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Written By अनिरुद्ध जोशी

Shri Krishna 13 Oct Episode 164 : अर्जुन जब ‍भीष्म पितामह का वध करने से कर देता है इनकार

Shri Krishna 13 Oct Episode 164 : अर्जुन जब ‍भीष्म पितामह का वध करने से कर   देता है इनकार - Shri Krishna on DD National Episode 164
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 13 अक्टूबर के 164वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 164 ) में पितामह कहते हैं कि हे अर्जुन मेरी पीड़ा दूर करने के लिए मेरा वध कर दो। यह सुनकर अर्जुन और भी भावुक हो जाता है। मैं तुम्हें ज्येष्ठ पितामह होने के नाते अपना कर्तव्य पालन करने को कह रहा हूं। कल तुम युद्ध भूमि पर मुझे अपना शत्रु समझकर युद्ध करोगे। अपने बाणों को मेरे सीने पर चलाओगे और अपने बाणों को चलाते समय अपने हाथों को कभी कांपने नहीं दोगे। बस करो अर्जुन, मैं इससे अधिक कुछ और नहीं सुनना चाहता। तुम्हें मेरा आदेश हर स्थिति में मानना ही होगा और ये भी याद रखो की मुझे इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त है और मेरी अंतिम इच्छा भी यही है कि मैं अपने पोते के बाणों से ही मरूं। जाओ पुत्र कल युद्ध भूमि पर मिलेंगे।
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा

 
अर्जुन शिविर से निकल जाता है तो उसे दुर्योधन और शकुनि देख लेते हैं। यह देखकर शकुनि कहता है देखा भांजे दिन में दोनों एक दूसरे से युद्ध करते हैं और रात में एक दूसरे के घाव पर लेप लगाते हैं। फिर दोनों पितामह के शिविर में चले जाते हैं। दुर्योधन पितामह से पूछता है कि हमारा शत्रु अर्जुन आपसे मिलने क्यूं आया था? यह सुनकर भीष्म पितामह कहते हैं जो आया था वह तुम्हारा दुश्मन अर्जुन नहीं, बल्कि मेरा पोता था। दादा को घायल देखकर जो पोता स्वयं घायल हो गया था। पर तुम इस बात को कभी नहीं समझोगे दुर्योधन। यह सुनकर दुर्योधन कहता है कि मैं भी तो आपका पोता हूं?
 
इस पर भीष्म पितामह कहते हैं कि तुम मुझसे कभी एक पोते की तरह मिले ही नहीं। तुमने पोते की तरह मिलकर मेरी भावना को समझने का प्रयास ही नहीं किया। तुमने तो मुझे हर समय आज्ञा ही दी है। यह सुनकर दुर्योधन और शकुनि भड़क जाते हैं और फिर तीनों में वाद-विवाद होता है और वे दोनों भीष्म की निष्ठा पर सवाल उठाते हैं तो वे इसका स्पष्टीकरण देते हैं और कहते हैं कि मैं हस्तिनापुर के सिंहासन की रक्षा के लिए लड़ रहा हूं। मेरी देश‍भक्ति पर संदेह करने वाले हर योद्धा को मैं कल दिखा दूंगा कि मैं प्राण दे सकता हूं परंतु हस्तिनापुर की सुरक्षा पर आंच नहीं आने दूंगा।
 
फिर अगले दिन भीष्म पितामह युद्ध में भयंकर संहार करने लग जाते हैं। यह देखकर अर्जुन भीष्म पितामह को रोकने के लिए उनसे युद्ध करता है। भीष्म पितामह अर्जुन को घायल कर अन्य योद्धाओं को भी घायल करने लग जाते हैं तो श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि देखो पार्थ क्या अनर्थ हो रहा है देखो। देखो! अर्जुन पितामह ने क्या प्रलय मचा रखा है। अर्जुन पितामह को रोको और उन पर प्रहार करो। फिर अर्जुन विवश होकर पिताहम के पेट में तीर छोड़ देता है जिससे पितामह घायल हो जाते हैं। फिर हाथ में और पैरों में तीर छोड़कर उन्हें घायल कर देता है। यह देखकर अर्जुन के हाथ कांपने लगते हैं।
 
श्रीकृष्ण कहते हैं ये क्या कर रहे हो तुम अर्जुन, ये क्या कर रहे हो। अपनी प्रत्यंचा को पूरी शक्ति से खींचों और पितामह के सीने को छेद डालो। ये तुम्हारे तीर पितामह के शरीर को केवल छू-छू कर गिर रहे हैं। यह सुनकर अर्जुन कहता है कि केशव! में तीर छोड़ तो रहा हूं पितामह पर। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि नहीं ये अर्जुन के तीर नहीं, अर्जुन के तीर तो पहाड़ को भी ठेर कर देते हैं और धरती के सीने छेद देते हैं।
 
यह सुनकर अर्जुन कहता है कि केशव मैं क्या करूं? यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं क्या करूं! अरे पितामह का वध करो। यह सुनकर अर्जुन कहता है- नहीं मैं पितामह का वध नहीं कर सकता केशव नहीं। यह सुनकर श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि तुम्हें अभी तक तुम्हारे दादा की चिंता है परंतु तुम्हारे दादा के हाथों जो धर्म का वध हो रहा है उसकी कोई चिंता नहीं? पार्थ पितामह को पांडवों में केवल तुम ही रोक सकते हो। केवल तुम ही उनका वध कर सकते हो। यह सुनकर रोते हुए अर्जुन कहता है कि केशव मैं क्या करूं, मेरे हाथ मेरी आज्ञा का पालन नहीं कर रहे हैं।
 
यह सुनकर श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि इसका मतलब यह कि तुम पितामह का वध नहीं करोगे? इस पर अर्जुन कहता है कि मैं पितामह का वध नहीं कर पाऊंगा केशव, नहीं कर पाऊंगा। यह सुनकर श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि तो ठीक है यदि तुम नहीं कर पाओगे पितामह का वध तो मैं करूंगा पितामह का वध, मैं उठाऊंगा शस्त्र। इस पर अर्जुन कहता है कि ये क्या कह रहे हो केशव? युद्ध में भाग ना लेने की अपनी प्रतिज्ञा तोड़ोगे? इस पर श्रीकृष्‍ण कहते हैं- इस प्रतिज्ञा को तोड़ने पर तुमने मुझे विवश किया है। यह सुनकर अर्जुन कहता है कि परंतु प्रतिज्ञा निभाना धर्म है और तुम प्रतिज्ञा तोड़कर अधर्म करोगे?
 
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये धर्म और अधर्म के दोराहे पर तुमने मुझे लाकर खड़ा किया है। मैंने प्रतिज्ञा ली थी शस्त्र ना उठाने कि क्योंकि मुझे पूर्ण विश्वास था कि तुम इस धर्मयुद्ध को केवल अपने बल पर ही जीत पाओगे और मेरे मित्र होने के नाते मैं ये श्रेय केवल तुम्हीं को देना चाहता था। परंतु तुम एक छोटा कर्तव्य निभाने के लिए एक बड़े कर्तव्य की बली चढ़ा रहे हो।.. मैं भी तुम्हारी तरह ये गलती करूं और मेरी आंखों के सामने धर्म, अधर्म से हार जाए तो मेरा अवतार लेना बेकार हो जाएगा।...
 
तभी श्रीकृष्ण देखते हैं कि किस तरह भीष्म पितामह हाहाकार मचाते हुए सेना का संहार कर रहे हैं। वे युधिष्ठिर और अन्य पांडवों के रथ को तोड़ देते हैं। यह देखकर श्रीकृष्‍ण कहते हैं- ठीक है तुम बैठे रहो यूं हीं अकेले अपनी कायरता की गुफा में मुंह छुपाए हुए। लेकिन मैं यूं पांडव सेना को हारते हुए नहीं देख सकता। मैं अधर्म को जीतते हुए नहीं देख सकता, इसलिए मैं जा रहा हूं, हां मैं जा रहा हूं पितामह का वध करने। 
 
ऐसा कहकर श्रीकृष्‍ण रथ से नीचे उतरकर पितामह की ओर कदम बढ़ाने लगते हैं और उनके सामने कुछ दूर खड़े हो जाते हैं। उन्हें देखकर पितामह युद्ध करना रोक देते हैं। तब श्रीकृष्ण अपनी अंगुली आसमान में उठाते हैं और तुरंत ही उनकी अंगुली पर सुदर्शन चक्र घूमने लगता है। यह देखकर अर्जुन, युधिष्ठिर, भीम, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और भीष्म पितामह आदि सभी घबरा जाते हैं। 
 
उधर, संजय धृतराष्ट्र से कहता है कि महाराज पितामह का वध करने के लिए श्रीकृष्‍ण ने सुदर्शन चक्र उठा लिया है। यह सुनकर धृतराष्ट्र कहते हैं क्या कहा।
 
तभी अर्जुन भागता हुआ पीछे से कहता है- केशव रूक जाओ, रुक जाओ केशव, रुक जाओ माधव, रुक जाओ। उधर, भीष्म यह देखकर कहते हैं- भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी।.. अर्जुन भागता हुआ आता है और श्रीकृष्‍ण के चरणों में गिरकर कहता है- रुक जाओ केशव, रुक आओ। अपनी प्रतिज्ञा तोड़ोगे तो लोग क्या कहेगा?
 
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि लोग यही कहेंगे कि मैंने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी, कल का इतिहास मुझे दोष देगा ना की मैं कहता कुछ हूं और करता कुछ और हूं ना। ठीक है मेरा नाम बदनाम होगा ना तो हो जाने दो परंतु मैं अधर्म को धर्म पर विजय प्राप्त नहीं करने दूंगा। मैंने मानव रूप में अवतार इसलिए लिया है कि मैं अधर्मियों को जीतने का अवसर ना दूं। मेरा जन्म ही धर्म की रक्षा के लिए हुआ है। हे पार्थ! जब धर्म की रक्षा के लिए कोई नहीं बचता, आशा की अंतिम किरण भी डूबने लगती और जब मेरा अर्जुन भी कायर हो जाता है। तब मैं स्वयं आता हूं धर्म की सुरक्षा के लिए।.. तुमने तो मेरा भरोसा ही छोड़ दिया है। अब मुझे तुम पर विश्‍वास नहीं रहा अर्जुन। तुम्हारे ये हाथ धर्म की रक्षा के योग्य नहीं है। पितामह के मोह ने तुम्हारी शूरवीरता को खोखला कर दिया है।
 
अंत में अर्जुन कहता है बस करो हे चक्रधारी! मुझे और लज्जित ना करो। बस एक अवसर और दो, मेरा विश्वास करो, मेरी भूल के कारण तुम्हें अपनी प्रतिज्ञा तोड़ने और शस्त्र उठाने की कोई आवश्‍यकता नहीं। अब मैं अपना धर्म निभाऊंगा और अब में डटकर युद्ध करूंगा। मुझे क्षमा कर दो मधुसूदन, मुझे क्षमा कर दो और सुदर्शन को वापस रख लो। यह सुनकर श्रीकृष्ण सुदर्शन को वापस रख लेते हैं।..
 
यह देखकर भीष्म पितामह रथ से उतरकर श्रीकृष्ण के पास आकर उन्हें प्राणाम करके कहते हैं कि आपने मेरी लाज रख ली प्रभु। ये सब आपने मेरे लिए ही किया है प्रभु। कोई जाने या ना जाने परंतु आपने अपने इस तुच्छ भक्त की बात रखने के लिए अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर मेरी लाज रख ली है। मैंने आपको शस्त्र उठाने के लिए विवश करने की प्रतिज्ञा की थी। परंतु बाद में मुझे समझ में आ गई कि मुझ जैसा तुच्छ भक्त तो क्या भगवान को कोई भी प्रतिज्ञा तोड़ने पर विवश नहीं कर सकता। परंतु आप तो भक्त वत्सल हैं ना। आपको तो ये कदापि स्वीकार नहीं था कि आपके भक्त की बात खाली जाए। कोई जाने या ना जाने परंतु मैं जानता हूं कि आपने केवल इस भक्त का मान रखने के लिए अपनी प्रतिज्ञा तोड़ी है। प्रभु आप सचमुच भक्त वत्सल है और यही मेरी जीत है प्रभु। इस युद्ध में मेरी सबसे बड़ी जीत यही है प्रभु। परंतु आपके हाथ में सुदर्शन देखकर मुझे लगा कि अब मेरी मुक्ति का समय आ गया है। परंतु अर्जुन ने मेरी मुक्ति का वह क्षण छीन लिया है। यह सुनकर अर्जुन आश्चर्य करने लगता है।
 
संजय धृतराष्ट्र को ये सारी घटना सुनाता है और दूसरी ओर माता पार्वती कहती हैं कि हे महादेव! प्रभु ने सुदर्शन चक्र उठाकर अपनी प्रतिज्ञा भंग की है। यह सुनकर शिवजी कहते हैं- हां देवी प्रभु ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर शस्त्र धारण किया क्योंकि ये आवश्‍यक हो गया था। यह सुनकर माता पार्वती कहती है परंतु क्यों भगवन? तब शिवजी कहते हैं कि अधर्म को धर्म पर विजय प्राप्त नहीं करने देने के लिए देवी। देवी जब तक भीष्म पितामह युद्ध कर रहे हैं तब तक पांडवों का जीतना असंभव है।
 
उधर, शिविर में द्रौपदी श्रीकृष्‍ण से कहती हैं कि गांडिवधारी को मेरे अपमान की नहीं पितामह के प्राणों की चिंता है,
 गुरुदेव द्रोण के मान ‍की चिंता है और गुरु पुत्र अश्‍वत्थामा की चिंता है। एक तुम्हारे अतिरिक्त किसी को मेरे मान अपमान की चिंता नहीं है केशव। तब श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि बिती बातों को भूल जाओ पांचाली अब अर्जुन ने मुझे वचन दिया है कि अब वह डटकर युद्ध करेगा और कौरवों को परास्त करेगा।... इस तरह दोनों में कई तरह की चर्चा होती है।
 
अगले दिन अर्जुन और भीम युद्ध में हाहाकार मचाकर कौरव सेना का जब संहार करने लग जाते हैं तो इसे रोकने के लिए कौरवों की ओर से कलिंग नरेश और उनका वीरपुत्र शुक्रदेव आगे बढ़े और भीम से उनका भयंकर युद्ध हुआ। संजय इस युद्ध के बारे में धृतराष्ट्र को बताता है कि किस तरह भीम केवल गदा लेकर कलिंग की सेना पर टूट पड़ा है। अंत में भीम कलिंग राज और उसके पुत्र का वध कर देता है। तब धृतराष्ट्र कहता है कि अकेले भीम से कलिंग सेना को परास्त कर दिया। संजय मुझे तो ऐसा लग रहा है कि हमारे प्रारब्ध में विजय लिखी ही नहीं है। एक ओर पितामह भीष्म अर्जुन को परास्त नहीं कर पा रहे हैं और दूसरी ओर भीम अकेले ही सभी को पछाड़ रहा है। इस दुर्भाग्य नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे। 
 
उधर, शिविर में दुर्योधन क्रोधित होकर कहता है कि ये अर्जुन आज तो कृष्ण के सुदर्शन चक्र की भांति घातक हो गया था। उसने हमारी व्यूह रचना के चिथड़े उड़ा दिए। अर्जुन के घातक प्रहारों का यही हाल रहा तो जीत चुके। शकुनि और कर्ण उसे सांत्वना देते हैं और शकुनि कहता कि अब इसका तोड़ है अलंबुस राक्षस। दुर्योधन कहता है वो मेरा मित्र? तब शकुनि कहता है- हां भांजे जो मायावी विद्या में निपुण है। ये युद्ध हम अपने बल से नहीं तो छल से जीतेंगे। पांडव संख्या में कम होते हुए भी हमसे बल में बहुत आगे हैं परंतु छल में हमसे बहुत पीछे हैं। इसलिए बुलाओ अपने अलंबुस को बुलाओ।
 
तब दुर्योधन खड़ा होकर अलंबुस का अह्‍वान करता है तो वहां पर अलंबुस प्रकट हो जाता है। तब दुर्योधन कहता है कि अब मेरा मित्र अलंबुस लगाएगा पांडवों पर अंकुश।
 
 
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रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
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