सांकेतिक चित्र
भारत के हिमालयी राज्यों में असम और मिजोरम जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं। पोलैंड के कॉप24 जलवायु सम्मेलन में भारतीय वैज्ञानिकों की टीम ने एक अध्ययन रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी है।
पोलैंड में आयोजित कॉप24 जलवायु सम्मेलन में यह रिपोर्ट पेश की गई। इसके लिए वैज्ञानिकों की टीम ने पूर्व व पश्चिम में स्थित 12 हिमालयी राज्यों काविभिन्न मानकों के आधार पर अध्ययन किया है। टीम में इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस (आईआईएससी), बंगलुरू के अलावा भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी), मंडी और आईआईटी गुवाहाटी के विशेषज्ञ शामिल थे। ऐसे संवेदनशील राज्यों की सूची में जम्मू-कश्मीर तीसरे नंबर पर है।
कौन है सबसे संवेदनशील
इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से असम सबसे ज्यादा संवेदनशील है। इसकी वजह यह है कि असम राज्य में बहुत कम जमीन सिंचाई के दायरे में है। इसके अलावा प्रति एक हजार ग्रामीण घरों पर जंगल का अनुपात भी यहां सबसे कम है। असम में सौ दिनों की रोजगार गारंटी योजना मनरेगा की पहुंच भी बहुत कम है।
इसी तरह मिजोरम का लगभग 30 फीसदी इलाका ढलवां होने के कारण राज्य में जलवायु परिवर्तन का असर ज्यादा होने का अंदेशा है। ऐसे इलाके भूस्खलन के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं। इसका नुकसान आम लोगों को झेलना पड़ता है।
यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले बदलावों के अनुरूप खुद को ढालने के लिए अहम मानकों मसलन - सिंचाई वाली जमीन के क्षेत्रफल, प्रति व्यक्ति आय, फसल बीमा की पहुंच, जंगल इलाके और ढलवां जमीन - के आधार पर किया गया। यह आंकड़े जनगणना व दूसरे सरकारी रिकार्ड से लिए गए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पहाड़ी राज्य होने के बावजूद सिक्किम जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे कम संवेदनशील है। इसकी वजह वहां के घने जंगल, आबादी का घनत्व कम होना और प्रति व्यक्ति आय बाकी राज्यों के मुकाबले ज्यादा होना है। आईआईएससी, बंगलुरू में सेंटर फॉर सस्टेनेबल टेक्नॉलजी में प्रोफेसर एनएच रवींद्रनाथ ने जलवायु सम्मेलन में रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, "संवेदनशील राज्यों की इस रैंकिंग से केंद्र व संबंधित राज्य सरकारों को जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों से निपटने की कारगर रणनीति बनाने में सहायता मिलेगी। इससे केंद्र सरकार ज्यादा संवेदनशील राज्यों और उनके सबसे ज्यादा संवेदनशील जिलों की शिनाख्त कर प्राथमिकता के आधार पर ठोस कदम उठा सकती है।”
कैसे कुप्रभावों की आशंका है
असम अपनी भौगोलिक स्थिति के अलावा बदहाल आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों की वजह से भी ज्यादा संवेदनशील माना गया है। यहां जलवायु परिवर्तन के चलते बार-बार आने वाली बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा का मुकाबला करने में लोग सक्षम नहीं हैं। बीते कुछ वर्षों के दौरान राज्य को कई बार बाढ़ और सूखे जैसे हालातों का सामना करना पड़ा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से इन प्राकृतिक विपदाओं की गंभीरता बढ़ी है। स्टेट एक्शन प्लान फॉर क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते 60 सालों (वर्ष 1951 से 2010) के दौरान राज्य में सालाना औसत तापमान 0.59 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है और वर्ष 2050 तक इसमें 1.7 से 2.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी का अंदेशा है। रिपोर्ट के मुताबिक, औसतन सालाना बारिश में भी 38 फीसदी वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा वर्ष 2050 तक राज्य में चाय की पैदावार भी लगभग 40 फीसदी घट जाएगी।
राज्य की 32 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है। इसमें से भी ज्यादातर लोग अपनी आजीविका के लिए मौसम की अनुकूलता पर निर्भर हैं। ऐसे में मौसम में बदलाव की वजह से आने वाली आपदाओं से उनको बचाना बेहद मुश्किल है। ब्रह्मपुत्र में स्थित दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली जलवायु परिवर्तन की मार की सबसे बड़ी मिसाल है। बार-बार आने वाली बाढ़ की वजह से इसका क्षेत्रफल साल दर साल सिकुड़ता जा रहा है। बारिश के पैटर्न में बदलाव, सूखे और बाढ़ की मार की वजह से इस द्वीप से हाल के वर्षों में रोजी रोटी की तलाश में लोगों का पलायन तेज हुआ है।
क्या कर रही है सरकार
अब देर से ही सही, राज्य सरकार ने हालात की गंभीरता को समझा है। यही वजह है कि सरकार ने इस साल अगस्त में मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की अगुवाई में क्लाइमेट चेंज मैनेजमेंट सोसायटी का गठन किया है। यह सोसायटी जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों से होने वाले नुकसान पर अंकुश लगाने की रणनीति तैयार कर उसे जमीनी स्तर पर लागू करेगी। ताजा हालात के आधार पर स्टेट एक्शन प्लान फॉर क्लाइमेट चेंज में भी जरूरी बदलाव किए जा रहे हैं।
मिजोरम के बारे में मौसम विशेषज्ञ आर साइलो कहते हैं, "राज्य में फसल बीमा नहीं होना, सड़कों का घनत्व कम होना, फूलों की खेती वाला इलाका कम होना, इंसान व पशुओं की आबादी के अनुपात में भारी अंतर और कुल मजदूरों में महिलाओं की तादाद कम होने जैसी चीजें इस राज्य को जलवायु परिवर्तन के प्रति काफी संवेदनशील बनाती हैं। भौगोलिक स्थिति तो सुधारी नहीं जा सकती। लेकिन बाकी पहलुओं पर ध्यान देकर हालात बेहतर जरूर बनाए जा सकते हैं।" साइलो कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से रोजी रोटी की तलाश में होने वाले विस्थापन पर तो रोक लगाई ही जा सकती है।
इंसानी गतिविधियों की वजह से मौसम में होने वाले बदलावों पर अंकुश लगाने की दिशा में काम करने वाले संगठन 'क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया' के निदेशक संजय वशिष्ठ का कहना है, "जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता किसी खास इलाके में ज्यादा बारिश या तापमान बढ़ने पर नहीं बल्कि आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण से जुड़े संसाधनों पर निर्भर है। मिसाल के तौर पर अगर बार बार फसलों को नुकसान पहुंचता है तो उस खास इलाके की आबादी को नजदीकी जंगल पर निर्भर रहना पड़ेगा। वह जंगल पर्यावरण से जुड़ा संसाधन है।"
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता