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सबसे अधिक शुभ मुहूर्त यानी अक्षय तृतीया, पढ़ें विशेष महत्व

सबसे अधिक शुभ मुहूर्त यानी अक्षय तृतीया, पढ़ें विशेष महत्व - Akshaya Tritiya Importance
भारतीय पर्वों में अक्षय तृतीया पर्व का विशेष महत्व है। इस मुहूर्त को बेहद शुभ माना जाता है। किसी भी नए काम की शुरुआत से लेकर महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी व शादी विवाह जैसे काम भी इस दिन बिना किसी शंका के किए जाते हैं.... 
 
अक्षय तृतीया का पर्व हर साल वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान नर-नारायण सहित परशुराम और हय ग्रीव का अवतार हुआ था। इसके अलावा, ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी इसी दिन हुआ था। 
 
अक्षय तृतीया के दिन पंखा, चावल, नमक, घी, चीनी, सब्जी, फल, इमली और वस्त्र वगैरह का दान अच्छा माना जाता है। यह व्रत गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है। बद्रीनारायण के कपाट भी इसी दिन खुलते हैं।
 
पौराणिक कहानियों के मुताबिक, इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई। द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पूछने पर यह बताया था कि आज के दिन जो भी रचनात्मक या सांसारिक कार्य करोगे, उसका पुण्य मिलेगा। कोई भी नया काम, नया घर और नया कारोबार शुरू करने से उसमें बरकत और ख्याति मिलेगी। अक्षय तृतीया के दिन स्नान, ध्यान, जप तप करना, हवन करना, स्वाध्याय पितृ तर्पण करना और दान पुण्य करने से पुण्य मिलता है ।
 
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक गरीब सदाचारी और देवताओं में श्रद्धा रखने वाला वैश्य रहता था। अमीर बिरादरी से आने पर भी वह बहुत गरीब था और दिन-रात परेशान रहता था। एक दिन किसी ब्राह्माण ने उसे अक्षय तृतीया का व्रत रखने की सलाह दी। त्योहार के दिन गंगा स्नान करके विधि-विधान से देवताओं की पूजा करने को भी उन्होंने पुण्य बताया।
वैश्य ने ऐसा ही किया और कुछ ही दिनों के बाद उसका व्यापार फलने-फूलने लगा। उसके बाद उसने जीवनभर अक्षय तृतीया के दिन खुलकर दान पुण्य किया। अगले जन्म में वह कुशावती का राजा बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्माण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने के बावजूद भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ।
 
अक्षय तृतीया के दिन ऐसे विवाह भी मान्य होते हैं, जिनका मुहूर्त साल भर नहीं निकल पाता है। दूसरे शब्दों में ग्रहों की दशा के चलते अगर किसी व्यक्ति के विवाह का दिन नहीं निकल पा रहा है, तो अक्षय तृतीया के दिन बिना लग्न व मुहूर्त के विवाह होने से उसका दांपत्य जीवन सफल हो जाता है। यही कारण है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल आदि में आज भी अक्षय तृतीया के दिन हजारों की संख्या में विवाह होते हैं।
 
 जिनके अटके हुए काम नहीं बन पाते हैं, व्रत उपवास करने के बावजूद जिनकी मनोकामना की पूर्ति नहीं हो पा रही हो और जिनके व्यापार में लगातार घाटा चल रहा हो, उनके लिए कोई भी नई शुरुआत करने के लिए अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना जाता है।
 
इसके अलावा, कमाई के बावजूद जिनके घर में पैसा न टिकता हो, जिनके घर में सुख शांति न हो, संतान मनोनुकूल न हो, शत्रु चारों तरफ से हावी हो रहे हों, तो ऐसे में अक्षय तृतीया का व्रत रखना और दान पुण्य करना बेहद फलदायक होता है। हां कुछ लोग कोई नई चीज जैसे आभूषण, वस्त्र, गाड़ी, जायदाद आदि चीजों को इस दिन खरीदना शुभ मानते हैं। 

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