मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. नवरात्रि
  4. Ashwathama Prayed First At Kali Vahan Temple
Written By

उत्तर प्रदेश के इस मंदिर में अश्‍वत्थामा करते हैं सबसे पहले पूजा...

उत्तर प्रदेश के इस मंदिर में अश्‍वत्थामा करते हैं सबसे पहले पूजा... - Ashwathama Prayed First At Kali Vahan Temple
इटावा। महाभारत कालीन सभ्यता से जुडे उत्तर प्रदेश के इटावा में यमुना नदी के तट पर मां काली के मंदिर में मान्यता है कि महाभारत का अमर पात्र अश्वत्थामा आज भी रोज सबसे पहले पूजा करते है। 
 
कालीवाहन नामक यह मंदिर इटावा मुख्यालय से मात्र पांच किलोमीटर दूर यमुना के किनारे स्थित है। नवरात्रि पर इस मंदिर का खासा महत्व हो जाता है। दूरदराज से श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के इरादे से यहां आकर मां काली के चरणों में अपना शीश नवाते हैं।
 
कालीवाहन मंदिर के मुख्य मंहत राधेश्याम द्विवेदी ने बताया कि दूरदराज के क्षेत्रों तक में ख्यातिप्राप्त इस अति प्राचीन मंदिर का एक अलग महत्व है। नवरात्रि के दिनों में तो इस मंदिर की महत्ता अपने आप में खास बन पड़ती है। 
 
उनका कहना है कि वे करीब 40 साल से इस मंदिर की सेवा कर रहे है लेकिन आज तक इस बात का पता नहीं लग सका है कि रात के अंधेरे में जब मंदिर को धोकर साफ कर दिया जाता है, इसके बावजूद तड़के जब गर्भगृह खोला जाता है उस समय मंदिर के भीतर ताजे फूल मिलते है जो इस बात को साबित करता है कोई अदृश्य रूप में आकर पूजा करता है। अदृश्य रूप में पूजा करने वाले के बारे में कहा जाता है कि महाभारत के अमर पात्र अश्‍वत्थामा मंदिर में पूजा करने के लिए आते है।

 
मंदिर की महत्ता के बारे में कर्मक्षेत्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि इतिहास में कोई भी घटना तब तक प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती जब तक कि उसके पक्ष में पुरातात्विक, साहित्यिक, ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध न हो जाएं लेकिन जनश्रुतियों के अनुसार कतिपय बातें समाज में प्रचलित हो जातीं हैं। यद्यपि महाभारत ऐतिहासिक ग्रंथ है, मगर उसके पात्र अश्वत्थामा का इटावा में काली मंदिर में आकर पूजा करने का कोई प्रत्यक्ष ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

 
कभी चंबल के खूंखार डाकुओं की आस्था का केंद्र रहे तथा महाभारत कालीन सभ्यता से जुडे इस मंदिर से डाकुओं से इतना लगाव रहा है कि वे अपने गिरोह के साथ आकर पूजा-अर्चना करने में पुलिस की चौकसी के बावजूद कामयाब हुए। इस बात की पुष्टि मंदिर में डाकुओं के नाम के घंटे और झंडे चढ़े हुए देखे गए।
 
शक्ति मत में दुर्गा पूजा के प्राचीनतम स्वरूप की इटावा कालीवाहन मंदिर अभिव्यक्ति है। इटावा के गजेटियर में इसे काली भवन का नाम दिया गया है। यमुना के तट के निकट स्थित यह मंदिर देवी भक्तों का प्रमुख केन्द्र है। इष्टम अर्थात शैव क्षेत्र होने के कारण इटावा में शिव मंदिरों के साथ दुर्गा के मंदिर भी बड़ी संख्या में हैं। महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती की प्रतिमाएं है, इस मंदिर में स्थापित प्रतिमाएं 10वीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य की है।

 
मंदिर में देवी की तीन मूर्तियां महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती की हैं। महाकाली का पूजन शक्ति धर्म के आरंभिक स्वरूप की देन है। मार्कण्डेय पुराण एवं अन्य पौराणिक कथानकों के अनुसार दुर्गा जी प्रारंभ में काली थी। एक बार वे भगवान शिव के साथ आलिगंनबद्ध थीं, तो शिवजी ने परिहास करते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे श्वेत चंदन वृक्ष में काली नागिन लिपटी हुई हो। पार्वती जी को क्रोध आ गया और उन्होंने तपस्या के द्वारा गौर वर्ण प्राप्त किया।

 
महाभारत में उल्लेख है कि दुर्गा जी ने जब महिषासुर तथा शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया, तो उन्हें काली, कराली, कल्याणी आदि नामों से भी पुकारा जाने लगा। कालीवाहन मंदिर के बारे में जनश्रुति है, कि प्रात: काल जब भी मंदिर का गर्भगृह खोला जाता है, तो मूर्तियां पूजित मिलती हैं। कहा जाता है कि द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा अव्यक्ता रूप में आकर इन मूर्तियों की पूजा करते है। कालीवाहन मंदिर श्रद्धा का केन्द्र है। नवरात्रि के दिनों में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

 
यह मंदिर काफी पहले से सिनेमाई निर्देशकों के आकर्षण का केंद्र बना रहा है। डाकुओं पर बनी कई फिल्मों की शूटिंग इस मंदिर परिसर में हो चुकी है। निर्माता-निर्देशक कृष्णा मिश्रा की फिल्म बीहड की भी फिल्म का कुछ हिस्सा इस मंदिर में फिल्माया गया है बीहड नामक यह फिल्म 1978 से 2005 के मध्य चंबल घाटी में सक्रिय रहे डाकुओं की जिंदगी पर बनी है। (वार्ता)


 
ये भी पढ़ें
कितनी फिट है आपकी बॉडी? पता लगाएं इन 5 लक्षणों से