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सुतून ऐ दार
ग़ज़ल
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रशीद इंदौरी सुतून ऐ दार की उँचाई से न डर बाबा जो हौसला है तो इस राह से गुज़र बाबाये देख जु़लमत ए शब का पहाड़ काट के हम हथेलियों पे सजा लाए हैं सहर बाबा मिली है तब कहीं इरफ़ान ए ज़ात की मंजिल खुद अपने आपमें सदियों किया सफ़र बाबा बुलंदियाँ भी उसे सर उठा के देखती हैं सुतून ए दार की ज़ीनत बने जो सर बाबा