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Written By WD

उसमें गहराई समंदर की कहाँ

उसमें गहराई समंदर की कहाँ -
विलास पंडित 'मुसाफ़िर'

वो यक़ीनन दर्द अपना पी गया
जो परिन्दा प्यासा रहके जी गया

झाँकता था जब बदन मिलती थी भीख
क्यूँ मेरा दामन कोई कर सी गया

जाने कितने पेट भर जाते मगर
बच गया खाना वो सब बासी गया

उसमें गहराई समंदर की कहाँ
जो मुझे दरिया समझकर पी गया

भौंकने वाले सभी चुप हो गए
जब मोहल्ले से मेरे हाथी गया

चहचहाकर सारे पंछी उड़ गए
वार जब सैयाद का खाली गया

लौटकर बस्ती में फिर आया नहीं
बनके लीडर जब से वो दिल्ली गया