शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. blog on life style

कितने इंसान बचे हैं आप, परखें अपनी मानवीयता को

कितने इंसान बचे हैं आप, परखें अपनी मानवीयता को - blog on life style
इस दुनिया में सभी को अपने मन का हो,तो स्वाभाविक रूप से सुखद लगता है। लेकिन जब स्थिति विपरीत हो,तो उस क्षण व्यक्त प्रतिक्रिया आपके संपूर्ण अंतर्बाह्य का परिचय दे देती है। 
 
ऐसे समय जो व्यक्ति धैर्य रख ले,सामने वाले की स्वयं से पृथक परिस्थिति समझकर उसके प्रति आवेश के स्थान पर शांत रहे, वह परम विवेकी और जो स्वयं को ही प्रत्येक परिस्थिति में सही व उचित मान कर अन्य को गलत ठहराए,उसे कोसे,अपशब्द कहे,वह महाअविवेकी।
 
निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति परिवार और समाज में नकारात्मकता का ही प्रसार करते हैं। चूंकि वे स्वयं को छोड़कर शेष के प्रति नकार और विरोध के भाव से ही सदैव भरे रहते हैं, इसलिए ना वे स्वयं कभी सुखी रहते हैं और ना कभी दूसरों को सुकून में रहने देते हैं।
 
हाल ही में मैंने एक ऐसे दंपत्ति के विषय में जाना, जो बीस वर्षों से एक साथ हैं। समाज उन्हें परस्पर अतीव स्नेह करने वाले जोड़े के रूप में जानता है क्योंकि बाहर से उनका व्यवहार यही संप्रेषित करता है।
 
लेकिन जब भीतर से उनके अपनों ने जाना,तो स्थिति अत्यंत दुखद निकली। पति ने सदा पत्नी पर शासन किया और वह उसकी बुद्धिमत्ता, ज्ञान ,कर्म और परिवार की बेहतरी में दिए जा रहे महत्वपूर्ण योगदान को ताक पर रख उसे एक गुलाम से अधिक कुछ नहीं समझता। चंद सुविधाएं पत्नी को उपलब्ध कराकर वो यह समझता है कि उससे बेहतर पति दुनिया में अन्य कोई नहीं और इनके लिए वह निरंतर पत्नी को ताने दे कर अहसान जताता है। 
 
इस तनाव भरी ज़िंदगी को जीते-जीते पत्नी की समस्त प्रतिभा कुंठित हो गई है और बाहर से प्रसन्न और सुंदर नज़र आने वाली वह भीतर से बिल्कुल खोखली हो चुकी है।
 
इस त्रासद कथा से व्यथित होना स्वाभाविक था क्योंकि ये एक घर की नहीं बल्कि कई घरों की कहानी है। सच में इस युग में मानवीयता का ग्राफ बहुत नीचे गिर गया है। सोचकर देखने में ही बड़ा दुखद लगता है। कैसे एक व्यक्ति दूसरे के जीवन की समस्त संभावनाओं की हत्या कर देता है ? जो व्यक्ति उसके परिवार की धुरी है ,उस पर ही हर दिन, हर पल, एक नई चोट करने में कैसे सुख पा लेता है?
 
मैं ऐसे लोगों से पूछना चाहती हूं कि जिसके साथ सुख-दुख समान भाव से जीने का आजीवन अनुबंध हो,जिसके साहचर्य से कुछ परिजनों के समूह को 'घर' का आत्मीय स्वरूप देने की प्रतिज्ञाबद्धता हो, जो अपना सर्वस्व छोड़कर आपके निकट स्वयं को समूचा न्यौछावर कर दे, उसे कष्ट देने में कौन से आनंद की खोज आपने कर ली ? तनिक बताइए तो उस दुनिया को, जो आनंद पाने के लिए अपने पूरे वजूद में पगलाई हुई है।
 
जो आप कर रहे हैं ,यदि सच में आपकी आत्मा को उसमें सुकून मिल रहा है,तो दूसरों को भी वह तरीका बताकर उनका भला करने में कोई हर्ज़ नहीं।
 
बस,मेरा इतना ही कहना है कि यदि आपके परिचित, मित्र या रिश्तेदारों में से पांच लोग भी इस व्यवहार को सही ठहरा दें, तो आप उत्तीर्ण अन्यथा आप उस कटघरे में खड़े हैं ,जहां से सदैव मानवता के अपराधी ही घोषित किए जाएंगे।
 
स्वयं को दुनिया भर के ज्ञान से संपन्न मानने वाले ऐसे खोखले बुद्धिजीवियों से मेरा आग्रह है कि किसी एक क्षण आत्मावलोकन भी कीजिए। मनुष्यता के पैमाने पर स्वयं का मूल्यांकन करने का प्रयास कीजिए। मनुष्यता अर्थात् स्नेह,संवेदना,क्षमा, दया, परोपकार आदि गुणों का समूह। इनमें से एक या दो नहीं बल्कि इन सभी गुणों को अपने परिवार से लेकर समाज तक आप वाणी से अधिक व्यवहार में कितना जीते हैं,उस पर आपका योग्य आकलन संभव होगा।
 
स्मरण रखिए,आप ईश्वर नहीं हैं जो सर्वगुणसंपन्न होता है। आप इंसान ही हैं,जिसमें कम-अधिक रूप में गुण और अवगुण दोनों होते हैं। बेहतर इंसान वह है, जो अधिक गुणसंपन्न हो और कम अवगुणधारी। 
 
साथ ही जो अपने अवगुणों को स्वीकार कर उनमें सुधार की इच्छा रखता हो। यह आत्म स्वीकृति और इच्छा ही आपको बेहतर मानव बनाती है। 
 
समाज में एक भले इंसान का मुखौटा लगाकर प्रतिष्ठा पा लेना ही पर्याप्त नहीं है,परिवार की अनुभूति भी आपके लिए समान होनी चाहिए क्योंकि वहां आप मुखौटों के साथ नहीं जी सकते।
 
ऐसे तमाम मुखौटेधारियों को एक बार,सिर्फ़ एक बार अपनी आत्मा की वह आवाज़ सुननी चाहिए,जिसे सदा वे अपने अहंकार में लिपटे अविवेक के तले दबाते आए हैं और जिसमें मानवीयता की वो महक है,जिससे आपके घर-आंगन सहित समूचा अस्तित्व स्थायी रूप से सुवासित हो उठेगा। 
 
सच मानिये, यह सुगंध इतनी दिव्य होगी कि तमाम दुनियावी दुःख-कष्टों के साथ जीते हुए भी आपके भीतर का सुख कभी कम ना होगा।
ये भी पढ़ें
हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर विशेष : आज ही से आरंभ हुआ था उदंत्त मार्तंड