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अगले पन्ने पर क्या कहते हैं वैज्ञानिक, जानिए गंगा का सच...
16 साल में मर जाएगी गंगा : संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट अनुसार गंगा को सदानीरा बनाए रखने वाला हिमनद सिर्फ 16 साल और किसी न किसी तरह जिंदा रहेगा। यह हिमनद धीरे-धीरे पिघलता जा रहा है। उसके बाद यह पूरी तरह लुप्त हो जाएगा। आशय यह है कि गंगोत्री ही सूख जाएगी तो गंगा में वह पानी कहां से आएगा?
सीलिसबर्ग स्थित महर्षि वैदिक इंस्टीट्यूट की चिंता दूसरी तरह की है। इंस्टीट्यूट के कराए गए अध्ययन के मुताबिक गंगा नदी और उसके स्रोत गंगा ग्लेशियर को किसी तरह फिर भी बचा लिया जाए और गंगा नदी बहती रहे। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उसकी तीर्थवत्ता बनी रहे।
गंगा को पवित्र नदी क्यों माना जाता है, अगले पन्ने पर...
पवित्र है गंगा का जल : इसका वैज्ञानिक आधार सिद्ध हुए वर्षों बीत गए। उसके अनुसार नदी के जल में मौजूद बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु गंगाजल में मौजूद हानिकारक सूक्ष्म जीवों को जीवित नहीं रहने देते अर्थात ये ऐसे जीवाणु हैं, जो गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं। इसके कारण ही गंगा का जल नहीं सड़ता है।
भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी गंगा का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। इसका जल घर में शीशी या प्लास्टिक के डिब्बे आदि में भरकर रख दें तो बरसों तक खराब नहीं होता है और कई तरह के पूजा-पाठ में इसका उपयोग किया जाता है। ऐसी आम धारणा है कि मरते समय व्यक्ति को यह जल पिला दिया जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गंगा जल में प्राणवायु की प्रचुरता बनाए रखने की अदभुत क्षमता है। इस कारण पानी से हैजा और पेचिश जैसी बीमारियों का खतरा बहुत ही कम हो जाता है, लेकिन अब वह बात नहीं रही।
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गंगा नदी : पौराणिक गाथाओं के अनुसार भगीरथी नदी गंगा की उस शाखा को कहते हैं, जो गढ़वाल (उत्तरप्रदेश) में गंगोत्री से निकलकर देवप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है व गंगा का नाम प्राप्त करती है। ब्रह्मा से लगभग 23वीं पीढ़ी बाद और राम से लगभग 14वीं पीढ़ी पूर्व भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था। इससे पहले उनके पूर्वज सगर ने भारत में कई नदी और जलराशियों का निर्माण किया था। उन्हीं के कार्य को भगीरथ ने आगे बढ़ाया। पहले हिमालय के एक क्षेत्र विशेष को देवलोक कहा जाता था।
गंगा का उद्गम : गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। गंगोत्री को गंगा का उद्गम माना गया है। गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा का उद्गम स्थल है। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया, किंतु वस्तुत: उनका उद्गम 18 मील और ऊपर श्रीमुख नामक पर्वत से है। वहां गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा फूटी है। 3,900 मीटर ऊंचा गोमुख गंगा का उद्गम स्थल है। इस गोमुख कुंड में पानी हिमालय के और भी ऊंचाई वाले स्थान से आता है।
यह नदी 3 देशों के क्षेत्र का उद्धार करती है- भारत, नेपाल और बांग्लादेश। नेपाल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल और फिर बांग्लादेश में घुसकर यह बंगाल की खाड़ी में समा जाती है।
हिमाचल के हिमालय से निकलकर यह नदी प्रारंभ में 3 धाराओं में बंटती है- मंदाकिनी, अलकनंदा और भगीरथी। देवप्रयाग में अलकनंदा और भगीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से ऋषिकेश के निकट बाहर आती है और हरिद्वार के बाद मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है।
फिर यह नदी उत्तराखंड के बाद मध्यदेश से होती हुई यह बिहार में पहुंचती है और फिर पश्चिम बंगाल के हुगली पहुंचती है। यहां से बांग्लादेश में घुसकर यह ब्रह्मपुत्र नदी से मिलकर गंगासागर, जिसे आजकल बंगाल की खाड़ी कहा जाता है, में मिल जाती है। इस दौरान यह 2,300 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करती है। इस बीच इसमें कई नदियां मिलती हैं जिसमें प्रमुख हैं- सरयू, यमुना, सोन, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, घुघरी, महानंदा, हुगली, पद्मा, दामोदर, रूपनारायण, ब्रह्मपुत्र और अंत में मेघना।
गंगा की धारा : हिमालय से निकलकर गंगा 12 धाराओं में विभक्त होती है। इसमें मंदाकिनी, भगीरथी, धौलीगंगा और अलकनंदा प्रमुख है। गंगा नदी की प्रधान शाखा भगीरथी है, जो कुमाऊं में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यहां गंगाजी को समर्पित एक मंदिर भी है।
गंगा के तट के तीर्थ : गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा के तट पर हजारों तीर्थ है। गंगा को भारत का हृदय माना जाता है। इसके एक और सिन्धु और सरस्वती बहती है तो दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र।
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गंगा का योगदान : गंगा अपने प्राकृतिक सौंदर्य और औषधीय गुणों वाले जल के कारण भारत में हजारों-लाखों वर्षों से पूजी जा रही है। हजारों वर्षों से गंगा देश की प्यास बुझा रही है।
यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल जैसे वाराणसी, हरिद्वार और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएं भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित जरूरतों को पूरा करती हैं।