वित्त मंत्रालय ने दी अनुमति, राज्य ले सकेंगे 68 हजार 825 करोड़ का अतिरिक्त कर्ज
नई दिल्ली। वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को उन 20 राज्यों को बाजार से 68,825 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि जुटाने की अनुमति दे दी जिन्होंने माल एवं सेवाकर (जीएसटी) क्रियान्वयन के कारण राजस्व में आई कमी की भरपाई के लिए केंद्र द्वारा पेश 2 विकल्प में से पहले विकल्प का चुनाव किया है।
वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने राजस्व क्षतिपूर्ति के लिए पहले विकल्प का चुनाव करने वाले 20 राज्यों को उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.50 प्रतिशत की दर से बाजार से अतिरिक्त उधारी जुटाने की अनुमति दी। यह राशि कुल 68,825 करोड़ रुपए बनती है।
जीएसटी क्षतिपूर्ति के पहले विकल्प के तहत राज्यों को वित्त मंत्रालय के समन्वय के साथ विशेष खिड़की के जरिए कर्ज जुटाने की सुविधा की पेशकश की गई है। विभाग ने कहा है कि विशेष उधार की सुविधा के मामले में अलग से कदम उठाया जा रहा है।
व्यय विभाग ने कोरोनावायरस संकट में राजस्व की कमी दूर करने के लिए 17 मई को राज्यों को उनके जीएसडीपी का 2 प्रतिशत अतिरिक्त कर्ज बाजार से जुटाने की अनुमति दी थी। इस 2 प्रतिशत में से अंतिम आधा प्रतिशत उधारी को सुधारों से जोड़ दिया गया था। राज्यों से कहा गया था कि उन्हें इस आधा प्रतिशत कर्ज के लिए केंद्र सरकार द्वारा बताए गए 4 में से कम से कम 3 सुधारों को अपनाना होगा।
वित्त मंत्रालय की जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि जिन राज्यों ने जीएसटी क्रियान्वयन की वजह से राजस्व क्षतिपूर्ति की भरपाई के लिए पहले विकल्प का चुनाव किया, उन्हें 2 प्रतिशत अतिरिक्त उधारी में से अंतिम आधा प्रतिशत कर्ज जुटाने के साथ जुड़ी सुधारों की शर्त से छूट मिल गई है। पहला विकल्प चुनने के साथ वह 0.50 प्रतिशत की अतिरिक्त उधारी की आखिरी किस्त के लिए पात्र बन गए हैं इसलिए उन्हें बाजार से यह उधार जुटाने की अनुमति दी गई है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि जीएसटी परिषद की 27 अगस्त 2020 को हुई बैठक में केंद्र सरकार की तरफ से जीएसटी क्षतिपूर्ति के लिए राज्यों के समक्ष 2 विकल्प रखे गए थे। 29 अगस्त को इन दोनों विकल्पों के बारे में राज्यों को जानकारी दे दी गई थी। आंध्रप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, ओडिशा, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड ने पहले विकल्प को अपनाने की अपनी सहमति जताई है। 8 राज्यों ने अभी तक अपनी राय व्यक्त नहीं की है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि जीएसटी क्षतिपूर्ति के लिए पहला विकल्प चुनने वाले राज्यों को कुछ सुविधाएं उपलब्ध हैं। उन्हें वित्त मंत्रालय के समन्वय के साथ राजस्व में कमी को पूरा करने के लिए ऋण पत्र जारी कर विशेष उधारी खिड़की से राशि जुटाने की सुविधा उपलब्ध होगी। इस मद में कुल मिलाकर 1.10 लाख करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई जाएगी। इसके साथ पहला विकल्प चुनने वाले राज्यों को केंद्र द्वारा उनके जीएसडीपी का 2 प्रतिशत अतिरिक्त उधारी की 0.50 प्रतिशत की अंतिम किस्त को बाजार से जुटाने की अनुमति भी होगी। उन्हें सुधारों की शर्त से भी छूट होगी। इसी छूट के तहत राज्यों को बाजार से अतिरिक्त 68,825 करोड़ रुपए जुटाने की अनमति दी गई है।
इससे महाराष्ट्र को 15,394 करोड़ रुपए, उत्तरप्रदेश 9,703 करोड़ रुपए, कर्नाटक 9,018 करोड़ रुपए, गुजरात 8,704 करोड़ रुपए, आंध्रप्रदेश 5,051 करोड़ रुपए, हरियाणा को 4,293 करोड़ रुपए, ओडिशा को 2,858 करोड़ रुपए और उत्तराखंड को 1,405 करोड़ रुपए सहित कुल 20 राज्यों को 68,825 करोड़ रुपए की अतिरिक्त उधारी जुटाने की अनुमति मिल गई है।
कोरोना वायरस महामारी के कारण पस्त अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष के दौरान केंद्र और राज्यों के बीच जीएसटी क्षतिपूर्ति का मुद्दा अटका हुआ है। वर्ष के दौरान कोरोना से प्रभावित आर्थिक गतिविधयों के कारण राज्यों की कुल राजस्व कमी 2.35 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। केंद्र का कहना इसमें से जीएसटी क्रियान्वयन के कारण 97,000 करोड़ रुपए (अब 1.10 लाख करोड़ रुपए) की कमी आने का अनुमान है, शेष कोविड- 19 महामारी से आर्थिक गतिविधियों में आई शिथिलता की वजह से होने का अनुमान है।
केंद्र ने राज्यों के समक्ष राजस्व कमी की भरपाई के लिए 2 विकल्प रखे हैं। पहला विकल्प 1.10 लाख करोड़ रुपए की भरपाई के लिए उन्हें वित्त मंत्रालय के समन्वय के साथ रिजर्व बैंक से विशेष खिड़की के जरिए यह राशि उपलब्ध कराई जाएगी जिसका भुगतान जीएसटी उपकर को 2022 के बाद भी लागू रखकर उससे मिलने वाले राजस्व से किया जाएगा। वहीं दूसरा विकल्प पूरी 2.35 करोड़ रुपए की राशि को राज्य बाजार से उठाएं और भविष्य की राजस्व प्राप्ति से उसे चुकाएं।
इसमें से महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, ओडिशा सहित 20 राज्य पहले विकल्प पर सहमति जता चुके हैं जबकि केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल सहित विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्य इससे सहमत नहीं हैं। उनकी दलील है कि केंद्र सरकार को खुद बाजार से लेकर राज्यों को यह राशि उपलब्ध करानी चाहिए। केंद्र का कहना है कि वह बाजार से यह राशि नहीं जुटा सकता है इससे बाजार में कर्ज महंगा हो जाएगा जिसका खामियाजा सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों को भुगतना पड़ सकता है। (भाषा)