी संगीत के क्षेत्र में मिली हर उपलब्धि को सहजता से स्वीकार किया है और उसका श्रेय हमेशा परम ...
प्रवासी साहित्य : गुंजित पुरवाई...
लावण्या शाह | मंगलवार,जुलाई 4,2017
खिले कंवल से, लदे ताल पर, मंडराता मधुकर, मधु का लोभी। गुंजित पुरवाई, बहती प्रति क्षण, चपल लहर, हंस, संग-संग हो ली।
बारिश पर प्रवासी कविता : पाहुन...
लावण्या शाह | गुरुवार,जून 29,2017
उमड़-घुमड़कर बरसे, तृप्त हुई, हरी-भरी, शुष्क धरा। बागों में खिले कंवल-दल, कलियों ने ली मीठी अंगड़ाई। फैला बादल दल, गगन ...
प्रवासी साहित्य : क्या तुम्हें एहसास है?
लावण्या शाह | गुरुवार,जून 22,2017
क्या तुम्हें एहसास है अनगिनत उन आंसुओं का? क्या तुम्हें एहसास है सड़ते हुए नरकंकालों का? क्या तुम्हें आती नहीं आवाज, ...
प्रवासी साहित्य : गुदड़ी का लाल...
लावण्या शाह | सोमवार,जून 12,2017
मैं अधजागा, अधसोया क्यों हूं? मैं अब भी भूखा-प्यासा क्यों हूं? क्या भारत मेरा देश नहीं है? क्या मैं भारत का लाल नहीं ...
प्रवासी साहित्य : मौन में संगीत...
लावण्या शाह | शुक्रवार,जून 9,2017
कुहासे से ढंक गया सूरज, आज दिन, ख्वाबों में गुजरेगा। तन्हाइयों में बातें होंगी, शाखें सुनेंगी, नगमे, गम के, गुलों के ...
हिन्दी में प्रवासी साहित्य : सौगात...
लावण्या शाह | सोमवार,जून 5,2017
जिस दिन से चला था मैं, वृंदावन की सघन घनी, कुंज-गलियों से, राधे, सुनो तुम मेरी मुरलिया, फिर ना बजी, किसी ने तान वंशी की ...
प्रवासी कविता : आषाढ़ की रात...
लावण्या शाह | मंगलवार,मई 30,2017
मध्यरात्रि ही लगेगी, आज पूरी रातभर में, आह! ये, आषाढ़ की बरसाती रात है। ऊपर गगन से जल, नीचे धरा पर टूटता जोड़ देता, ...