मुनव्वर राना के मुनफ़रिद अशआर
* हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आए जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए* कोयल बोले या गोरैया अच्छा लगता है अपने गाँव में सब कुछ भैया अच्छा लगता है * उड़ने से परिन्दे को शजर रोक रहा है घरवाले तो ख़ामोश हैं घर रोक रहा है * नुमाइश पर बदन की यूँ कोई तैयार क्यों होताअगर सब घर के हो जाते तो ये बाज़ार क्यों होता* कच्चा समझ के बेच न देना मकान को शायद ये कभी सर को छुपाने के काम आए* अँधेरी रात में अक्सर सुनहरी मशालें लेकर परिन्दों की मुसीबत का पता जुगनू लगाते हैं * तुम्हारी आँखों की तोहीन है ज़रा सोचो तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है * किसी दुख का किसी चेहरे से अन्दाज़ा नहीं होता शजर तो देखने में सब हरे मालूम होते हैं * मोहब्बत एक ऐसा खेल है जिसमें मेरे भाई हमेशा जीतने वाले परेशानी में रहते हैं * अनाकी मोहनी सूरत बिगाड़ देती है बड़े-बड़ों को ज़रूरत बिगाड़ देती है * उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं * वो चिड़िया थीं दुआऎं पढ़ के जो मुझको जगाती थीं मैं अक्सर सोचता था ये तिलावत कौन करता है * नए कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है परिन्दों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है * जिसको बच्चों में पहुँचने की बहुत उजलत हो उससे कहिए न कभी कार चलाने के लिए * सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते * पेट की ख़ातिर फ़ुट-पाथों पर बेच रहा हूँ तस्वीरें मैं क्या जानूँ रोज़ा है या मेरा रोज़ा टूट गया * जब उससे गुफ़्तगू कर ली तो फिर शिजरा नहीं पूछा हुनर बख़यागिरी का एक तुरपाई में खुलता है* इसी गली में वो भूका किसान रहता है ये वो ज़मीं है जहाँ आसमान रहता है* ईद के ख़ौफ़ ने रोज़ों का मज़ा छीन लिया मुफ़लिसी में ये महीना भी बुरा लगता है पेशकश : अज़ीज़ अंसारी