• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. We've Seen What Bots Do to Democracy. Are We Adapting Fast ...
Written By
Last Updated : गुरुवार, 29 मार्च 2018 (14:32 IST)

लोकतांत्रिक व्यवस्था में मशीनों की घुसपैठ

लोकतांत्रिक व्यवस्था में मशीनों की घुसपैठ - We've Seen What Bots Do to Democracy. Are We Adapting Fast ...
वाशिंगटन। हम देख रहे हैं कि लोकतंत्र में मशीनों की भागीदारी बढ़ रही और दुनिया में लोकतंत्र को बचाने के प्रयासों में मशीनों का उपयोग बढ़ता जा रहा है। विदित हो कि वर्ष 2016 के अमेरिकी चुनाव के दौरान जितने ट्‍वीट्‍स किए गए उनमें से प्रत्येक पांच में से एक मशीन (बॉट्‍स) ने किया था। मशीनों की चुनावों में घुसपैठ ने वर्ष 2017 के दौरान धुर-दक्षिणपंथी उम्मीदवारों को बढ़ावा दिया और अब गर्भपात को लेकर आयरलैंड में होने वाले जनमत संग्रह से पहले ये गलत सूचनाओं का प्रसारण कर रहे हैं।
 
अब सवाल यह है कि मतदान में बॉट्‍स (मशीनों) की घुसपैठ को रोकने के लिए क्यों कुछ नहीं किया जा रहा है?
 
सरकारें और मीडिया प्लेटफॉर्म्स स्पष्ट रूप से इस प्रवृति को बढ़ावा दे रहे हैं। संघीय और राज्यों के प्राधिकारी फर्जी टिवट्‍र यूजर्स के प्रसार के मामलों को देख रहे हैं। चुनाव के दौरान ही अमेरिकी विशेष जांच ने एक रूसी बॉट कंपनी को सजा भी सुनाई थी। ट्‍विटर ने अपने सॉफ्ट वेयर में बदलाव कर इन मशीनी मानवों का पता लगाने का अभियान चलाया है और मात्र जनवरी में ही इसने 50 हजार से ज्यादा रूसियों से जुड़े खातों को हटाया जिन्होंने चुनाव के दौरान स्वचालित संदेशों को भेजने का काम किया था। इसी तरह से सितंबर 2017 में फेसबुक ने भी अभियान चलाकर हजारों की संख्या में फर्जी खातों को बंद किया था जिनका उपयोग फर्जी तरीके से जनमत बनाने के लिए किया गया।
 
आयरलैंड में सरकारी अधिकारी एक ऐसा कानून लाने की कोशिश कर रहे हैं जिसके तहत सुनिश्चत किया जाए कि सोशल मीडिया कंपनियों से राजनीतिक विज्ञापन लेने वाले लोग वास्तविक हों और वह विज्ञापन तथा नियामकों के साथ इस जानकारी को भी साझा करें। पर अगर यह कानून पास हो जाता है तो यह कानून तब तक प्रभावी नहीं होगा जबकि इससे जुड़ा जनमत संग्रह इसके पक्ष में नहीं आ जाता। लेकिन सांसदों का मानना है कि कानून के प्रभावी होते ही आगामी चुनावों पर विदेशी प्रभाव को रोकना संभव होगा। 
 
समाचारों की गति की तुलना में सरकार की कानून बनाने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है लेकिन हमें भविष्य की सोच को साकार करने के लिए ऐसा करना ही होगा तभी बॉट समस्या पर नियंत्रण पर काबू पाया जा सकेगा। हालांकि इस मामले में सरकारी कार्रवाई ही एकमात्र ऐसा उपाय हो सकता है जिससे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्सस पर समुचित उपायों का पालन किया जा सकेगा। जैसाकि ईयू के आगामी निजता कानूनों के मामले में यह तय करना होगा कि उनका कानून किन देशों में प्रभावी है। एक कानून एक देश में प्रभावी हो सकता है तो दूसरे देश में ऐसा नहीं होता है।  
 
फेसबुक ने पहले ही योजनाएं बनाई हैं कि पुराने तरीके से विज्ञापन खरीदने वालों का सत्यापन करेंगे। यह कानून अमेरिका में होने वाले मध्यावधि चुनावों के लिए हैं इसलिए इनका उपयोग अमेरिका में किया जा सकता है। ज्यादातर कंपनियों का हना है कि प्लेटफॉर्म्स अपनी साइट्‍स पर ऐसे नियमों का स्वागत नहीं करते हैं जिनके कारण लोगों को पैसा खर्च करना पड़े या फिर नए यूजर्स को लेकर उनकी ग्रोथ को सीमित कर दें। लेकिन ये सभी प्लेटफॉर्म्स भरोसा करते हैं कि सोशल मीडिया एक सुरक्षित और भरोसेमंद स्थान है जहां लोग अपना समय बिता सकते हैंं।