मेरी ग़ज़ल
- अज़ीज़ अंसारी
जो जैसा है उसको वैसा बोले मेरी ग़ज़ल आँख पे पट्टी बाँध के सबको तोले मेरी ग़ज़ल जिन राहों पे लोग हमेशा चलने से घबराएँ उन राहों पर अपना साथी होले मेरी ग़ज़लमेहफ़िल में जब लोग सुनें तो अंदर से शरमाएँ हर मिसरे में भेद सभी के खोले मेरी ग़ज़ल हार बुरा जब देखे सबका नींद इसकी उड़ जाएतुम ही कहो फिर चैन से कैसे सोले मेरी ग़ज़ल पढ़ने सुनने की लोगों को फुरसत कब है अज़ीज़ प्यार का अमृत दिल में कैसे घोले मेरी ग़ज़ल