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ईद-ए-क़ुरबाँ
प्रेम पाल अश्क लेके पैग़ामे-मसर्रत आगया दिन ईद काआज सब ही ने भरी हैं क़हक़हों से झोलियाँ दोस्ती, उल्फ़त, ओख़ुव्वत,की चली हैं टोलियाँ शादमानी को हमारी आज दुगना कर दिया ईद का मक़सद फ़क़त रोज़े-नमाज़ें ही नहीं ज़िन्दगी अपनी बना कुन्दन अमल की आग से बेकसों और नातवानों की ज़रा सुध-बुध तो ले पारसाई ही तेरी तुझको न ले डूबे कहीं देश की ख़ातिर मिटा दे अपनी हस्ती तू नदीम आज के दिन होगी क़ुरबानी यही सब से अज़ीम