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Last Modified: शनिवार, 8 दिसंबर 2018 (11:13 IST)

इंसान के शरीर में धड़क सकता है सूअर का दिल

इंसान के शरीर में धड़क सकता है सूअर का दिल | swine heart
मेडिकल साइंस अंग प्रत्यर्पण के लिए पूरी तरह से अंगदाताओं पर निर्भर करता है। एक जर्मन सर्जन ने सूअर के दिल को लंगूर में सफलतापूर्वक प्रत्यर्पित कर जल्द ही सुअरों का दिल इंसानों में धड़काने की संभावना भी जगा दी है।
 
 
जर्मन सर्जन ब्रूनो राइषार्ट ने लंगूर के शरीर में सूअर के दिल का सफलतापूर्वक प्रत्यर्पण किया है। अब यह उम्मीद जतायी जा रही है कि ऐसा प्रयोग इंसान के साथ भी आजमाया जाएगा। इंसान के शरीर में सूअर का दिल धड़कने की कितनी संभावना है, इस पर जर्मन चिकित्सक राइषार्ट से डॉयचे वेले की खास बातचीत के अंश।
 
 
डॉयचे वेले: पहली बार लंगूर के शरीर में सूअर के दिल का प्रत्यर्पण उम्मीद जगाता है कि यह इंसान के साथ भी संभव हो सकेगा। सवाल है कि जानवरों में सूअर को ही डोनर के रूप में क्यों चुना गया?
ब्रूनो राइषार्ट: यहां नैतिकता अहम है। हम सुअरों को लंबे समय से खा रहे हैं। इन्हें मारने को लेकर समाज में स्वीकार्यता भी है। एक सूअर हर चार महीने में बच्चे पैदा करने की स्थिति में होता है। इतना ही नहीं जन्म के छह महीने बाद ही सूअर प्रजनन के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं। वहीं सूअर का दिल इंसान के दिल से काफी मिलता-जुलता है। वैसे भी पिछले 40 सालों से इंसानों के शरीर में सूअर के हृदय के वॉल्व का इस्तेमाल तो हो ही रहा है।
 
 
डॉयचे वेले: इस प्रक्रिया अंग लेने वाले के रूप में लंगूर को ही क्यों चुना गया?
ब्रूनो राइषार्ट: ये प्रशासन की मांग थी। उनका कहना था कि प्रत्यर्पण सूअर या कुत्ते के शरीर में नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय किसी ऐसे को चुना जाना चाहिए जो जैविक रूप से इंसानों के करीब हो ताकि यह समझा जा सके कि इस तरह की प्रक्रिया इंसानों के साथ कितनी सफल होगी।
 
 
डॉयचे वेले: क्या इस प्रक्रिया में किसी भी साधारण सूअर को बतौर डोनर चुना जा सकता है?
ब्रूनो राइषार्ट: सूअर का दिल इंसान स्वीकार करें, इसके लिए पहले डोनर के अंग को इसके अनुकूल बनाना होगा। यही कारण है कि प्रत्यर्पण से पहले सूअर के दिल में अनुवांशिक रूप से बदलाव किया जाता है।
 
 
डॉयचे वेले: इस तरह के प्रत्यर्पण से क्या फायदा होगा?
सबसे बड़ी बात तो यह है कि इससे अंगदाताओं की भारी कमी की समस्या में लाभ मिलेगा।
 
 
डॉयचे वेले: क्या इसे सफलता का क्षण कहा जा सकता है?
ब्रूनो राइषार्ट: कुछ और भी सफलताएं मिलनी चाहिए। मुझे डर भी है। दरअसल अब हमें पैसा चाहिए, क्योंकि इस तरह के प्रयोग महंगे हैं। हमें निवेशक चाहिए, और यूरोप में निवेशक खोज पाना बहुत मुश्किल है। जर्मन रिसर्च फाउंडेशन ने अब तक काफी वित्तीय सहायता दी है। लेकिन आगे की पायलट स्टडी के लिए हमें अतिरिक्त धन, साधन के साथ-साथ अस्पताल भी चाहिए।
 
 
डॉयचे वेले: आपको कैसे इतना भरोसा है कि यह काम करेगा?
ब्रूनो राइषार्ट: आपको हमेशा खुद को अज्ञात चीजों की ओर ले जाना होता है। ऐसी आशंकाएं कम हैं कि यह काम नहीं करेगा। ब्रूनो राइषार्ट जर्मनी के जाने-माने ह्दय प्रत्यर्पण विशेषज्ञों में से एक हैं। साल 1983 में डॉक्टर राइषार्ट ने ही जर्मनी में ह्दय-फेफड़ों का पहला प्रत्यारोपण किया था। वह म्यूनिख के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के प्रोफेसर एमेरिट्स हैं।
 
 
इंटरव्यू:  आने ह्योहन
 
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