भगवान बुद्ध दुनिया का एक रहस्य हैं। भगवान तो बहुत हुए, लेकिन बुद्ध ने चेतना के जिस शिखर को छुआ है वैसा किसी और ने नहीं। बुद्ध का पूरा जीवन सत्य की खोज और निर्वाण को पा लेने में ही लग गया। उन्होंने मानव मनोविज्ञान और दुख के हर पहलू पर कहा और उसके समाधान बताए।
यह रिकॉर्ड है कि बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना किसी और ने नहीं। धरती पर अभी तक ऐसा कोई नहीं हुआ जो बुद्ध के बराबर कह गया। सैंकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे पड़े हैं और आश्चर्य कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है। जिसने बुद्ध को पड़ा और समझा वह भीक्षु हुए बगैर बच नहीं सकता।
बुध का रास्ता दुख से निजात पाकर निर्वाण अर्थात शाश्वत आनंद में स्थित हो जाने का रास्ता है। बुद्ध का जन्म किसी राष्ट्र, धर्म या प्रांत की क्रांति नहीं है बल्कि की बुद्ध के जन्म से व्यवस्थित धर्म के मार्ग पर पहली बार कोई वैश्विक क्रांति हुई है। बु्द्ध से पहले धर्म, योग और ध्यान सिर्फ दार्शनिकों का विरोधाभाषिक विज्ञान ही था। काशी या कांची में बैठकर लोग माथाफोड़ी करते रहते थे।
पश्चिम के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक बुद्ध और योग को पिछले कुछ वर्षों से बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं। चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेकों बौद्ध राष्ट्रों के बौद्ध मठों में पश्चिमी जगत की तादाद बड़ी है। सभी अब यह जानने लगे हैं कि पश्चिमी धर्मों में जो बाते हैं वे बौद्ध धर्म से ही ली गई है, क्योंकि बौद्ध धर्म ईसा मसीह से 500 साल पूर्व पूरे विश्व में फैल चुका था।
दुनिया का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहाँ बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों। दुनिया भर के हर इलाके से खुदाई में भगवान बुद्ध की प्रतिमा निकलती है। दुनिया की सर्वाधिक प्रतिमाओं का रिकॉर्ड भी बुद्ध के नाम दर्ज है।
उन मुल्कों के मस्तिष्क में शांति, बुद्धि और जागरूकता नहीं है जिन्होंने बुद्ध को अपने मुल्क से खदेड़ दिया है, भविष्य में भी कभी नहीं रहेगी। शांति, बुद्धि और जागरूकता के बगैर विश्व का कोई भविष्य नहीं है, इसीलिए विद्वानों द्वारा कहा जाता रहा है कि बुद्ध ही है दुनिया का भविष्य। वही है अंतिम दार्शनिक सत्य।
''बौद्ध धर्म को सिर्फ दो शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है- अभ्यास और जागरूकता।''- दलाई लामा
एस धम्मो सनंतनो अर्थात यही है सनातन धर्म। बुद्ध का मार्ग ही सच्चे अर्थों में धर्म का मार्ग है। दोनों तरह की अतियों से अलग एकदम स्पष्ट और साफ। जिन्होंने इसे नहीं जाना उन्होंने कुछ नहीं जाना। बुद्ध को महात्मा या स्वामी कहने वाले उन्हें कतई नहीं जानते। बुद्ध सिर्फ बुद्ध जैसे हैं।
हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के लिए बुद्ध का होना अर्थात धर्म का होना है। बुद्ध इस भारत की आत्मा हैं। बुद्ध को जानने से भारत भी जाना हुआ माना जाएगा। बुद्ध को जानना अर्थात धर्म को जानना है।
यह संयोग ही है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 को हुआ। इसी दिन 528 ईसा पूर्व उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के नीचे जाना कि सत्य क्या है और इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में दुनिया को कुशीनगर में अलविदा कह गए।
गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ। उनकी माता कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो उन्होंने रास्ते में लुम्बिनी वन में बुद्ध को जन्म दिया। कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था।
उनका जन्म नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनका सम्मान नेपाल ही नहीं समूचे भारत में था। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माँ का देहांत हो गया था।
मैत्रेय बुद्ध : ओशो की एक किताब अनुसार भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं के आग्रह पर उन्हें वचन दिया था कि मैं 'मैत्रेय' से पुन: जन्म लूँगा। तब से अब तक 2500 साल बीत गए। कहा जाता है कि बुद्ध ने इस बीच कई बार जन्म लेने का प्रयास किया, लेकिन कुछ कारण ऐसे बने कि वे जन्म नहीं ले पाए। अंतत: थियोसॉफिकल सोसाइटी ने जे. कृष्णमूर्ति के भीतर उन्हें अवतरित होने के लिए सारे इंतजाम किए थे, लेकिन वह प्रयास भी असफल सिद्ध हुआ। अंतत: ओशो रजनीश ने उन्हें अपने शरीर में अवतरित होने की अनुमति दे दी थी।
बुद्ध दर्शन के मुख्य तत्व : चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएँ, अनात्मवाद और निर्वाण। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटकों का एक भाग है धम्मपद। प्रत्येक व्यक्ति को तथागत बुद्ध के बारे में जानना चाहिए।