भगवान कृष्ण की नगरी-1
यमुना नदी के तट पर बसा सुंदर शहर मथुरा
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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु' श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी। दोनों को ही कंस ने कारागार में डाल दिया था। उस काल में मथुरा का राजा कंस था, जो श्रीकृष्ण का मामा था। कंस को आकाशवाणी द्वारा पता चला कि उसकी मृत्यु उसकी ही बहन देवकी की आठवीं संतान के हाथों होगी। इसी डर के चलते कंस ने अपनी बहन और जीजा को आजीवन कारागार में डाल दिया था।मथुरा यमुना नदी के तट पर बसा एक सुंदर शहर है। मथुरा जिला उत्तरप्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। इसके पूर्व में जिला एटा, उत्तर में जिला अलीगढ़, दक्षिण-पूर्व में जिला आगरा, दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान एवं पश्चिम-उत्तर में हरियाणा राज्य स्थित हैं। मथुरा, आगरा मण्डल का उत्तर-पश्चिमी जिला है। मथुरा जिले में चार तहसीलें हैं- मांट, छाता, महावन और मथुरा तथा 10 विकास खण्ड हैं- नन्दगांव, छाता, चौमुहां, गोवर्धन, मथुरा, फरह, नौहझील, मांट, राया और बल्देव हैं। मथुरा भारत का प्राचीन नगर है। यहां पर से 500 ईसा पूर्व के प्राचीन अवशेष मिले हैं, जिससे इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। उस काल में शूरसेन देश की यह राजधानी हुआ करती थी। पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि। उग्रसेन और कंस मथुरा के शासक थे जिस पर अंधकों के उत्तराधिकारी राज्य करते थे। मथुरा के बारह जंगल : वराह पुराण एवं नारदीय पुराण ने मथुरा के पास के 12 वनों की चर्चा की है- 1. मधुवन, 2. तालवन, 3. कुमुदवन, 3. काम्यवन, 5. बहुलावन, 6. भद्रवन, 7. खदिरवन, 8. महावन (गोकुल), 9. लौहजंघवन, 10. बिल्व, 11. भांडीरवन एवं 12. वृन्दावन। इसके अलावा 24 अन्य उपवन भी थे। आज यह सारे स्थान छोटे-छोटे गांव और कस्बों में बदल गए हैं।जन्मभूमि का इतिहास : जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ पहले वह कारागार हुआ करता था। यहां पहला मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था। इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी 'वसु' नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था। इसके बहुत काल के बाद दूसरा मंदिर सन् 800 में विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था, जबकि बौद्ध और जैन धर्म उन्नति कर रहे थे। इस भव्य मंदिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था, जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला। ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जू देव बुन्देला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य और पहले की अपेक्षा विशाल मंदिर बनवाया। इसके संबंध में कहा जाता है कि यह इतना ऊंचा और विशाल था कि यह आगरा से दिखाई देता था। लेकिन इसे भी मुस्लिम शासकों ने सन् 1669 ईस्वी में नष्ट कर इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी गई, जो कि आज भी विद्यमान है। इस ईदगाह के पीछे ही महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी की प्रेरणा से पुन: एक मंदिर स्थापित किया गया है, लेकिन अब यह विवादित क्षेत्र बन चुका है क्योंकि जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर।मथुरा के अन्य मंदिर : मथुरा में जन्मभूमि के बाद देखने के लिए और भी दर्शनीय स्थल है :- जैसे विश्राम घाट की ओर जाने वाले रास्ते पर द्वारकाधीश का प्राचीन मंदिर, विश्राम घाट, पागल बाबा का मंदिर, इस्कॉन मंदिर, यमुना नदी के अन्य घाट, कंस का किला, योग माया का स्थान, बलदाऊजी का मंदिर, भक्त ध्रुव की तपोस्थली, रमण रेती आदि। मथुरा परिक्रमा : मथुरा परिक्रमा में होते हैं कृष्ण से जुड़े प्रत्येक स्थलों के दर्शन। माना जाता है कि यह परिक्रमा चौरासी कोस की है जिसके मार्ग में अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फरीदाबाद की सीमा लगती है, लेकिन इसका अस्सी फीसदी हिस्सा मथुरा जिले में ही है। मथुरा से चलकर यात्रा सबसे पहले भक्त ध्रुव की तपोस्थली से शुरू होती है परिक्रमा इसके बाद... 1.
मधुवन2.
तालवन 3.
कुमुदवन 4.
शांतनु कुण्ड 5.
सतोहा 6.
बहुलावन 7.
राधा-कृष्ण कुण्ड 8.
गोवर्धन 9.
काम्यक वन10.
संच्दर सरोवर11.
जतीपुरा 12.
डीग का लक्ष्मण मंदिर13.
साक्षी गोपाल मंदिर 14.
जल महल 15.
कमोद वन 16.
चरन पहाड़ी कुण्ड 17.
काम्यवन 18.
बरसाना 19.
नंदगांव 20.
जावट 21.
कोकिलावन 22.
कोसी 23.
शेरगढ 24.
चीर घाट 25.
नौहझील 26.
श्री भद्रवन27.
भांडीरवन28.
बेलवन29.
राया वन30.
गोपाल कुण्ड 31.
कबीर कुण्ड32.
भोयी कुण्ड33.
ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर 34.
दाऊजी35.
महावन36.
ब्रह्मांड घाट37.
चिंताहरण महादेव38.
गोकुल 39.
लोहवन40.
वृन्दावनइस यात्रा मार्ग में कई और पौराणिक स्थलों के अलावा 12 वन, 24 उपवन, चार कुंज, चार निकुंज, चार वनखंडी, चार ओखर, चार पोखर, 365 कुण्ड, चार सरोवर, दस कूप, चार बावरी। (क्रमश:)