तुम्हारे जिस्म की खुशबू...
मुनव्वर राना की ग़ज़ल
तुम्हारे जिस्म की खुशबू गुलों से आती है ख़बर तुम्हारी भी अब दूसरों से आती है हमीं अकेले नहीं जागते हैं रातों में उसे भी नींद बड़ी मुश्किलों से आती है हमारी आँखों को मैला तो कर दिया है मगरमोहब्बतों में चमक आँसुओं से आती है इसीलिए तो अँधेरे हसीन लगते हैं कि रात मिल के तेरे गेसुओं से आते हैं ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया मुहब्बत ने कि तेरी याद भी अब कोशिशों से आती है