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Written By WD

मिच्छामि दुक्कड़म : दिल से मांगे क्षमा

'मिच्छामि दुक्कड़म' कह कर मांगेंगे क्षमा

Michchhami Dukkdm | मिच्छामि दुक्कड़म : दिल से मांगे क्षमा
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श्वेतांबर समुदाय द्वारा अपने पर्युषण पर्व के तहत संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर सभी मंदिरों एवं उपाश्रयों में प्रतिक्रमण के पश्चात उपस्थित श्रावक एक-दूसरे से 'मिच्छामि दुक्कड़म' कह कर क्षमायाचना करते है।

मुनि-संतों का कहना है कि क्षमा आत्मा को निर्मल बनाती है। व्यक्ति जीवन में मैत्री और प्रेम का निरंतर विकास कर जीवन को उन्नत बना सकता है। मनुष्य द्वारा अनेक भूलें की जाती हैं। पारिवारिक कलह एवं कटुता वर्ष भर में होती है।

संवत्सरी महापर्व पर अंत:करण से क्षमा याचना कर आत्मा को निर्मल बनाया जा सकता है। जीवनयापन के दौरान आपसी कलह से यह जीवन विषाक्त बनता है भारत की संस्कृति में क्षमा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।

संत-मुनि कभी झगड़ते नहीं हैं और कभी मत को लेकर विवाद हो भी जाता है तो वे एक-दूसरे के प्रति शत्रुता नहीं रखते हैं। आम आदमी और साधु-संतों के बीच यही फर्क होता है।

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मानव अपने अहं के चलते एक-दूसरे से क्षमा न मांगते हुए अपने अहं में डूबे रहते है। और यही वजह है कि वर्ष भर में ऐसा दिन भ‍ी आता है, जब मानव अपनी सारे भूलों, अपने अहंकार को छोड़कर क्षमा मांग सकता है और दूसरों को भी क्षमा कर सकता है।

इस धरती पर प्रत्येक प्राणी को जीवन जीने का अधिकार है। हम सब एक दूसरे के साथ मिल कर रहें। मधुर वचन बोलें, किसी प्राणी के हृदय को अप्रिय वाणी से दुखी न करें। और इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि वचन के घाव सबसे अधिक गहरे होते हैं।

इसलिए क्षमा पर्व पर सभी से क्षमायाचना करके हम उन घावों को कम कर सकते हैं। भगवान महावीर ने कहा कि जीवन में श्रेष्ठ शक्ति पाना है तो पुरुषार्थ व आचरण करना पड़ेगा। श्वेतांबर जैन धर्मावलंबी अपनी आत्मा को निर्मल बनाने के लिए संवत्सरी पर्व के तहत 'मिच्छामि दुक्कड़म' कह कर एक-दूसरे से क्षमायाचना करते है।