पिता ही नहीं, मां भी थे बापू....
नई दिल्ली। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के वैसे तो अपने 4 पुत्र थे लेकिन वे तमाम भारतीयों को अपनी मानस संतान के तौर पर देखते थे। फिर भी उन्होंने अंतिम दिनों में अपने साथ रहीं मनुबेन गांधी का पालन-पोषण मां के रूप में किया।
महात्मा गांधी की पौत्री मनु से बापू बार-बार कहते थे। मैं तो तुम्हारी मां बन चुका हूं न, बाप तो बहुतों का बन चुका लेकिन मां तो सिर्फ तुम्हारी ही बना हूं।
बापू की यह टिप्पणी मनुबेन गांधी लिखित पुस्तिका 'बापू मेरी मां' में उल्लिखित है। उल्लेखनीय है कि 1946 के आखिर में जब से मनुबेन महात्मा गांधी के साथ हुई, तब से उन्होंने वहां की डायरी लिखी। मनुबेन नोआखाली का मिशन शुरू होने से लेकर बापू के अंतिम दिन तक उनके साथ थीं।
लेखिका के अनुसार पुरुष मां नहीं बन सकता, क्योंकि ईश्वर ने जो वात्सल्यपूर्ण हृदय स्त्री को दिया है वह पुरुष को नहीं दिया, लेकिन बापू ने पुरुष होकर भी ईश्वर की इस अनोखी देन में हिस्सा बंटाया था।
मनुबेन के अनुसार जिस तरह एक मां अपनी बच्ची की परवरिश करती है उसी तरह बापू ने मुझे पाला था। मनु की उम्र जब सिर्फ 12 साल थी तभी उन्हें जन्म देने वाली मां का निधन हो गया था। शुरू में कस्तूरबा गांधी ने मां की भूमिका निभाई। बा की मृत्यु के बाद मां का जिम्मा बापू ने संभाला।
मां की भूमिका में बापू ने मनुबेन के कपड़े पहनने के तरीके से लेकर नियमित पढ़ाई तक में अहम भूमिका निभाई। बापू ने उन्हें संस्कृत पढ़ाना अंत तक नहीं छोड़ा, उस समय भी जब उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। इसके अलावा बापू ने गीता पढ़ाने में भी काफी दिलचस्पी ली।
मनुबेन ने अपनी किताब में सादगीपसंद गांधीजी के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों का वर्णन किया है। उनकी सख्त दिनचर्या, विलंब से परहेज, बच्चों से लगाव, समाज के हर व्यक्ति का ख्याल, सफाई समय का सदुपयोग, राम नाम में श्रद्धा आदि शामिल हैं।
मनुबेन के अनुसार राम नाम में उनकी श्रद्धा आखिर तक बनी रही। 30 जनवरी 1948 को बापू ने मुझसे कहा था कि आखिरी दम तक हमें राम नाम रटते रहना चाहिए। इस तरह आखिरी वक्त भी बापू के मुंह से दो बार राम-रा....म सुनना मेरे ही भाग्य में बदा था। (भाषा)