रविवार, 22 दिसंबर 2024
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Written By शरद सिंगी

बरकरार है ट्रंप-किम की सिंगापुर मीटिंग की सनसनी

बरकरार है ट्रंप-किम की सिंगापुर मीटिंग की सनसनी - Donald Trump Kim Jong Singapore Meeting
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और उत्तरी कोरिया के तानाशाह के बीच 12 जून को सिंगापुर में होने वाली मीटिंग इस समय सुर्ख़ियों में हैं और विश्व को इस मीटिंग का बेसब्री से इंतज़ार है। यद्यपि कोई दावे से नहीं कह सकता कि यह बहुप्रतीक्षित मीटिंग होगी भी या नहीं।
 
कूटनीति में जिनको रूचि है वे जरूर इस समय 'डोनाल्ड ट्रंप' और 'किम जोंग उन' के बीच खेली जा रही कूटनीतिक चालों का आनंद ले रहे होंगे। इन चालों का आनंद ही ले सकते हैं क्योंकि इन्हें समझने की कोशिश करना बेकार है। मीडिया छोड़िये, कूटनीति के धुरंधरों को भी समझ में नहीं आ रहा कि हो क्या रहा है? एक तरफ हैं अमेरिका के राष्ट्रपति जो गैर राजनीतिज्ञ व्यवसायी हैं तो दूसरी ओर है युवा तानाशाह जिसका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है।
 
कूटनीति की बिसात पर इनका अपना चिंतन है, अपने  मोहरे हैं और अपनी चाल है। अलिखित नियम के अनुसार  खेल में जो अपने प्रतिद्वंद्वी पर बेईमानी का आरोप लगाकर पहले उठेगा वो जीतेगा।
 
बीच खेल में से 'किम' के उठने की कोशिश को भांपते हुए ट्रंप ने तुरंत खेल छोड़ने का ट्वीट कर दिया और किम को लिखे पत्र को सार्वजानिक कर, खेल छोड़ने के कारणों का ठीकरा उसके सर फोड़ दिया।
 
उधर किम ने बाजी पलटी हुई देखी तो उसने तुरंत ट्रंप को फुसलाया और इधर ट्रंप बच्चे की तरह छोड़े हुए खेल को खेलने पुनः बैठ गए। जब तक एक टेबल पर दोनों एक साथ नहीं आ जाते तब तक यह रहस्य बना ही रहेगा कि ये लोग मिलेंगे या नहीं मिलेंगे।  
 
हम अपने पाठकों को याद दिला दें कि उत्तरी कोरिया विश्व जगत को किए वादों से मुकरने के लिए मशहूर है। वहीं ट्रंप भी पूर्व राष्ट्रपतियों द्वारा किए वादों को धड़ाधड़ तोड़ने में लगे हैं। किम और ट्रंप दोनों इस मीटिंग से होने वाले फायदों और नुकसान पर नज़र रहे हुए हैं और दोनों में से किसी को भी अंदेशा हुआ कि मीटिंग के परिणाम से उनकी व्यक्तिगत छवि को नुकसान हो सकता है तो वे तुरंत मीटिंग को रद्द करे देंगे। यह भी हो सकता है कि सिंगापुर में होने वाली बैठक में दोनों में से एक पहुंचे और दूसरे की खिल्ली उड़ जाए। इसलिए हर कदम फूँक-फूँक कर उठाया जा रहा है।  
 
यह है भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की साख में पिछले दिनों यकायक परिवर्तन आया है और आलोचनाओं से अधिक आजकल उनकी प्रशंसा में लेख लिखे जा रहे हैं। ऐसा इसलिए कि पिछले कुछ महीनों में लिए गए उनके निर्णय अमेरिका की जनता को पसंद आ रहे हैं और उन्होंने उन निर्णयों से अपने चुनावी वादों को पूरा भी किया है।
 
सबसे पहले उदहारण लें ईरान का। ट्रंप, ईरान के साथ पूर्व राष्ट्रपति ओबामा द्वारा किए गए परमाणु समझौते के कटु आलोचक थे और कई बार कहा कि यह संधि इतनी कमजोर है कि इससे ईरान का कुछ बिगड़ने वाला नहीं। हुआ भी यही, ईरान संधि के विपरीत कुछ देशों विशेषकर सीरिया, लेबनान और यमन में अमेरिका के हितों के विरुद्ध अपने अतिवादी संगठनों को सहायता दे रहा है। ट्रंप की कई चेतावनियों के बावजूद ईरान ने हथियार देना जारी रखा हुआ है। अंततः ट्रंप ने इस संधि से बाहर आने की घोषणा कर दी। ईरान से आतंकित अरब देशों ने ट्रंप के इस निर्णय का भरपूर स्वागत किया। 
 
दूसरी उपलब्धि चीन के साथ रही जब उन्होंने चीन से बिना किसी खौफ के चीनी उत्पादों के आयात पर टैक्स ठोक दिया तथा आगे और लगाने की चेतावनी भी दे दी। शुरू में तो चीन ने बदले की कार्यवाही की किन्तु ट्रंप के तेवरों को देखकर वह वार्ता की मेज पर बैठ गया और अब दोनों देशों के बीच आयात निर्यात के संतुलन की  बात करने लगा है जो इतने वर्षों तक कोई दूसरा अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं कर पाया था।  
 
जाहिर है ट्रंप अमेरिकी हितों को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले रहे हैं इसलिए जनता उनके आलोचकों की सुन नहीं रही। तेल अवीव से अमेरिकी दूतवास को यरूशलम ले जाने के निर्णय की विश्वभर में आलोचना हुई, किन्तु ट्रंप ने कोई परवाह नहीं की। ट्रंप मिडिया के चहेते कभी नहीं रहे किन्तु लोग अभी मिडिया से अधिक ट्रंप की सुन रहे हैं। ऐसे में मिडिया को भी धीरे धीरे अपना रुख बदलने को मज़बूर होना पड़ रहा है।
 
सिद्ध यह हुआ कि नेता अपनी क़ाबलियत और सही निर्णय लेने की क्षमता से लीडर बनता है न कि उसके अतीत से या उसकी व्यक्तिगत जिंदगी से। हमारा आकलन है कि यदि ट्रंप, उत्तरी कोरिया के तानाशाह के साथ अमेरिका के हित में कोई संधि कर पाए तो अमेरिकी जनता के बीच उनका कद और बढ़ेगा।
 
राष्ट्रपति ट्रंप का मानना है कि वे अपनी जनता के प्रति जवाबदेह है, विश्व के प्रति नहीं। एक इतिहास बनने की व्यापक संभावनाएं क्षितिज पर है और हम चाहेंगे कि हमारे पाठकों की सिंगापुर मीटिंग के परिणामों पर उत्सुकतापूर्ण नज़रें बनी रहे।