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त्रिमोहन की ग़ज़लें
उदास शहर में जब जब भी हँसी आती है किसी ग़रीब के चहरे पे चिपक जाती है किवाड़ चौखटों के साथ उखड़ते जाते हैं कभी हवा ये करिशमा भी कर दिखाती है भले ही सूख गईं हैं ये पत्तियाँ लेकिन इन्हें दबाओ तो इन से भी चीख़ आती है ये पत्थरों का शहर है यहाँ हैं पत्थर सब मेरी आवाज़ भी टकरा के लौट आती है बहन का रूठना, भाभी का उसको समझाना शहर में गाँव की हर बात याद आती है वहाँ अब आम भी बौरा के लद गया शायद वो भीनी गंध हवाओं में गुनगुनाती है 2.
कितनी है आसान ग़ज़ल पर शायर की जान ग़ज़ल यही दुआ है मालिक से मेरी हो पहचान ग़ज़ल कच्चे घरों की है इज़्ज़तमहलों की ये शान ग़ज़ल इस में है मीरा की भक्ति बेजू की है तान ग़ज़ल फाक़ा मस्तों में है मस्तदुनिया की धनवान ग़ज़ल तलवारों का काम नहीं मेरा तीर-कमान ग़ज़ल बाहर जैसे कोई परी अन्दर लहूलुहान ग़ज़ल मीर का दीनोमज़हब येग़ालिब का दीवान ग़ज़ल गाँव शहर की बात नहीं पूरा हिंदुस्तान ग़ज़ल